चुनाव आयोग में सुधार और स्वायत्तता के बारे में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई गुरुवार को पूरी हो गई और संविधान पीठ ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है.
पीठ ने सभी पक्षों को लिखित रुप से अपनी दलीलें पेश करने के लिए पाँच दिनों का समय भी दिया है, जिसके बाद अदालत अपना फ़ैसला सुनाएगी.
चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में साल 2018 में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं. सुप्रीम कोर्ट ने इन सब याचिकाओं को क्लब करते हुए इसे पाँच जजों की संविधान पीठ को रेफ़र कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं, जबकि जस्टिस केएम जोसेफ़ इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे हैं.
चार साल बाद 18 नवंबर, 2022 से संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की जो कि गुरुवार (24 नवंबर) को ख़त्म हुई. इन याचिकाओं में माँग की गई थी कि चुनाव आयुक्त (ईसी) और मुख्य चुनाव आयुक्त(सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए.
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने सरकार से कई गंभीर सवाल किए.
अदालत ने यहां तक कह दिया कि हर सरकार अपनी हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है.
अदालत ने यह भी कह दिया कि देश को टीएन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़रूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश को इस समय टीएन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़रूरत है.
उस समय वो योजना आयोग के सदस्य थे जो कि अब नीति आयोग कहा जाता है. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया था.
वो 1990 से 1996 तक पूरे छह साल के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त थे. उन्हें चुनाव आयोग में कई ऐतिहासिक सुधारों के लिए जाना जाता है. दिसंबर 2019 में उनका निधन हो गया था.
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि हमें एक ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई कर सके.