रायपुर। छत्तीसगढ़ में 32 फ़ीसदी आदिवासी आरक्षण का पेंच बुरी तरह उलझ गया है। इस पर जमकर राजनीति हो रही है और राजभवन तक की तरफ इशारा करते हुए कहा जा रहा है कि भाजपा राजभवन की आड़ में राजनीति कर रही है। जबकि असल स्थिति कुछ और है।
आदिवासी समाज के आंदोलन से बिगड़े राजनीतिक माहौल के बीच इस समाज को साधने के इरादे से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित करा लिया गया लेकिन राज्यपाल अनुसुइया उइके इस पर गंभीरता से विचार किए बिना हस्ताक्षर करने तैयार नहीं हैं।
उन्होंने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि आरक्षण विधेयक पर अभी दस्तखत नहीं करेंगी। उनका कहना है कि सिर्फ आदिवासी आरक्षण को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। लेकिन इस विधेयक में बहुत सारे बदलाव हुए हैं। अब राज्यपाल सभी समाज के प्रतिनिधि मंडलों द्वारा दिए गए आवेदनों की भी जांच करा रही है।
विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष की ओर से इसकी संवैधानिक स्थिति पर ढेर सारे सवाल उठाए गए थे। विपक्ष का कहना था कि आदिवासी आरक्षण का समर्थन है लेकिन जिस तरीके से सरकार यह विधेयक लाई है, उसमें विधि स्थिति क्या है? अब राज्यपाल भी कह रही हैं कि विधेयक में 76 प्रतिशत आरक्षण हो गया है।
इधर सत्ताधारी कांग्रेस की ओर से संचार प्रमुख सुशील शुक्ला कह रहे हैं कि सरकार ने सभी संवैधानिक पहलुओं की पड़ताल करके उसका तथ्यात्मक निराकरण करके आरक्षण संशोधन विधेयक बनाया है। जिसे विधानसभा में सर्वसमिति से पारित किया गया। इस पर राज्यपाल को अविलंब हस्ताक्षर करना चाहिये। अनावश्यक विलंब करने से हर वर्ग को नुकसान हो रहा है। सभी के हित में यह जरूरी है कि राजभवन विधेयक पर तत्काल निर्णय ले। कांग्रेस सरकार ने वर्तमान विधेयक को बनाने के ठोस आधारों का अध्ययन किया है। कांग्रेस ने सर्वसमाज को आरक्षण देने अपना काम पूरी ईमानदारी से करके सभी के लिये आरक्षण का प्रावधान किया है। अनुसूचित जन जाति, अनुसूचित जाति को उनकी जनगणना के आधार पर तथा पिछड़ा वर्ग को क्वांटी फायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगो को भी 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक यदि कानून का रूप लेगा तो हर वर्ग के लोग संतुष्ट होंगे यदि कोई अदालत में जायेगा तो भी सरकार के पास आरक्षण के पक्ष में तमाम तर्क संगत कारण हैं, जिसका जवाब दिया जायेगा। भविष्य में क्या होगा, इस कल्पना को आधार बनाकर विधेयक को कानून बनने से नहीं रोका जाना चाहिये।
श्री शुक्ला का कहना है कि भाजपा नेताओं का जो बयान आ रहा है, उससे लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी राजभवन की आड़ में राजनीति कर रही है। आरक्षण संशोधन विधेयक में विलंब भाजपा का साफ षडयंत्र लग रहा है। विधानसभा में पारित होने के बाद विधेयक राजभवन हस्ताक्षर होने गया है। वहां क्यों रुका है? किसके कहने पर रुका है? यह सभी जानते और समझते हैं। राजभवन राजनीति का अखाड़ा नहीं बनना चाहिये। यदि लोगों के अधिकारों पर राजनीति होगी तो कांग्रेस चुप नहीं रहेगी। वैसे भाजपा शुरू से ही कांग्रेस की नीयत पर सवाल खड़े कर रही है। उसने आदिवासी आरक्षण का समर्थन किया है लेकिन तरीके को लेकर उसका मत है कि यह विधेयक संवैधानिक कसौटी पर टिक नहीं पायेगा। सरकार ने 32 फीसदी आरक्षण को बचाने गंभीरता नहीं दिखाई। वैसे इस विधेयक के पारित होने के बाद अनुसूचित जाति वर्ग भी लामबंद हो रहा है तो सामान्य वर्ग भी। कुल मिलाकर यह विधेयक फिलहाल लटक गया है।
भानुप्रतापपुर उपचुनाव 5 दिसम्बर को हो गया। इसके पहले 2 दिसम्बर को आरक्षण विधेयक पारित हुआ। आदिवासी आरक्षित सीट का उपचुनाव कांग्रेस ने जीत लिया है। अब अगले साल होने वाले चुनाव तक आरक्षण का मसला सियासी रंग बदलता रहेगा।