इंसान के गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अधिकारों को रौंदने की इजाजत किसी को भी नही दी जा सकती।

इंसान के गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अधिकारों को रौंदने की इजाजत किसी को भी नही दी जा सकती।

उत्तरप्रदेश सरकार ने 19 जुलाई 2024 को एक अधिसूचना जारी किया, आपको बता दें उत्तरप्रदेश सरकार ने अपने अधिसूचना में यह कहा है, कि जिस मार्ग से कांवड़िओ को गुजरना है, उस मार्ग पर स्थित समस्त, ढाबों, रेस्तरां, जलपानगृहो, भोजनालयों के मालिकों, शेयरधारकों और कर्मचारियों का नाम सार्वजनिक तौर दर्शित करना होगा।

हमेशा देर से पहुंचने वाली पुलिस इस बार समय से पहले पहुंच गई !

जब तक पुलिस अपने व्यवहार में प्रशंसनीय परिवर्तन नही कर लेती, तब तक यह जुमला उनके व्यवहार प्रणाली से चिपका रहेगा, कि पुलिस सदा विलम्ब से पहुंचती है। नाम प्रदर्शित करने के लिए उत्तरप्रदेश सरकार 19 जुलाई 2024 को अधिसूचना जारी करती है, जबकि अभिषेक सिंह एसएसपी मुजफ्फरनगर 17 जुलाई 2024 को बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तदनुसार सूचना चस्पा करवा देती है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने एसएसपी मुजफ्फरनगर को भी पृथक से नोटिस जारी किया है।

20 जुलाई 2024 को एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट, उत्तरप्रदेश के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई 2024 को याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट को सुनकर अपने अंतरिम आदेश के माध्यम से उत्तरप्रदेश सरकार के उक्त अधिसूचना को स्टे कर दिया था। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार को सरकार का पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देते हुए नोटिस भी जारी किया था।

कल 26 जुलाई 2024 को उत्तरप्रदेश सरकार ने पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के माध्यम से अपना जवाब – दावा प्रस्तुत किया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने अपने आर्गुमेंट में सरकार के 19 जुलाई 2024 के अधिसूचना के पक्ष में सरकार का दावा प्रस्तुत किया। पूर्व अटॉर्नी जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के ऑर्गुमेंट के श्रवण के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुनः यहीं कहा है, कि 22 जुलाई 2024 का अंतरिम आदेश आगामी आदेश तक निरंतरित रहेगा।

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