गोकरकोंडा नागा सांईबाबा के मौत ने अदालत को कटघरे में खड़ा किया !

कहां है संविधान ? और वह जेल मेनुवल ? जिसने सांईबाबा जैसे प्यारे इंसान को इंसानी सहुलियतो से वंचित किया यह हर इंसान का प्राकृतिक हक है। ये पूंजीवादी निज़ाम देह से असहाय, विचारों और हौसले से बेहद समृद्ध नये समाज रचना का सपना अपनी आंखों में संयोजने वाले काॅमरेड जीएन सांईबाबा अपनी तमाम जिन्दगी पूंजीवादी विचारधारा से वैचारिक और जमीनी फैसलाकुन लड़ाईयां लड़ते रहे हैं। हर क्रांतिकारी का मौत के साथ करार है, सांईबाबा के मौत ने समूचे पूंजीवादी निज़ाम और न्यायालय को जनता की अदालत में बेपर्दा कर दिया।

बंदी क्रांतिकारी की कविता मुक्ति का नग्मा बनेगी !

सांईबाबा की यह कविता जेल के बैरक से नही सेल में निरूद्ध काल में लिखी गई है। काॅमरेड सांई की यह कविता कालजयी है। सांईबाबा ने अपने अन्तर्मन में उपजे मनोभाव को बेहद सरल और निश्छल भाव से भविष्य की छाती में उखेरा है। जेल की चहारदीवारी में सांईबाबा का शरीर ही तो कैद था। कलम तो पूरी आजादी से चलती थी, क्रांतिकारी के विचारधारा को कोई शासक, कोई सरहद, कोई दीवारें, कोई सलाखें आज तक रोक पाई है। सांईबाबा को अफ़सोस रहा है कि कविता विदेशी भाषा में लिखा है, मातृभाषा में नही लिख पाए है, लेकिन उन्हें इस बात पर अगाध भरोसा भी था, जब कोई कविता पढ़ेगा तो मां समझ जायेगी।

( यह कविता प्रो. जीएन साईबाबा ने केंद्रीय जेल नागपुर के अण्डा सेल से माता की मृत्यु से 3 वर्ष पूर्व लिखी थी। )

माँ, मेरे लिए मत रोना

माँ, मेरे लिए मत रोना
जब तुम मुझे देखने आयी
तुम्हारा चेहरा मैं नहीं देख सका था
फाइबर कांच की खिड़की से
मेरी अशक्त देह की झलक
यदि मिली होगी तुम्हें
यक़ीन हो गया होगा
कि मैं जीवित हूँ अब भी।

माँ, घर में मेरी गैर मौजूदगी पर मत रोना

जब मैं घर और दुनिया में था
कई दोस्त थे मेरे
जब मैं इस कारागार के
अण्डा सेल में बंदी हूँ
पूरी दुनिया से
और अधिक मित्र मिले मुझे।

माँ, मेरे गिरते स्वास्थ्य के लिए उदास मत होना

बचपन में जब तुम
एक गिलास दूध नहीं दे पाती थी मुझे,
साहस और मजबूती शब्द पिलाती थीं तुम
दुख और तकलीफ के इस समय में
तुम्हारे पिलाये गये शब्दों से
मैं अब भी मजबूत हूँ।

माँ, अपनी उम्मीद मत छोड़ना

मैंने अहसास किया है
कि जेल मृत्यु नहीं है
ये मेरा पुनर्जन्म है
और मैं घर में
तुम्हारी उस गोद में लौटूंगा
जिसने उम्मीद और हौसले से मुझे पोषा है।

माँ, मेरी आजादी के लिए
मत डरना

दुनिया को बता दो
मेरी आजादी खो गयी है
क्या उन सभी जन के लिए आजादी पायी जा सकती है
जो मेरे साथ खड़े हैं
धरती के दुख का कारण लाओ
जिसमें मेरी आजादी निहित है।
— जी एन साईबाबा
( जेल में माँ से मुलाकात के बाद )

मुझे उम्मीद है कोई इस कविता को पढ़कर बता देगा, माफी चाहूँगा विदेशी जुबान में लिखने के लिए, जिसे तुम समझ नहीं सकती।

मैंने खुद को उस मीठी भाषा में लिखने की अनुमति नहीं है। जो तुमने मुझे शैशवा अवस्था में सिखाई थी।

प्यार के साथ,

तुम्हारा बच्चा

जीएन साईबाबा

अण्डा सेल, केंद्रीय जेल
नागपुर

1 दिसंबर, 2017

( मूल कविता अंग्रेजी में थी।अनुवाद-भारती )

अलविदा काॅमरेड गोकरकोंडा नागा सांईबाबा तुम हमेशा जीवित रहोगे हमारे संघर्षों में … !

सलाम – ए – सुबह …
14 अक्टूबर 2024

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