जंग ए आजादी में अपनाएं असहयोग आन्दोलन की तर्ज पर सरकार के खिलाफ जन – आन्दोलन का बिगुल फूंकना पड़ेगा।

जंग ए आजादी में अपनाएं असहयोग आन्दोलन की तर्ज पर सरकार के खिलाफ जन – आन्दोलन का बिगुल फूंकना पड़ेगा।

लेखक – शेख अंसार की कलम से

चुनाव में धांधली हुई है, तो मुख्य चुनाव आयुक्त ( सीईसी ) के समक्ष साबित और संतुष्ट करना पड़ेगा, जिसकी संभावना लगभग न के समान है, देश की जनता अभी भूली नही है कि कैसे सीईसी राजीव कुमार की पदस्थापना सरकार ने की थी। सीईसी के यहां से कामयाबी नही मिलता देख आप इस चुनाव धांधली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाओगे, महंगा वकील जिरह करेंगे मुमकीन है, नतीजा फिर भी सिरफ ही निकले। क्योंकि इस पूंजीवादी सत्तातंत्र का एक हिस्सा न्यायपालिका है। अब आपके पास एक ही रास्ता बचता है, वह जनता की अदालत है।

हम बेहद साफगोई से कहना चाहते हैं भारत की तस्वीर इलेक्शन नही इंकलाब ही से बदलेगी।

मौलाना हसरत मोहानी ने इंकलाब जिन्दाबाद का नारा दिया, जिसे जन – जन के कंठ – हलक और भींची मुट्ठी तक पहुंचा कर शहीद – ए – आज़म भगतसिंह ने ब्रिटिश हुकूमत की चुले हिलाकर सारा आसमान गूंजा दिया, इंकलाब जिन्दाबाद का नारा आज हर लड़ने वालों का विरोध – प्रतिरोध का कारगर जन हथियार बन गया है।

बेरोजगारों का बेरोजगारी के आलम में जीना – मरना एक समान हो गया है। मंहगाई गरीबों के सपने को कुचलते हुए आसमान तक पहुंच कर अट्टहास कर तांडव कर रही है। आदिवासी – दलित जल जंगल जमीन से उजाड़ दिये गये है, अस्मिता आबरू इज्जत बचाने के लिए रोज बरोज मर – मर कर जी रहे हैं। चार लैबर कोड मजदूर की जिन्दगी को नारकीय बना दिया है। किसानों की दशा – दुर्दशा कार्पोरेट के रहम – ओं – करम पर टिकी हुई। देश को सजाने संवारने और चलाने वाले हमारे बुजुर्ग सेवानिवृत्त वित्ति ( पेंशन ) पाने के लिए दर – दर भटकने को अभिशप्त हैं। नारी शक्ति हमारे देश में अत्यंत श्रद्धा की पात्र होती है, जिन्हें पूजा जाता है, विशेष अवसर पर वंदन अभिनंदन अनुष्ठान के साथ प्रतिष्ठित की जाती है। लेकिन देश के 1150 वृद्धाश्रम में तकरीबन 97000 वृद्धजन शरण लेने को मजबूर है, जिसमें आधी संख्या महिलाओं की‌ हैं।

वास्तव में हरियाणा की बहुसंख्यक आबादी ने यदि कांग्रेस को वोट किया है, तो वे परिणाम से दुखी आक्रोशित जरूर होंगे एक बार उनके आक्रोश को आन्दोलन में बदलते हुए उनके भावानुरूप चुनावी धांधली के खिलाफ आन्दोलन छेड़िए जनशक्ति सर्वोपरि होती है।

एक पूंजीपरस्त सरकार के खिलाफ जनहित के मुद्दों को लेकर एक और दूसरा मध्यमार्गी नेतृत्व कितना आगे जायेगा उसकी सीमा ऐतिहासिक रूप से निर्धारित है। यह एक वर्गीय चेतना का सवाल है !

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