गुम होती कठपुतली(puppetry art )कला को बचाने में लगा चौधरी और उपाध्याय परिवार

गुम होती कठपुतली(puppetry art )कला को बचाने में लगा चौधरी और उपाध्याय परिवार

एक समय था जब कठपुतली puppetry को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम समझा जाता था लेकिन आज कठपुतली कला,(puppetry art )मनोरंजन के साथ ही लोगों को जागरुक भी कर रही है।

भारतीय पुतलियों की प्राचीनता के सम्बन्ध में पौराणिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता हैं। महाभारत में अर्जुन द्वारा ब्रहन्नला को कठपुतलियों का खेल सिखाने का उल्लेख है।

कला की दोस्त कला

जुगनू द्वारा आयोजित नाट्य प्रशिक्षण शिविर में puppetry art बाल कलाकारों और वरिष्ठ कलाकारों से रूबरू होने का मौका मिला। रंग कर्मियों को कठपुतली कला puppetry art से अवगत करने का मुझे भार दिया गया था।अक्सर इस तरह के कार्यक्रम की शुरुआत पेपर पपेट बनाने से ही होती है । लेकिन मैंने देखा कि यहां वहां चाय के कप और कुछ कागज फैला हुआ है। तो कठपुतली छोड़कर सबसे पहले मैंने साधारण न्यूज़ पेपर से यूज एंड थ्रो वाला डस्टबिन बनाना सिखाया। सफाई हुई और काम आगे बढ़ा। सब ने आश्वस्त किया कि किलो के भाव से अखबार बेचने से अच्छा है डस्टबिन बनाकर जगह-जगह घर या कार्यक्षेत्र में रख दिया जाए।
फिर A4 पेपर से कई तरह की पपेट बनाना विद्यार्थियों ने सीखी। मैंने अपने साथ लाई हुई हैंड पपेट भी उन्हें दिखाई और चलाने का तरीका भी बताया। रंग कर्मियों के लिए एक नया अनुभव था। जुगनू की नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला दो खंडों में होती है। पहला खंड बच्चों के लिए जिसमें अलास्का का घर नाटक तैयार किया जा रहा है। दूसरा खंड बड़ों के लिए है जिसमें अनेक नौकरी पेशा कलाकार भी है, और संस्कृत नाटक तैयार किया जा रहा है। कार्यशाला की पूर्व तैयारी सबसे महत्वपूर्ण होती है। बिटिया सिग्मा ने अपने एनएसडीएन पति अभिषेक चौधरी के साथ कार्यशाला की विस्तृत रूपरेखा बनाई। सिग्मा की बिटिया काफी छोटी होने के कारण वह इसमें पूर्ण सहयोग नहीं कर पा रही है लेकिन मंच परे हर तरह का सहयोग कर रही है। अभिषेक चौधरी शांत स्वभाव के बेहद गंभीर और अपने काम को जुनून की तरह करने वाले व्यक्तित्व हैं। छाया की तरह मेरे साथ रहने वाली और मेरे हर काम को सहयोग करने वाली पत्नी अनीता ने बच्चों से रूबरू होते हुए बताया कि शब्दों का महत्व क्या होता है। शिविर में बताया गया कि नाट्य अभिनय में साथ देने के लिए तो हमारे साथ, हाथ पैर चेहरा सब कुछ होता है, लेकिन कठपुतली संचालन के लिए सिर्फ 10 उंगलियों से ही हमें अभिनय करवाना पड़ता है। यानी कि अपने समस्त भावों को उंगलियोंऔर धागों के रास्ते होते हुए कठपुतली तक पहुंचाना पड़ता है। हैंड पपेट में लिप्सिंग का भी महत्त्व बताया गया। जिस तरह से फिल्म की डबिंग में लिप्सिंग महत्वपूर्ण है उसी प्रकार हैंड पपेट के ऑपरेशन में भी लिप्सिंग का बड़ा महत्व है। बताया गया कि गले से निकली हुई आवाज किस तरह तालू दांत और होठों का उपयोग करके कैसे शब्दों में परिवर्तित होती है। जुगनू के सारे कलाकारों ने इसका अभ्यास किया। हालांकि 1 दिन का समय समझाने के लिए नाकाफी था फिर भी बच्चों ने नाटक में पपेट के उपयोग का कांसेप्ट समझ लिया। कुछ देर बाद बड़े कलाकारों की टीम भी उपस्थित हो गई। वह भी इस प्रशिक्षण में शामिल हो गए। उन्हें पंचतंत्र की कहानी – परी और लकड़हारा दिखाई गई। फिर कुछ वॉइस एक्सरसाइज। कुछ कलाकारों ने लंबे संवादों में सांस लेने की समस्या बताई। जिस पर एक छोटी मोटी बहस और समझाइश के बाद मैं और अनीता अपने निवास भिलाई रवाना हो गए इस आशा के साथ की जुगनू की कार्यशाला सफलता के नए आयाम छू लेगी और इसका सफल समापन होगा ।

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