छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस की तल्ख टिप्पणी: “डीएफओ को नहीं पता किस धारा में मुकदमा दर्ज करना है!”

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस की तल्ख टिप्पणी: “डीएफओ को नहीं पता किस धारा में मुकदमा दर्ज करना है!”

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में सोमवार को महामाया मंदिर परिसर स्थित कुंड में मृत मिले 23 कछुओं के मामले में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने डीएफओ (वन मंडलाधिकारी) की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “आपका डीएफओ कौन है, क्या पढ़ा है? आईएफएस रैंक का अफसर है, फिर भी उसे यह नहीं पता कि किस ऑफेंस में मुकदमा दर्ज करना है। धारा 9 तो इस मामले में लागू ही नहीं होती। धारा 39 और 49 कुछ और कह रही हैं। अपने डीएफओ से कहिए, तरीका समझे। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में अगर ऐसे ही काम करेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा।”

दरअसल, यह मामला रतनपुर के महामाया मंदिर परिसर के कुंड में 23 कछुओं की रहस्यमय मृत्यु से जुड़ा है। रतनपुर वन परिक्षेत्र कार्यालय ने 25 मार्च 2025 को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 39(1)(2)(3), और 49 के तहत पीओआर क्रमांक 17774/01 के आधार पर अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

सीसीटीवी फुटेज और सुरक्षा गार्ड के बयान के आधार पर जांच अधिकारी ने मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष सतीश शर्मा, कांग्रेस नेता एवं ट्रस्ट के ठेकेदार आनंद जायसवाल समेत कुल पांच लोगों को नामजद किया। इनमें से दो मजदूरों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, जबकि सतीश शर्मा समेत तीन आरोपी फरार हैं।

फरार आरोपी सतीश शर्मा ने अग्रिम जमानत याचिका हाई कोर्ट में दाखिल की थी, जिस पर सोमवार को सुनवाई हुई। आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि सतीश शर्मा पर शिकार का कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं है। उनका कहना था कि उन्होंने केवल मंदिर परिसर की सफाई के लिए ट्रस्ट के प्रस्ताव के अनुसार तालाब का ताला खोलने की अनुमति दी थी। सफाई के दो दिन बाद कुंड में मृत कछुए पाए गए। यह शिकार, तस्करी या टैपिंग का मामला नहीं है।

कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा कि क्या सफाई के दौरान फिशिंग की अनुमति दी गई थी? सरकारी पक्ष प्राथमिक साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा, जिसके चलते कोर्ट ने आरोपी सतीश शर्मा की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली।

यह मामला छत्तीसगढ़ में वन्यजीव संरक्षण, प्रशासनिक समझदारी और न्यायिक सख्ती के संतुलन को एक बार फिर से चर्चा में ले आया है।

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