उर्दू अदब के बेहतरीन हस्ताक्षर हैं डॉ रौनक जमाल

उर्दू अदब के बेहतरीन हस्ताक्षर हैं डॉ रौनक जमाल

डॉ रौनक जमाल उर्दू अदब के बेहतरीन हस्ताक्षर हैं। अपनी रचनाओं के जरिए देश के कई कोने से अवार्ड और सम्मान के हासिल नगीनों से छत्तीसगढ़ अंचल के आंचल को सजा रहे हैं !

एक बेहद खूबसूरत मस्जिद के सेहन में अलसुबह रौनक ज़माल थी। शहर राजनांदगांव और आसपास के एतराफ से लोग अभी पहुंच ही रहे थे। हर आम ओ खास शरीक होना चाहता था, नई मस्जिद के इब्तेदाई नमाज में और शहादत हासिल कर लेना चाहते थे। वक्त की सुईयां सरक रही थी, इब्तेदाई नमाज ए फज़र की तरफ इसी वक्त पेश ईमाम के लिए बने हुजरे के बगल से एक शख्स लम्बे खूबसूरत बेहद अदब से खड़े होकर मुखातिब होते हैं, बाद सलाम, अल अजीजी मस्जिद तामीर के आगाज़ से लेकर अंजाम तक के सफर को चुनिंदा लब्जो और बेहतरीन लहजे में हाजरीन से गुफ्तगू करते हैं। मौज्जिम साहब के अकामत पढ़ने के बाद जमाती नमाज के लिए नियत कर फज़र की नमाज अदा करते है। इब्तेदाई लेकिन मुख्तरसी तकरीर करने वाले खूबसूरत और खूबसिरत से लबरेज शख्स कोई और नही डॉ रौनक जमाल थे। वहीं रौनक जमाल जो अजीज पब्लिक स्कूल के वाईस चेयरमैन और ट्रस्टी है। मशहूर उद्योग ABIS ( अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार ) अर्थात अमीरअली, बहादुरअली, इकबालअली, सुल्तानअली (आईबी ग्रुप ) के बहनोई है एवं हमारे शहर राजनांदगांव के जवांई है।

डॉ रौनक जमाल साहब का ननिहाल और ददिहाल बेहद मशहूर और मारूफ घराना रहा है !

डॉ रौनक जमाल साहब की पैदाईश 25 मई 1954 को जलगांव महाराष्ट्र में हुई थी। जमाल साहब के नाना हुजूर सैय्यदअली समदअली, दीवानी और फौजदारी मामलों के मशहूर वकील और मुजाहिद – ए – आजादी थे। वकील सैय्यदअली समदअली जंग – ए – आजादी में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लिया था। अली साहब को महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, कलाम साहब की सोहबत हासिल थी, अलबत्ता इनके साथ सियासी काम करने का मौका भी मयस्सर हुआ था। देश के इन नेताओं के साथ जंगे आजादी के लड़ाई की अगुवाई करने के जुर्म में ब्रिटिश हुकूमत ने अली साहब को छै महीने अहमदनगर जेल में बतौर आजादी के बंदी के तौर पर कैद में रखा था। 1947 में जब मुल्क आजाद हुआ तो जलगांव संसदीय क्षेत्र से एडव्होकेट सैय्यदअली समदअली मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट चुने गये, आजादी के बाद कई सालों तक सैय्यद साहब जलगांव संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। 1983 में जब उनके आंखों में परेशानी पेश आई तब उन्होंने सक्रिय राजनीति से किनाराकशी किया और घर में ही आराम करने लगे।

डॉ रौनक जमाल साहब का ननिहाल – ददिहाल बेहद मशहूर और मारूफ खानदान रहा है। जमाल साहब के झक्खड़ दादा औरंगजेब की फ़ौज में मुलाजिम थे। उर्दू, अरबी, फारसी के के अच्छे जानकार – तालीमयाफ्ता शहरी थे। बादशाह औरंगजेब से उन्हें कुरबत हासिल थी इसीलिए रिटायरमेंट के बाद भी मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपना दरबारी बनाया और जागीर अता किया, जागीर अता करने के कुछ ही साल बाद उन्हें नवाब के खिताब से नवाजा और दो गांव रनमचन एवं धनोरा जो अमरावती जिले के दरियापुर तालूके में आज भी मौजूद है, को बतौर मालगुजारी अता किया। डॉ रौनक जमाल के ददिहाल का माहौल बेहद अदबी था, डॉ साहब के दादा हुजूर गुलाम हुसैन उनके मंझले और छोटे भाई अब्दुल जलील, अब्दुल रसीद अच्छे शायर थे। जमाल साहब के वालिद नवाब गुलाम गौस असर साहब भी आला दर्जे के शायर थे। दादा – नाना के खानदान और वालिद नवाब गुलाम गौस असर साहब का ही असर है जो डॉ रौनक जमाल साहब के फितरत में जो अदब, सलाहियत और मासूमियत दिखाई देता है। लिखने – पढ़ने का शौक उन्हें विरासत मिला है। माशाअल्लाह ! रौनक जमाल साहब आज जिस मुकाम पर हैं उसमें उनके खानदान और पूरे घराने का बहुत बड़ा तआवुन रहा है।

