सुबह के सात बजे हैंयह सब उद्घाटनबाज़ी का परिणाम है.” आसमान में थोड़े बादल हैं और हल्की बूंदाबांदी हो रही है. चंद महीने पहले बन कर तैयार हुई चौड़ी काली डामर वाली रामपथ सड़क खाली सी है.
इक्का-दुक्का दर्शनार्थी नज़र आते जा रहे हैं. शहर के लोकप्रिय सिविल लाइंस बस अड्डे पर ई-रिक्शा चालक सुबह की चाय पी रहे हैं और चर्चा अयोध्या में धंसती हुई सड़कों पर हो रही है.
हमारी मुलाकात ई-रिक्शा चालक बबलू से हुई. उन्होंने 13 किलोमीटर लंबे रामपथ की ओर इशारा करते हुए कहा, “साहब यह सड़क है ही नहीं. यहां जो गड्ढे हो रहे हैं यह सब उद्घाटनबाज़ी का परिणाम है.”
वे कहते हैं, “22 जनवरी के राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा वाले भव्य आयोजन के लिए जल्दी-जल्दी में निर्माण कार्य हुआ था. क्या और कितना मटेरियल लगा ये किसे पता?”
उन्होंने बताया, “इसी सड़क को बनाने के लिए हम लोगों का घर तोड़ दिया गया और पूरा मुआवज़ा भी नहीं मिला. यही कारण रहा कि भाजपा यहां से हार गई.”
22 जून को हुई बारिश के बाद सहादतगंज से नया घाट, अयोध्या तक जाने वाली रामपथ सड़क 10 से ज़्यादा जगहों पर धंस गई जिसके बाद सड़क के बीच कई गहरे और सुरंगनुमा गड्ढे हो गए.
रामपथ कॉरिडोर का निर्माण इसी साल 22 जनवरी को राम मंदिर उद्घाटन से ठीक पहले हुआ था.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, इस सड़क को बनाने में लगभग 624 करोड़ रुपये की लागत आई थी.
उद्घाटन से पहले हजारों करोड़ रुपए खर्च करके अयोध्या के विकास के दावे किए गए थे लेकिन जलभराव और धंसती सड़कों ने सभी पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
कई स्थानीय लोगों का कहना है कि राममंदिर उद्घाटन के लिए जल्दबाज़ी में विकास कार्य पूरा कराने की वजह से सड़कों का निर्माण मानकों के आधार पर नहीं हुआ है.
अहम सवाल यह है कि केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या के सौंदर्यीकरण और भव्य-दिव्य विकास को क्या विकास का दीर्घकालिक और टिकाऊ मॉडल कहा जा सकता है?
अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन से पहले जहां पूरे शहर में ड्रिल मशीनों और बुलडोज़र की आवाज़ें गूंज रही थी, वहीं राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली बारिश में अयोध्या में चारों तरफ घरों में जमा पानी निकालने के लिए सड़कों के किनारे लगे पम्पिंग सेट नज़र आ रहे हैं.
23 से 28 जून को हुई बारिश के बाद अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य द्वार पर जलभराव देखा गया.
इसके अलावा जलवानपुर, औद्योगिक क्षेत्र गद्दोपुर, कारसेवकपुरम और सिविल लाइंस में भी जगह-जगह पानी भर गया. लोगों के घरों के अलावा, कई सरकारी कार्यालयों में भी पानी भर गया.
हालांकि स्थानीय लोगों के अनुसार, सरयू के किनारे बसे इलाकों को छोड़ दिया जाए तो अयोध्या और फैजाबाद दोनों शहरों में बारिश के पानी का जमाव पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं होता था.
समाजवादी पार्टी के ज़िलाध्यक्ष पारसनाथ यादव ने मिडिया से कहा, “हिंदू धर्म में लिखा है कि किसी भी अधूरे मंदिर में ईश्वर की मूर्ति का प्रतिष्ठान नहीं होना चाहिए लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ लेने के लिए प्रतिष्ठान करके उद्घाटन कराया गया.”
वे कहते हैं, “सारी चीजें नम्बर दो करके सामान लगाया. सड़कें फट रही हैं, सीवर टूट रहे हैं, बाउंड्री गिर रही है. यह सब उसी का परिणाम है.”
अयोध्या में रहने वाले प्रोफ़ेसर अनिल कुमार सिंह सड़कों के धंसने और जलभराव का प्रमुख कारण जल्दबादी और अकुशल इंजीनियरिंग को मानते हैं.
प्रोफ़ेसर अनिल कुमार सिंह कहते हैं, “यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि इसके लिए किसी विशेषज्ञ से मदद नहीं ली गई है और बहुत जल्दबाजी में काम किया गया है. चूंकि 22 जनवरी को मंदिर का उद्घाटन होना था इसलिए बहुत सारे काम चलताऊ हुए हैं.”
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की पिछले साल मॉनसून सत्र में लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में भी अयोध्या में शुरू की गई कई परियोजनाओं पर सवाल खड़े किए गए थे.