1977 में विदेश मंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी पहले दिन मंत्रालय पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक दीवार से जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर गायब है. इसके बाद…
अपने आखिरी सालों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति और बोलने की क्षमता भी लगभग चली गई थी. वाणी के धनी रहे इस शख्स के जीवन का उत्तरार्ध ऐसा होगा, यह शायद ही किसी ने सोचा हो. जानते हैं पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़े कुछ बेहद दिलचस्प किस्से जिनमें से कुछ के बारे में बेहद कम लोग ही जानते हैं.
1- अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी ‘हार नहीं मानूंगा’ में पत्रकार विजय त्रिवेदी एक किस्सा बयान करते हैं. एक बार हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए एक छोटे विमान से वाजपेयी धर्मशाला जा रहे थे. उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सांसद रहे बलबीर पुंज भी सफर कर रहे थे. यात्रा के दौरान वाजपेयी सो गये. इसी बीच विमान का सह-पायलट कॉकपिट से बाहर आया और उसने पुंज से पूछा कि क्या वे इससे पहले कभी धर्मशाला आए हैं? पुंज द्वारा ऐसा पूछने की वजह पूछे जाने पर सह-पायलट ने कहा कि एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क टूट गया है और धर्मशाला मिल नहीं रहा है. विमान चालकों के पास बहुत पुराना नक्शा था और नीचे जो दिख रहा था, वह उस नक्शे से मेल नहीं खा रहा था. इतने में वाजपेयी की आंख खुली. जब पुंज ने उन्हें सारी बात बताई तो वे बोले ‘अगर जागते हुए क्रैश होगा तो बहुत तकलीफ होगी इसलिए फिर से सो जाता हूं.’ यह कहकर वे दोबारा सो गए. बाद में इस विमान का संपर्क इंडियन एयरलाइंस के एक विमान से हुआ और उसकी मदद से उसे धर्मशाला की जगह कुल्लू में सुरक्षित उतार लिया गया.
2- यह बात उन दिनों की है जब अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति की शुरुआत कर ही रहे थे. 1953 में उन्हें मुंबई में जनसंघ की एक जनसभा को संबोधित करना था. जब वे सभा के लिए तैयार हुए तो देखा कि जो कुर्ता उन्होंने पहना है वह आस्तीन के पास से फटा हुआ था. उन्होंने अपना दूसरा कुर्ता निकाला. लेकिन वह भी गले के पास फटा हुआ निकला. वाजपेयी बस दो ही कुर्ते लेकर बंबई गए थे और वे दोनों के दोनों फटे हुए थे. अब कोई रास्ता नहीं था. लेकिन अटल जी की त्वरित बुद्धि ने वहां काम किया उन्होंने फटे हुए कुर्तों में से एक के ऊपर जैकेट पहन ली. इसके बाद सभा में फटे कुर्ते के बारे में किसी को पता तक नहीं चला.
3- अटल बिहारी वाजपेयी को खाने-पीने का बड़ा शौक था. अक्सर वे अपने सहयोगी नेताओं के साथ खाने-पीने के लिए बैठकबाजी किया करते थे. यह सिलसिला प्रधानमंत्री बनने के बाद तक चलता रहा. यह बात उन दिनों की है जब देश में आपातकाल लगा था. उन्हें स्वास्थ्य कारणों से बंगलुरु जेल से दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में लाया गया. अभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता डीपी त्रिपाठी उस वक्त वाजपेयी के बगल वाले कमरे में थे. एक दिन वाजपेयी ने उन्हें बुलाया और पूछा कि देवी प्रसाद शाम के लिए क्या व्यवस्था है. इसके बाद त्रिपाठी ने पास के पीसीओ से अपनी किसी परिचित को फोन करके अच्छी व्हिस्की की व्यवस्था की. वाजपेयी ने चिकन और खाने की चीजों का भी ऐसे ही इंतजाम किया और शाम को एम्स में ही बैठक जमा ली.