डॉ. रौनक जमाल को न केवल दुर्ग – राजनांदगांव के अलावे छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत के लोग जानते हैं। उर्दू अदब के लिए डॉ रौनक जमाल को मुल्क के कमोबेश हर इलाके के लोग जानते हैं। उत्तरप्रदेश सरकार ने डॉ साहब के नायब किताब अब्बा जान के लिए अवार्ड – प्रशस्तिपत्र सहित नगद 10 हजार रूपयों से नवाजा है। डॉ रौनक जमाल साहब अब तक 24 किताबें उर्दू माध्यम से लिख चुके हैं। ये किताबें सारे मुल्क में पढ़ी जा रही है। पश्चिम बंगाल सरकार ने 2023 में मरहूम अहमद हासमी अवार्ड एवं 15 हजार रूपये से सम्मानित किया है। हमारे पहले, हमारे बाद और हमारे उम्र के लोग तो डाॅ रौनक जमाल को जानते – पहचानते ही हैं। इससे बढ़कर यह फक्र का विषय है , कि हमारी आने वाली नस्लें पिछले 20 वर्षो से छत्तीसगढ़ के उर्दू बाल भारती में इनके पाठ्यक्रम को पढ़ रही है।

डॉ रौनक जमाल को उर्दू भाषा में लिखने के लिए अनेक अवार्ड मिले हैं। पिछले दिनों हेती युनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका ने उन्हें सम्मानित करते हुए डाॅक्ट्रेट की उपाधि प्रदान किया है !

वर्ष 2020 – 2021 में कोरोना महामारी ने जो तबाही मचाई थी उसके कल्पना मात्र से रूह कांप जाती है। कोरोना महामारी देश के कोने – कोने में पहुंच कर लोगों को जो मौत का मंजर दिखाया है, वह इतिहास में काले अध्याय के तौर पर और लोगों के दिलों में जलजला के तौर हमेशा दर्ज रहेगा। डॉ रौनक जमाल ने अपने उम्दा लेखन शैली में एक शानदार नाटक कोरोना अदालत में लिखकर साहित्य प्रेमियों के लिए अनोखा नमूना पेश किया है। डॉ रौनक जमाल के शख्सियत में उर्दू साहित्य रचा – बसा है। अक्टूबर 2023 में राष्ट्रीय नाटक लेखन स्पर्धा सोलापुर ( महाराष्ट्र ) में आयोजित थी, जिसमें छत्तीसगढ़ के साहित्य क्षेत्र के अनमोल रत्न डॉ रौनक जमाल ने फिर से अपनी लेखनी विधा का लोहा मनवा कर साहित्य के आसमान में छत्तीसगढ़ के भाईचारे का परचम लहरा दिया।

डॉ रौनक जमाल अपनी सलाहियत और काबिलियत के बलबूते रचना और कृतियों का एक समृद्ध खजाना इजाद किया है –

उसी बेशकीमती – बेशूमार खजाने के अनमोल नगीने है 3 अफसाना संग्रह, 8 लघुकथाएं, 6 बाल कथाएं, 2 नाटक, 1 बाल उपन्यास, गाजर घास पर शिक्षाप्रद आलेख, गाजर घास, ग्रीन कैंसर, सैकड़ों कहानियां, बाल कहानियां, आलेख, नाटक का लेखन किया है। डॉ रौनक जमाल को लेखन विधा के लिए छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, मध्यप्रदेश और बंगाल जैसे सूबे से अवार्ड, ईनाम, और सम्मान मिल चुका है।

70 बसंत पार कर चुके रौनक जमाल आज भी उनके व्यक्तित्व से बहार झरते रहते रहतीं है। 70 की उम्र में भी मोर्चे पर तैनात किसी जांबाज सिपाही की तरह निर्भीकता से कलम चलाते हैं।

मुबारक हो डॉ रौनक जमाल बहुत – बहुत मुबारक हो !

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