पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। इनमें खासतौर पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव को भाजपा और विपक्ष के बीच सेमीफाइनल मुकाबला बताया जा रहा है। हालांकि बीते चार चुनाव इसकी पुष्टि नहीं करते। तथ्य बताते हैं इन राज्यों में जीत के बाद भी कभी सत्तारूढ़ दल को केंद्र की सत्ता गंवानी पड़ी है तो कभी केंद्र में सत्तारूढ़ दल को हार के बाद भी लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल हुआ है।
पहला उदाहरण 2003 के विधानसभा चुनाव हैं
तब इन तीनों राज्यों में मिली बड़ी जीत से उत्साहित वाजपेयी सरकार ने केंद्र की सत्ता बरकरार रखने के लिए समय पूर्व आम चुनाव कराने का दांव चला। हालांकि यह बाजी उल्टी पड़ गई। इन राज्यों में भाजपा ने 56 लोकसभा सीटें जीती, बावजूद इसके उसे केंद्र की सत्ता गंवानी पड़ी।
दूसरा उदाहरण साल 2018 के विधानसभा चुनाव हैं
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने तीनों राज्यों में सत्ता गंवा दी थी। इन नतीजाें ने विपक्ष में केंद्र की सत्ता हासिल करने की उम्मीद पैदा की। हालांकि, लोकसभा चुनाव के नतीजे उलट रहे और विधानसभा चुनाव में हारी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में तीनों ही राज्यों में करीब-करीब क्लीन स्वीप कर पहले से भी बड़ी जीत हासिल की।
कई बार तीनों राज्यों के नतीजों के उलट आए हैं लोकसभा के परिणाम
2008 ने भी दोहराया इतिहास: राजस्थान को छोड़ दें तो साल 2008 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने भी पुराना इतिहास दोहराया। तब भाजपा ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता बरकरार रखी, मगर राजस्थान की सत्ता गंवानी पड़ी। इसके बावजूद केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार न सिर्फ सत्ता बचाने में कामयाब रही, बल्कि उसके लोकसभा सीटों की संख्या 148 से बढ़कर 206 हो गई।
2013 के नतीजे अपवाद: इस मामले में 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा के नतीजे अपवाद साबित हुए। बीते चार चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ कि इन तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव में जीतने वाली पार्टी केंद्र की सत्ता पर भी काबिज हुई। भाजपा ने तीनों राज्यों के साथ आम चुनाव में भी जीत हासिल की।