4- आपातकाल के बाद 1977 में बनी मोरारजी देसाई की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने थे. विदेश मंत्री बनने के बाद जब वे पहले दिन विदेश मंत्रालय पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दफ्तर की एक दीवार से कुछ गायब है. वाजपेयी ने अपने सचिव से कहा कि यहां तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर लगी होती थी. पहले भी कई बार मैं इस दफ्तर में आया हूं, अब कहां गई? पता चला कि जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो विदेश मंत्रालय के अफसरों को लगा कि जनसंघ से आने वाले नए विदेश मंत्री को नेहरू की तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी. इसलिए उन्हें खुश करने के लिए अधिकारियों ने नेहरू की तस्वीर हटा दी थी. इसके बाद वाजपेयी ने विदेश मंत्रालय के अफसरों को जितनी जल्दी हो सके उस तस्वीर को फिर से लगाने का आदेश दिया.
5- मोरारजी सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर वाजपेयी पाकिस्तान में भी बेहद लोकप्रिय थे. मोरारजी सरकार बहुत दिनों तक चल न सकी. सरकार गिरने के कुछ दिनों बाद की बात है. वाजपेयी अपने घर पर चाय की चुस्कियां ले रहे थे. तभी पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल सत्तार उनके यहां एक तोहफा लेकर पहुंचे. सत्तार ने वाजपेयी को कहा कि आप तो पाकिस्तान में इतने लोकप्रिय हैं कि वहां से चुनाव लड़ें तो दूसरों की जमानत जब्त हो जाएगी. सत्तार ने वाजपेयी को बताया कि यह उपहार जनरल जिया उल हक ने उनके लिए भेजा है. उस पैकेट में एक पठानी सूट था. वाजपेयी पैकेट लेकर अंदर गए और कुछ ही देर में पठानी सूट पहनकर बाहर निकले और सत्तार को कहा कि जनरल साहब को बता देना कि मैंने उनका तोहफा पहन लिया है.
6- ग्वालियर से वाजपेयी का बड़ा गहरा नाता रहा है. वाजपेयी अक्सर दिल्ली से ग्वालियर बिना किसी को कुछ बताए चले जाते थे और वहां की सड़कों पर यहां-वहां घूमते रहते थे. यह बात उन दिनों की है जब राजमाता सिंधिया वाजपेयी की पार्टी में आई ही थीं. एक दिन उन्हें खबर मिली कि अटल जी छाता लगाए ग्वालियर के पाटनकर बाजार से गुजर रहे हैं. यह सुनते ही राजमाता सिंधिया ने एक स्थानीय नेता को फोन लगाकर कहा कि कैसी पार्टी है आपकी, पार्टी के सबसे बड़े नेता सड़क पर पैदल घूम रहे हैं, क्या उनके लिए गाड़ी का इंतजाम नहीं हो सकता? थोड़ी देर बाद राजमाता सिंधिया के पास उस नेता का फोन आया. उसने उन्हें बताया कि वाजपेयी ने गाड़ी सधन्यवाद वापस भेज दी है और कहा है कि ग्वालियर में उन्हें गाड़ी की जरूरत नहीं पड़ती.
7- विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ विचारक और पांच जन्य के पूर्व संपादक देवेंद्र संदर्भ के विश्लेषण से एक किस्से का उल्लेख किया है। संदर्भ के अनुसार एक बार अमेरिका जाने वाले एक प्रतिनिधि मंडल में अटल बिहारी ब्लॉग के साथ कांग्रेस की नेता मुकुल बनर्जी भी थीं। एक सरकारी कंपनी में बीफ जहरीला भी जा रहा था। बनर्जी फोटोग्राफी के आस-पास ही रहती थीं। जब वे ब्लॉग का इस ओर ध्यान देते हैं तो उनका कहना था – ये गायें इंडिया की नहीं, अमेरिका की हैं।
(सौ : सत्याग्रह)