जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस केवी विश्वनाथन की डिवीजन बेंच क्या कहती है ….
We have no hesitation in holding that when an accused in under custody under PMLA irrespective of the case of which he is under custody. any statment under section 50 to same investigation agency is inadmissible against the maker.
सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से एलानिया लहजे में कहा है, कि धन शोधन निवारण अधिनियम की 50 के अधीन ईडी और पुलिस की हिरासत में दिया गया किसी भी आरोपी का बयान सबूत नही माना जायेगा।
जमानत नियम है, जेल अपवाद। क्या अभियोजन भी आरोपी की तरह आचरण करेगा ?
अभियोजन पक्ष को निष्पक्ष होना चाहिए आप किसी को भी को चुन – चुनकर नही रख सकते। अगर हम गवाह के बयानों को देखें तो उसकी भूमिका भी कविता जितनी ही है।
आप जितना बहस करेंगे उतनी ही टिप्पणी आप हमसे आमंत्रित करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट की ईडी पर टिप्पणी के बाद समूचे देश में चर्चा आम है।
ईडी की ही तरह सीबीआई, आईटी और अब महामहिम राज्यपाल भी सत्ता के निर्देश पर विपक्ष के लिए आफत बनते जा रहे हैं। जिस देश में प्रति घंटे 87 महिला – बच्चियों से दुष्कर्म होता हो, जहां 345 गायब होते हो, 170 लोगों का अपहरण होता हो, जिस देश में केवल एक घंटे में 3 लड़कियों की तस्करी होती हो, देश का मणीपुर सालों से जल रहा हो उस देश की राष्ट्रपति महोदया सिर्फ कोलकाता के लिए बोले तो उस देश की जनता उनका सेलेक्टिव एप्रोच देखकर हतप्रभ होकर खामोश हो जाती है।
सत्ता प्रतिष्ठान, सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, पत्रकार, वकील, बुद्धिजीवियों के सत्ता विरोधी आवाज जब बुलंद होते हैं तब उन पर यूएपीए लगा दी जाती है। जल, जंगल, जमीन के लिए लड़ रहे आदिवासी से मुठभेड़ के नाम पर जनसंहार करने से नही हिचकती, विरोध का स्वर यदि मुसलमान हो तो बुलडोजर चला दिया जाता है। विपक्षियों नेताओं मुख्यमंत्रियो को सबक सिखाने के लिए हाल के दिनों में बेजा इस्तेमाल ईडी, सीबीआई, आईटी और महामहिमों तक के इस्तेमाल होने लगा है।