शेख अंसार की कलम से…
भिलाई इस्पात संयंत्र में काम करते हुए नियोगी जी पढ़ाई भी किया करते थे। प्रबंधक भिलाई इस्पात संयंत्र कोक ओवन के कर्मचारियों के हक़ – अधिकार की लड़ाई में शामिल होने को नियोगी जी का अपराध मानकर उन्हें संयंत्र से बर्खास्त कर दिया। तब यह नौजवान जैसे बीएसपी प्रबंधक को चिढ़ा रहा हो और चिढ़ाने के अन्दाज में प्रबंधक के सामने सीना तानकर उनके आंखों में आंखें डालकर कहा रहा हो तुमने मुझे बीएसपी से निकालकर मुझे छत्तीसगढ़ के गांव – गांव में जाने का सुअवसर प्रदान कर दिया। फिर छत्तीसगढ़ का यह जननायक गांव – गांव में घूमकर बकरी चराने का, रेडीमेड कपड़े बेचने का कार्य करने लगे ताकि कि, किसी तरह उदर पोषण भी होते रहे और लोगों से लगातार सम्पर्क कर भविष्य के संघर्ष की व्यापक संभावनाएं बनती रहे। इसी क्रम में नियोगी जी दानीटोला के पत्थर खदान में पत्थर तोड़़ने का भी काम किया। दानीटोला खदान में उस समय लगभग 208 श्रमिक काम करते थे। नियोगी जी यहां अपनी मूल पहिचान, योग्यता छुपाकर शंकर नाम से काम करते थे और ठेकेदार से दिगर मजदूरों की सुविधाएं और भलाई के लिए वार्ता किया करते थे।
25 जून 1975 को इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल घोषित किया जनसंगठनों के कार्यकर्ता विपक्षी दलों के नेताओं को सरकार गिरफ्तार करने लगी शंकरगुहा नियोगी को भी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम ( Maintenance of Internal Security Act ) में गिरफ्तार कर लिए गए।
कब तक मजदूर किसान की छाती से लहू बहता रहेगा ?
नियोगी जी को रायपुर सेन्ट्रल जेल के पुराने बैरक जिसे बड़ी गोल भी कहते हैं, उसके बैरक नम्बर 4 में रखें थे। यहीं उन्हें छत्तीसगढ़ के कई इलाके के बीसाली ( 20 वर्ष का सज़ा काट रहे ) बंदी मिले, जिनसे नियोगी जी अलग-अलग प्रकार की जानकारी लेते रहे। ग्राम सुखरी विकासखण्ड पिथौड़ा के सरमानंद गाडिया किसी अन्य प्रकरण में निरूद्ध थे, नियोगी जी का उनसे मुलाकात हुई, उन्हीं से प्रारंभिक तौर पर 1857 के क्रांतिकारी वीर नारायण सिंह के विषय में जानकारी मिली।नियोगी जी जेल से रिहा हुए अपने संघर्ष के व्यस्त जीवन से समय निकालकर साहित्यकार इतिहासकार हरि ठाकुर से मिलकर सोनाखान के वीर नारायण सिंह के विषय में और जानकारी एकत्र किया, डॉ रमेन्द्र मिश्र रविशंकर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष से मिलकर वीर नारायण सिंह पर लिखित सामाग्री/दस्तावेज की जानकारी चाही लेकिन कोई विशेष जानकारी नही मिल पायीं लेहाजा नियोगी जी अपने तई वीर नारायण सिंह के संघर्षगाथा को और विस्तार से समझने जानने के लिए बाकायदा यूनियन में साथियों से चर्चा पश्चात एक शोधयात्रा का योजना बनाकर तत्कालीन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के अध्यक्ष सहदेव साहू एवं अन्य साथियों के साथ सोनाखान गये। सोनाखान में वीरनारायणसिंह के वंशज के सदस्यों से मुलाकात कर शहीद वीरनारायणसिंह पर एक पुस्तिका लिखा उसी पुस्तिका को 19 दिसम्बर 1979 को गांधी मैदान के आमसभा के माध्यम से आमजनमानस तक पहुंचाया। आज दुनिया भर के लोग शहीद वीरनारायणसिंह की संघर्षपूर्ण जीवनगाथा को नियोगी जी के नजरिया और दृष्टि से देख रहे हैं। इसी पुस्तिका के आधार पर खदान में कमईया साथियों ने छत्तीसगढी सांस्कृतिक मंडली नवां अंजोर का गठन किया जो लोकगायक जनकवि फागूराम यादव की अगुवाई में ग्रामीण अंचलों में शहीद वीरनारायणसिंह के संघर्षगाथा का बेहतरीन प्रदर्शन करती रही है।
पूरी रात शहीद वीरनारायणसिंह के संघर्षपूर्ण जीवन को नाटक,गीत, प्रहसनो के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता था। कब तक मजदूर किसान के छाती से लहू बहता रहेगा इस जनप्रश्न का उत्तर – अंतिम दृश्य के तौर नवां अंजोर के सभी कलाकार एक-साथ मंच पर आकर जनघोष करते कि जब तक मजदूर किसान का राज स्थापित नही होगा तब तक।
मजदूर किसान दलित आदिवासी सहित आमजनों ने भगतसिंह, शंकरगुहा नियोगी, गांधी, वीर नारायण सिंह जैसे हमारे अनेकों साथियों जिन्होंने संघर्ष के मैदान में अपने प्राण की आहुति दिया है। उन्हें अपना शहीद मानकर उनके रास्ते पर चलने का प्रयास संघर्ष के मैदान में पूरी शिद्दत से कर रहे हैं। क्या सरकारों ने आज तक उन्हें शहीद का दर्जा दिला पाये ?
शेष कल के अंक में …