सर्व आदिवासी समाज के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का कहना है कि 2018 में आदिवासियों ने सरगुजा और बस्तर में कांग्रेस पार्टी को भरपूर वोट दिया था.
लेकिन जिन अपेक्षाओं के साथ आदिवासियों ने वोट दिया था, कांग्रेस उन अपेक्षाओं को पूरा कर पाने में पूरी तरह असफल रही.
नेताम का कहना है कि माओवाद के नाम पर आदिवासियों के दमन रोकने, प्राकृतिक संसाधनों की लूट रोकने और आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण को लेकर आदिवासियों ने भारी उम्मीदें पाल रखी थीं. भूपेश बघेल ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
सरकार से आदिवासियों की नाराज़गी को इससे समझा जा सकता है कि बस्तर के इलाक़े में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले तक कम से कम 21 जगहों पर आदिवासी महीनों से प्रदर्शन कर रहे थे. इसी तरह राज्य के दूसरे छोर पर, हसदेव अरण्य के जंगल को बचाने के लिए आदिवासी दो साल से धरना दे रहे थे.
कांग्रेस सरकार ने किसी भी इलाक़े में प्रदर्शनकारियों से बात तक करने की कोशिश नहीं की. इन धरनास्थलों पर कांग्रेस का एक भी जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचा.
हसदेव अरण्य में तो कोयला खदानों को रद्द करने का वादा राहुल गांधी ने 2018 के चुनाव से पहले किया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद भूपेश बघेल की सरकार ने इसी इलाक़े में नए खदानों की स्वीकृति जारी कर दी.
बस्तर के सिलगेर में पुलिस कैंप के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर फायरिंग में तीन लोगों की मौत के बाद कई महीनों तक आदिवासी प्रदर्शन करते रहे और उन्होंने सरकारी मुआवजा तक लेना स्वीकार नहीं किया और आंदोलन करते रहे.