रायपुर। कहावत है “दीया तले अंधेरा” – और ये कहावत रायपुर के प्रशासनिक गलियारों में बिल्कुल सटीक बैठती है। जहां एक ओर शासन पारदर्शिता और ईमानदारी के नारे लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक नई “परंपरा” जन्म ले चुकी है – मुलाकात टैक्स।
ताजा मामला एक प्रतिष्ठित संस्था का है। संस्था के प्रतिनिधियों ने एक उच्चाधिकारी से मुलाकात के लिए समय मांगा। समय तो मिला, लेकिन साथ में आया एक अप्रत्याशित निर्देश – “कोई ढंग का नजराना साथ लाइएगा।” नजराना यानी एक ऐसा उपहार जो अब औपचारिकता नहीं, बल्कि एंट्री टिकट बन चुका है।
प्रतिनिधियों ने 12 हजार रुपये का एक सम्मानजनक गिफ्ट खरीदा, लेकिन जैसे ही अधिकारी के पीए ने देखा, जवाब मिला – “नहीं चलेगा।” आदेश मिला – “जहां से खरीदा है, वहीं जाइए और वीडियो कॉल पर दिखाइए।” दुकान पहुंचे, वीडियो कॉल हुआ, और 35 हजार का गिफ्ट पास हुआ। तब जाकर ‘मुलाकात’ संभव हो सकी।
यह घटना सिर्फ एक उदाहरण है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, संस्थाओं में सदस्यों की नियुक्तियों के लिए बाकायदा रेट कार्ड बन चुका है। जितनी बड़ी पोस्ट, उतनी बड़ी रकम। और यह सब चल रहा है उस सिस्टम के नीचे, जिसे भ्रष्टाचार-मुक्त और जवाबदेह बताया जाता है।
संभव है, “बड़े साब” को इन गतिविधियों की जानकारी न हो। लेकिन अगर जानकारी नहीं है, तो यह और भी चिंताजनक है। तंत्र में ऐसी दरारें अंततः छवि और कार्यप्रणाली दोनों को प्रभावित करती हैं। और अगर जानकारी होते हुए भी चुप्पी है, तो यह सीधे-सीधे मौन सहमति मानी जाएगी।
मोदी सरकार के ‘360 डिग्री रडार’ की बात करें, तो वह वक्त आने पर बड़े से बड़े चेहरों को भी अनदेखा नहीं करता। रायपुर के लोग पहले भी देख चुके हैं कि किस तरह चमकते करियर एक झटके में ध्वस्त हो गए।
समय रहते चेत जाना ही बेहतर होगा – वरना अगली बार मुलाकात सिर्फ गिफ्ट की नहीं, बल्कि सिस्टम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की होगी।