कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या अगले साल होने वाले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की राह मुश्किल हो गई है? क्या नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है? क्या कांग्रेस अब बीजेपी को हराने में सक्षम हो गई है?
बीजेपी पिछले नौ सालों से केंद्र की सत्ता में है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन मोदी की यह कोशिश कर्नाटक में रंग नहीं ला पाई.
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही उसका दावा मज़बूत हुआ है कि अगले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी खेमे का नेतृत्व वही कर सकता है.
अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले कई और राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. इन राज्यों में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है।
मोदी की अपील काम नहीं आई
रामाशेषण कहती हैं, “मोदी ने चुनावी कैंपेन के आख़िर में बजरंगबली के नाम पर वोट मांगना शुरू किया. कई रोड शो किए लेकिन उनकी अपील काम नहीं आई. बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाकर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया और यह भी उलटा पड़ा.”
“कर्नाटक में बीजेपी मतलब येदियुरप्पा है. 2012 में बीजेपी येदियुरप्पा को हटाकर अपनी हैसियत का अंदाज़ा लगा चुकी थी. यह ग़लती आडवाणी ने की थी और फिर से वही ग़लती मोदी ने दोहराई.”
वो कहती हैं, “भले कर्नाटक चुनाव के नतीजे से अगले साल आम चुनाव का आकलन नहीं कर सकते लेकिन यह तो तथ्य है कि कर्नाटक की जनता ने नरेन्द्र मोदी की हर अपील ठुकरा दी.”
“बीजेपी के लिए यह सबक़ है कि वह प्रदेश के स्थानीय नेताओं को ख़ारिज कर लंबे समय तक चुनाव नहीं जीत सकती है. बीजेपी सभी प्रदेश को हरियाणा और उत्तराखंड की तरह नहीं हाँक सकती है.”
उत्तराखंड में बीजेपी ने पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था.