सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रविंद्र भट ने शनिवार को चेताया कि देश में किशोर न्याय व्यवस्था के लिए बने सभी संस्थानों में बड़ी मात्रा में स्टाफ की कमी है। यह कमी व्यवस्था को पंगु बना सकती है। इससे बच्चों की सुरक्षा के लिए बने यह संस्थान महज कागज के शेर बनकर रह जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय व बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष जस्टिस भट ने समिति की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय परिचर्चा के शुरुआती सत्र में आगाह किया कि अगर संस्थान स्टाफ व अधिकारियों की कमी की वजह से काम ही न कर पाएं, तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। इन हालात का समाधान भी खुद सुझाते हुए जस्टिस भट ने कहा कि हमें सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी प्रोटोकॉल बनाना होगा। वरना बच्चों को सुरक्षा दिलाने करने के लिए इन संस्थानों का कोई मतलब नहीं रहेगा। किशोर अपचारियों पर उन्होंने कहा कि इन्हें सुधारा जा सकता है, सुधारा जाना भी चाहिए। कहा, संस्थाएं अपने हर निर्णय में उन्हें प्राथमिकता पर रखें। इन किशोरों को न्यायिक ढांचे के तहत ही सामूहिक परामर्श या सामुदायिक सेवा से जोड़ा जा सकता है। किसी बच्चे को किसी आश्रय संस्थान में भेजा जाए, तो वहां भी उसकी पढ़ाई पर जरूरी नजर रखें।