बच्चों की झूठी जानकारी देकर नौकरी पाने वाले व्याख्याता को बर्खास्त कर दिया गया है। मामला छत्तीसगढ़ के मस्तूरी विकासखंड स्थित शासकीय हाई स्कूल सोन में पदस्थ व्याख्याता नवरतन जायसवाल को दो से अधिक जीवित संतान होने की जानकारी छिपाकर नौकरी हासिल की थी। इस मामले तीन साल से कार्रवाई चल रही थी, अब व्याख्याता को बर्खास्त कर दिया गया है।
तीन साल लंबी जांच के बाद दोष सिद्ध होने पर 3 अप्रैल 2025 को यह कार्रवाई की गई। जिसमें छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मस्तूरी विकासखंड के शासकीय हाई स्कूल सोन में कार्यरत व्याख्याता नवरतन जायसवाल को सेवा से बर्खास्त कर दिया है।
उन पर आरोप था कि उन्होंने नियुक्ति के समय अपने जीवित संतान की सही जानकारी छिपाई थी। यह मामला राज्य के सरकारी सेवा नियमों के उल्लंघन से जुड़ा है, जिसमें स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि यदि किसी अभ्यर्थी की दो से अधिक जीवित संतान हैं और उनमें से कोई एक संतान 26 जनवरी 2001 या उसके बाद जन्मी हो, तो उसकी नियुक्ति अमान्य मानी जाएगी।
जानकारी के मुताबिक नवरतन जायसवाल की नियुक्ति वर्ष 2011 में शिक्षाकर्मी वर्ग-01 के पद पर हुई थी। उस समय उन्होंने नियुक्ति प्रपत्र में अपनी संतान की संख्या दो बताई थी। परंतु बाद में जांच में सामने आया कि उनके कुल चार जीवित संतान हैं, जिनमें से दो का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ है।
यह खुलासा होने के बाद मामला गंभीर हो गया और छत्तीसगढ़ लोक आयोग में वर्ष 2021 में इसकी शिकायत दर्ज कराई गई। शिकायत के आधार पर लोक शिक्षण संचालनालय ने मामले की जांच क्रमशः जिला शिक्षा अधिकारी, बिलासपुर और फिर संभागीय संयुक्त संचालक से करवाई। इस दौरान नवरतन जायसवाल को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया और उन्हें प्रतिरक्षा का अवसर प्रदान किया गया।
जवाब में उन्होंने यह तर्क दिया कि उन्होंने सामाजिक रूप से दो संतान गोदनामे के माध्यम से अन्यत्र सौंप दिए हैं, परंतु यह दलील संचालनालय ने अस्वीकार कर दी। विभाग का स्पष्ट मानना था कि संतान का जन्म और जीवित होना ही नियम के उल्लंघन की पुष्टि के लिए पर्याप्त है, गोदनामा इसका समाधान नहीं हो सकता।
तीन वर्षों तक चली इस जांच प्रक्रिया में कई स्तरों पर पत्राचार और सुनवाई हुई। अंततः सभी जांच रिपोर्ट में नवरतन जायसवाल पर लगे आरोप सिद्ध पाए गए, जिसके आधार पर 3 अप्रैल 2025 को उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का आदेश जारी किया गया।
इस निर्णय को छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग द्वारा पारदर्शिता और सेवा नियमों के पालन की दिशा में एक सख्त और स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह प्रकरण सरकारी सेवा में नैतिकता और सत्यता की अनिवार्यता को रेखांकित करता है, साथ ही यह भी दर्शाता है कि नियमों से कोई ऊपर नहीं होता।