रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में यूं तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तमाम दिग्गज भाजपाइयों के निशाने पर रहते हैं और बघेल के निशाने पर अक्सर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह रहते हैं। इन दोनों के बीच की सीधी जंग को देखकर ऐसा लगने लगता है कि भले ही भाजपा ने चेहरा पेश न करने का मन बनाया है लेकिन मुकाबला भूपेश और रमन के बीच है। हमारा किसी को भी अपनी ओर से प्रोजेक्ट करने का न तो कोई इरादा है और न ही फोकट की सलाह देने की कोई जरूरत है और न ही ऐसी अनाधिकार चेष्टा की जा रही है।
लोकतंत्र में दुल्हन वही जो पिया मन भाए। अब चेहरा कहीं चमक जाता है, कहीं दमक जाता है तो कहीं फीका पड़ जाता है तो कहीं पीला पड़ जाता है। अब राज्य की राजनीति में चेहरे से ज्यादा मुद्दे अहमियत रखने लगेंगे। देश की राजनीति में भी चेहरे आते दमकते महकते चहकते और जाते रहे हैं। जब तक मुद्दे हैं, उन पर काम है, तब तक शान है। बात छत्तीसगढ़ की है तो यहां भी अब तक तीन चेहरे राजनीति में सूरज की तरह चमके। कहते हैं कि चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है, ढल जाएगा तो एक सूरज तीन साल चमक दिखा कर राजनीतिक क्षितिज से ओझल हो गया। दूसरा 15 साल दमकता रहा और अब चांद की तरह नजर आ रहा है। तीसरे सूरज की गर्मी चार साल से ऊर्जा दे रही है। समय अब वहां आ पहुंचा है कि बदली भी होगी , खुला आसमान भी होगा। यानी राजनीतिक मौसम सर्द गर्म रहेगा। एक बार फिर मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं के बीच चलने वाली जुबानी जंग पर लौटें तो दिख रहा है कि…
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और भाजपा नेता अजय चंद्राकर के बीच सर्वाधिक स्नेह है। हम राजनीतिक कहा सुनी को रार नहीं प्यार मानते हैं। राजनीति में वैमनस्यता की कोई जगह नहीं होनी चाहिये। वैचारिक मतभेद का स्वागत है। यही तो लोकतंत्र है कि विचार की अलग अलग धाराएं हों किंतु इन्हें मिलना तो जन सागर में ही है। जिक्र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के बीच की सियासी रस्साखींच की है तो यह जोड़ी सबसे आकर्षक है। चंद्राकर भाजपा के मुख्य प्रवक्ता हैं तो उन्हें सबसे ज्यादा मुखर रहना ही चाहिए। वे अपनी जिम्मेदारी सौ फीसदी निभा रहे हैं। इसमें मुख्यमंत्री बघेल का भरपूर सहयोग रहता है। वे चंद्राकर के उठाये मुद्दों पर जो जवाब देते हैं, वे भी रोचक होते हैं। यदि जुबानी सियासी जंग की बात है तो मुकाबला बघेल और चंद्राकर के बीच ही है। बाकी सब कैरेक्टर आर्टिस्ट से लेकर को आर्टिस्ट हैं।अब इन दिनों गौरव दिवस की खूब चर्चा है। सरकार के स्तर पर गौरव दिवस मनाई गई है तो कांग्रेस भी अपने दूल्हे की बारात में नाचने दिखा । कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सत्तारोहण की चौथी वर्षगांठ मनाई। राजनीतिक नजरिये से इसे भूपेश चतुर्थी वर्ष कह दें तो कृपया कोई अन्यथा न लें। अब सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं तो सरकार का प्रचार तंत्र व कांग्रेस का संचार तंत्र भूपेश चालीसा का पाठ कर रहा है। चार साल तक क्या किया, यह तो हर रोज बखान हुआ ही है लेकिन यह ऐसा मौका है जब चार साल के पन्ने कांग्रेस के साथ साथ भाजपा भी पलट रही है। सरकार ने चार साल में क्या क्या किया, सबको मालूम है। क्या क्या नहीं किया, यह बताने का ठेका विपक्ष के पास है। वैसे जनता को भी सब कुछ पता है मगर कोई सुना रहा है तो सुन लिया जाए। लोकतंत्र में सबकी सुनवाई होना चाहिए। यहां सरकार के गौरव पर भाजपा को ऐतराज है।
चंद्राकर का कहना है कि चार साल में एक भी काम नहीं किया, वे किस बात पर गौरव दिवस मना रहे हैं। उप चुनाव जीत लेने से कोई संकेत नहीं होता। संकेत तो अब मिलना शुरू होगा। जनता को चार साल से भ्रमित कर रहे हैं। जनता अब जवाब मांग रही है तो कामकाज की बजाय यहां वहां की बातें कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ की जनता के लिए, राज्य के विकास के लिए क्या किया है, इस पर जवाव दें। चंद्राकर कह रहे हैं कि गौरव नहीं, वह काला दिवस है, जिस दिन भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की जनता को बरगला कर मुख्यमंत्री बने थे और चार साल से काले कारनामे कर रहे हैं और करा रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसा किया क्या है जिसका गौरव मना रहे हैं? अपनी पीठ थपथपाने का तो कोई पैसा नहीं लगता। किस बात का गौरव दिवस? कर्जा लेने का गौरव दिवस? आरक्षण नहीं देने का गौरव दिवस? सुपेबेड़ा में मौत का गौरव दिवस, लोगों को रोजगार न मिलने का गौरव दिवस? धान चोरी का गौरव दिवस, प्रधानमंत्री अन्न योजना के अनाज पर डाका डालने का गौरव दिवस? कानून व्यवस्था खराब होने का गौरव दिवस? अवैध वसूली का गौरव दिवस? अवैध शराब का गौरव दिवस? रेत माफिया का गौरव दिवस? नशा माफिया का गौरव दिवस? ऐसी कौन सी चीज है, जिसका गौरव दिवस मनाएंगे? चंद्राकर का कहना है कि इनने एक वॉट बिजली पैदा नहीं की, एक इंच सिंचाई नहीं बढ़ रही। लाखों बिजली कनेक्शन लंबित हैं, किसान का अल्पकालिक ऋण छोड़कर एक पैसा भी कर्ज माफ नहीं हुआ। शराबबंदी हुई नहीं, बेरोजगारी भत्ता मिला नहीं, किसानों को पेंशन मिली नहीं, वृद्धों को पेंशन मिली नहीं, तो क्या इसका गौरव मनाएंगे? अपनी पीठ थपथपाने से भूपेश बघेल को कुछ हासिल नहीं होगा। अगले साल जनता उन्हें और उनकी सरकार को ठिकाने लगा देगी। इस प्रकार भाजपा ने भूपेश बघेल सरकार के गौरव पर जो सियासी कलरव पेश किया है, उस पर भी गौर करना चाहिए। तभी तो समीक्षा की जा सकती है कि जनता ने क्या खोया, क्या पाया।
वैसे भाजपा के इस विरोध से कांग्रेस को कोई फर्क फिलहाल पड़ने वाला नहीं है। फर्क तब पड़ेगा जब भाजपा मुद्दों पर संघर्ष करेगी।