“शेख अंसार की कलम से”
महाराष्ट्र के एक चुनावी सभा को गृहमंत्री अमीत शाह सम्बोधित कर रहे थे। बोलते – बोलते अचानक से माननीय गृहमंत्री मंच के सामने बैठे किसी श्रोता के खड़े होने पर गुस्से में डांटते है। गृहमंत्री गुस्से में उस व्यक्ति से कहते हैं, बैठ जा भैईया… बैठ जा, अब आप कैमरे में भी आ गये हो आपका फोटो भी खींच गया है। मंच के सामने के ही कतार में बैठा व्यक्ति मुमकीन है भाजपा का कार्यकर्ता ही रहा होगा, या हो सकता है सामान्य जनता में से भी हो सकता है, अधिक देर तक एक ही पहलू में बैठे रहने के कारण हाथ – पैर सीधा कर हो या गृहमंत्री के ओजपूर्ण भाषण से उद्वेलित होकर अंगड़ाई ले रहा हो, ऐसी स्थिति में उसे देश का गृहमंत्री सार्वजनिक तौर पर ऐसे कैसे डांट सकते हैं ? मैंने ऊपर की पंक्ति में जरूर लिख दिया है, कि गृहमंत्री अचानक से गुस्सा हो गये लेकिन डांटते समय गृहमंत्री के भाव – भंगिमा से कदापि ऐसा नही लगा था कि गुस्सा उनको अचानक आया हो।
दूरदर्शन या चैनलों पर सभा और डांटने के इस प्रदर्शित – प्रसारित दृश्य को करोड़ों लोगों ने जरूर देखा होगा। फिर भी हम अटकलबाजी पर भरोसा क्यों करें, आईए जानते हैं जिन्होंने इस घटित दृश्य को नहीं देखा, उन्हें हम दिखाने का प्रयास करते हैं। वास्तव में डांटने की वास्तविकता क्या है ? सार्वजनिक सभा का मंच आठ से दस फीट की ऊंचाई वाली सुसज्जित होती है। मंच पर लगभग तीन फीट ऊंचाई वाली आसन होती है, खैर आसन की बात छोड़ दें क्योंकि माननीय गृहमंत्री खड़े होकर विपक्ष पर गरज रहे थे फिर अपने ही सामने बैठे व्यक्ति पर बरस पड़े। मान लेते हैं, बैठे व्यक्ति के खड़े होने पर ऊंचाई हो गयी छै फीट, इधर माईक सहित मंच की ऊंचाई 15 फीट फिर कैसे सामने खड़ा 6 फीट वाला श्रोता क्या ही दिक्कत – अड़चन उत्पन्न कर रहा था, कि गृहमंत्री डांट दिये। कोई यह तर्क भिड़ा सकता है, कि गृहमंत्री के गुस्से के लिए मैंने क्योंकर इतने पन्ने नाहक काले कर दिये, दरअसल मैं बताना चाहता हूं कि सत्ता का जनता के लिए किस प्रकार और किस स्तर का रवैय्या होता है। कोई यह सतही सवाल हमारी ओर भी उछाल सकता है, कि वह तो उनका ही कार्यकर्ता हैं, तो मैं बता दूं उनके कार्यकत्ता के लिए भी हमारे दिल में इंसानी मोहब्बत और हमदर्दी कायम है।