विश्व इतिहास के आईने में 13 जुलाई 1984 को मिल परिसर में टीआई सीके त्रिपाठी की अगुवाई में वहशीं पुलिस ने आईन की धज्जियां उड़ाते हुए लाठीचार्ज किया और बेकसूर मजदूरों को गिरफ्तार किया !*
आपातकाल में बनी जनता पार्टी की सरकार ने 2-3 जून 1977 को दल्लीराजहरा के खदान मजदूरों पर गोलियां बरसाई थी, तब सीके त्रिपाठी राजहरा थाने में पदस्थ थे, कंधे पर दो फूल लगे थे। 13 जुलाई 1984 के दिन उनके कंधे पर तीन फूल लगे गये थे, लेहाजा टीआई त्रिपाठी फूलचार्ज में थे।
13 जुलाई 1984 का वह काला दिन इतिहास में हमेशा मनहूसियत के लिए याद किया जाता रहेगा। आज फिर एक महिला मजदूर बेहोश होकर गिर गई। खेती से कपास, रूई से धागा, धागे से कपड़ा बुनने की प्रक्रिया में मजदूरों को अत्यधिक तापमान में रहकर काम करना, हाड़ – मांस गलाना पड़ता था, गर्मी के दिनों में मजदूरों को पसीना के साथ अपना खून भी बहाना पड़ता था। यह जानलेवा काम कुछ घंटे या एक – दो दिनों की नही ताउम्र की नीयति थी। रूढ़ीवादी नौकरशाह – तकनीकीशाह इस दिशा में तकनीक विकसित करने से जी चुराकर बचते थे। स्टीम से बीएनसी मिल्स चलती थी, स्टीम से रेल इंजन भी कभी चलता था, रेल्वे ने अपनी गति को बनाए रखने के लिए युक्तियुक्तकरण के साथ यथोचित तकनीकी को आत्मसात कर लिया फलत: रेल्वे गतिमान है। रूग्ण बीएनसी मिल्स को बीआईएफआर भी कहा सुधार पायीं। निरंतर बिजली, पर्याप्त पानी, संवेदनशील तीमारदारी के अभाव में मिल की मौत हो गयीं। 1 जनवरी 1990 से 5 सितम्बर 2002 तक के राष्ट्रीय वस्त्र निगम ( एनटीसी ) के दस्तावेज का यदि बारीकी से पोस्टमार्टम ( अध्ययन – अवलोकन ) करने से सूरज की रौशनी की तरह साफ हो जायेगा कि मिल की मौत नही हत्या की गई है।
देवंतीनबाई को अस्पताल भेजने के बाद उसकी स्वास्थ्य के लिए चिन्तातुर श्रमिक तापमान और अनुचित कार्यदशा के विरोध में आम तले एकत्र थे, श्रमिक आज प्रबंधक से स्थाई समाधान चाहते।
उस दिन के अत्यधिक तापमान से देवंतीनबाई कार्यस्थल पर कार्य के दौरान मुर्छित होकर गिर पड़ी, इंसानी हरकत – सूधबूध का न होना मौत के मानिंद होता है। इस घटना की सूचना मिल के समूचे खाते में मुंहामुंही पहुंच गयीं मजदूर अपने – अपने खाते से निकलकर मिल के भीतर ही आम वृक्ष के नीचे पहुंचने लगे। देवंतीनबाई को अस्पताल पहुंचाना बेहद जरूरी था, क्योंकि उस महिला मजदूर के जीवन का प्रश्न था सभी श्रमिकों की सदइच्छा के बावजूद देवंतीनबाई को अस्पताल नही पहुंचा पा रहे थे, क्योंकि बीएनसी मिल्स में कोई एम्बुलेंस नही था। प्राथमिक उपचार के साधन और एम्बुलेंस के न होने से प्रबंधन के अनुचित श्रम व्यवहार एवं कारखाना अधिनियम 1948 की अवहेलना – अवमानना को आसानी से समझा जा सकता है। देवंतीनबाई का बेहोश होना पहली घटना नही थी। दो महीने के अन्तराल में यह चौथी घटना थी।
देवंतीनबाई के बेहोशी का आलम देखकर श्रमिक बेकाबू हो रहे थे, मजदूरों के बीच मौजूद मुखियाओं ने मजदूरों के आक्रोश को गगनभेदी नारों में तब्दील करने में कामयाब हो गये थे। नारों की गूंज पूरब में पंडित किशोरी लाल शुक्ल के आवास के पार जा रही थी, पश्चिम में कलेक्ट्रेट को भेदकर चांदमारी तक जा रही थी, उत्तर दिशा में आबाद मजदूर बाहुल्य मोतीपुर, नवागांव, ढाबा, चिखली, शांतिनगर, शंकरपुर पहुंच रही थी आमजन कौतूहलवश मिल गेट पहुंचने लगे थे। नारे की गूंज दक्षिण में बीएनसी मिल्स पूर्व संचालक राजाराम गुप्ता के आवास से होता हुआ नांदगांव, नंदई बसंतपुर के श्रमिकों तक जा रही थी।
मिल के भीतर के मुख्य द्वार के माथे पर लटकी रही घड़ी साढ़े पांच बजे रही थी दो पालियों के मजदूर समवेत स्वर में मांग रहे थे, जीएम गोविंद माथुर यहां आओ, यहां आओ…. ! जीएम अकेले नही आए पुलिस बल के साथ एसपी वीआर पेंढारकर के साथ आये उसके बाद पुलिस और प्रबंधक के सांठगांठ से मजदूरों पर जो जुल्मों – सितम ढ़ाया गया वह इतिहास में हमेशा कलंकित होता रहेगा। मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज किये छांट – छांट 75 मजदूर मुखियाओं को गिरफ्तार रात दो बजे जेल में बंद कर दिये।
ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के अन्तर्गत मजदूरों की नई यूनियन – राजनांदगांव कपड़ा मजदूर संघ का पंजीयन 3 जुलाई 1984 को हुआ ! प्रबंधक की यह जींद थी कि हम नई यूनियन से वार्ता नही करेंगे।