आरबीआई के नए क़दम से क्या बच जाएंगे,नीरव मोदी और विजय माल्या

आरबीआई के नए क़दम से क्या बच जाएंगे,नीरव मोदी और विजय माल्या

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का वो हालिया क़दम विवादों में घिरता दिख रहा है जिसमें विलफुल डिफॉल्टर्स (इरादतन चूक करने वाले) और धोखाधड़ी में शामिल कर्ज़ खातों को बैंकों के साथ अपनी बकाया राशि का निपटान करने के लिए समझौता करने की अनुमति देने की बात की गई है.

8 जून को “फ्रेमवर्क फॉर कोम्प्रोमाईज़ सेट्लमेंट्स एंड टेक्निकल राइट-ऑफस” शीर्षक वाले एक नोटिफिकेशन में आरबीआई ने कहा कि विलफुल डिफॉल्टर्स या धोखाधड़ी से जुड़े खातों के बारे में बैंक देनदारों के ख़िलाफ़ चल रही आपराधिक कार्रवाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बग़ैर समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ (बट्टे खाते में डालना) कर सकते हैं.

आरबीआई के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक़ विलफुल डिफॉल्टर या धोखाधड़ी में शामिल कंपनी बैंक से समझौता करने के 12 महीने बाद नया कर्ज़ा हासिल कर सकती है

सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि 8 जून के सर्कुलर में आरबीआई ने विलफुल डिफॉल्टर्स को समझौता निपटान से बाहर रखने की अपनी पहले की नीति को उलट दिया है.

7 जून 2019 को आरबीआई ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि धोखाधड़ी, अपराध या जानबूझकर चूक करने वाले उधारकर्ताओं से समझौता नहीं किया जायेगा.

संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक़ मार्च 2022 के अंत तक 50 सबसे बड़े विलफुल डिफॉल्टर्स पर बैंकों का 92,570 करोड़ रुपये बकाया था. इसमें 7,848 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बकाया राशि मेहुल चोकसी की कंपनी की थी.

उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ भारत में दिसंबर 2022 तक 3,40,570 करोड़ रुपये की राशि वाले 15,778 विलफुल डिफॉल्ट खाते थे. इसमें से क़रीब 85 फ़ीसदी डिफ़ॉल्ट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया और बैंक ऑफ़ बड़ौदा जैसे सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के थे.

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