मोदी सरकार में यह मुमकीन ही नही है, एक राष्ट्र एक चुनाव बल्कि लगभग नामुमकीन है।

मोदी सरकार में यह मुमकीन ही नही है, एक राष्ट्र एक चुनाव बल्कि लगभग नामुमकीन है।

*शेख अन्सार की कलम से…*

यह मेरा मनोभाव, मनोदशा या मन:स्थिति नही है, अपितु संवैधानिक जनित नियमों – प्रावधानों का प्रतिफलन है। यह विश्लेषणपूर्ण निष्कर्ष केवल मेरे ही पास है ऐसा भी नही है, यह राजनीतिक समीकरण समूचे देश के ज़ेहन में मौजूद हैं। सरकार के पास तो पहले से ही मौजूद हैं, उसके बावजूद सरकार ने ऐसा दंभपूर्ण घोषणा किया है, जिसे आगे चलकर हम खोखली घोषणा कहेंगे। इस सबके बावजूद सरकार ने ऐसी घोषणा क्यों कर रही। एक राष्ट्र एक चुनाव सरकार के इस असफल घोषणा के अपने निहितार्थ हैं। सरकार हंगामा खड़ा करना चाहती है, खेल बदलने की नाकाम कोशिश कर रही है, जो मुमकीन नही नामुमकीन है।

ऐसा नही है कि देश में एक साथ चुनाव हुए ही नही हैं, 1952, 1957, 1962,1967 आमचुनाव एक साथ सम्पन्न हुआ। उसके बाद देश की राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं, राज्य सरकारें कालान्तर में भंग – बर्खास्त होती रही है, उसके बाद राज्यों के चुनाव अलग – अलग होने लगे हैं। एक राष्ट्र एक चुनाव आपके प्रचार – प्रसार के कानफोडू तौर तरीके के बावजूद कुछ लोग नही करोड़ों सदस्य संख्या के अनुसार बहुत लोग कह सकते हैं मोदी है तो मुमकीन है मोदी सरकार एक राष्ट्र एक चुनाव का घोषणा किया है, तो कुछ बात होगी ऐसा कहकर बहुमत के ऑकड़े और तथ्यपरक बहस – मुबाहिसे से पलायन कर जाते हैं।

ऑकड़ो के धरातल के अनदेखापन के कारण मृगतृष्णा की भांति जलतरंग की मानिंद सुरीली स्वर जैसे कर्णप्रिय लग सकता है। लेकिन मोदी जी वह दो तिहाई बहुमत कहां से जुगाड़ोंगे ? इसके पहले तो संविधान आपको इजाजत नही दे रहा है। लोकतांत्रिक प्रणाली में देश का प्रधानमंत्री देश नही होता और न ही, उस देश का मुख्य न्यायाधीश अकेले संविधान हो सकता है। देश की जनता जानती है, सरकार के सरकारी पार्टनर जेडीयू, टीडीपी, एनसीपी, बीएसपी शिवसेना, निषाद पार्टी, एण्ड अन्य पार्टी मुख्य कलाकार के साथ साजिन्दे की भूमिका में रहेंगे यह संदेह से परे नही संदेहास्पद है। दूसरी ओर देश मे भाजपा – कांग्रेस सहित छै राष्ट्रीय पार्टियां हैं। जिसमें से कांग्रेस, आप, बसपा, नेशनल प्युपिल पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी शामिल है, जो भारतीय जनता पार्टी के सूरताल में शामिल न होकर अलग ही डंका बजा रहे हैं। इन राष्ट्रीय पार्टियों के अतिरिक्त क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जो संविधान की कोख से जन्मी है। भविष्य में क्या भ्रूण हत्या करोगे या कोख ही उजाड़ दोगे।

एक राष्ट्र एक चुनाव का प्रसंग भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी के मनकी बात में कभी उजागर न हुई हो लेकिन सरकार के मन बहुत पहले से मौजूद थी। पिछले दिनों भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली कमेटी की 18,626 पृष्ठ वाली भारी भरकर सिफारिश के आने के बाद मन में एक राष्ट्र एक चुनाव का शोशा बलवती हो गयी, लेहाजा सरकार की ओर से सूचना प्रसारण मंत्री अश्वनी वैष्णव ने घोषणा ही कर दिया।

कोविंद कमेटी के सिफारिश को लागू करने के लिए मोदी सरकार को संविधान संशोधन करना पड़ेगा। सरकार के सेहत की हालत के अनुसार संख्याबल में प्रबल नही है !

17 कानून सहित तकरीबन – तकरीबन 18 संशोधन करना पड़ेगा। अनुच्छेदों को बदलना पड़ेगा, इतनी संख्या में बदलाव संविधान संशोधन ही कहलायेगा। ऐसे मौके पर इंडिया गठबंधन संविधान संशोधन का नारा नभ में उछालने के साथ – साथ यदि धरातल तक पहुंचा दिया तो इंडिया गठबंधन की बात जनता की नज़रों में प्रमाणित हो जायेगा और भाजपा का तत्काल अपूर्णीय क्षति हो सकता है।

लोकसभा में – मोदी सरकार को संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत मतलब 363 सदस्य चाहिए, एनडीए गठबंधन के पास है कितने 293 तो कैसे होगा संविधान संशोधन ? मतलब लानत – मलानत के साथ मुश्तरका फजीहत अलग से होगा।

राज्यसभा में – राज्यसभा में 245 की उपस्थिति में दो तिहाई बहुमत का ऑकड़ा बैठता है 164 सदस्य एनडीए के पास सदस्य बल है कितना 113 सामान्य बहुमत से भी 10 कम जबकि दो तिहाई बहुमत से पूरे 51 सम्माननीय सदस्य कम है, संविधान संशोधन प्रस्ताव शोरगुल के साथ औंधे मुंह गिरेगा।

देश की एक बहुत बड़ी आबादी कह रहीं हैं। हमारी राय में एक राष्ट्र एक चुनाव से हमारी जिन्दगी में कोई बदलाव नही आने वाला है !

जिस देश -‌ दुनिया का सपना हम अपनी आंखों में देखते है, वह आपके एक राष्ट्र एक चुनाव हमें कहां दिखाई दे रहा है। आप तो केवल छै राष्ट्रीय दलों की गणना करते हो इसके आगे की सामाजिक गणना सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष को आता भी नही है। हमें तो आपके राष्ट्र में ही राष्ट्रीयता का अभाव नज़र है जबकि देश का दलित आदिवासी मजदूर किसान पूरी राष्ट्रीयता के साथ भारत जैसे विशाल भू-भाग में अपनी उपराष्ट्रीयताओ के इच्छा,आकांक्षाओं की लड़ाई में दिन रात जी जान से जुटे हुए हैं। मोदीजी, एक राष्ट्र एक चुनाव हमारे लिए बेमानी है। और हम यह भी जानते हैं आपके लिए भी केवल और केवल कुछ अरसे के लिए सत्ताकाल में वृद्धि के अलावा कुछ भी नही है।

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