रायपुर- सिर्फ जिम जाने से मसल्स नहीं बनते। बॉडी बिल्डिंग का मतलब कसरत नहीं। एक सीमा से परे इसका स्वास्थ्य से कोई वास्ता नहीं। मसल्स बनाता है विज्ञान। बॉडी बिल्डिंग का मतलब नशा है। इसका वास्ता मरने-मारने की इच्छाशक्ति से है। यह एक स्वस्थ और सुंदर शरीर की जरूरतों से कहीं आगे की बात है। यह बेहद खर्चीली है। जिम की ट्रेनिंग तो बॉडी बिल्डिंग के पूरे चक्र का एक छोटा सा हिस्सा है। हाड़तोड़ कसरत के साथ जी-तोड़ खाना और बिस्तर तोड़ आराम भी परम आवश्यक है। आज जो कुछ आप देखते हैं वह शरीर की सीमा को कहीं पीछे छोड़ इच्छा शक्ति और विज्ञान का कमाल है।
Intresting Facts : डब्लूडब्लूएफ में एक दूसरे को पटखनी देते नजर आने वाले बदन अंडों से नहीं, इंजेक्शन से बनाए जाते हैं। इस शरीर को ढह कर गिर जाने से बचाए रखने के लिए इन्हें ताउम्र दवा का सहारा लेना पड़ता है। हॉलीवुड स्टार सिलवेस्टेस्टोन को ऑस्ट्रेलिया में प्रतिबंधित दवाओं के साथ पकड़ा गया था। दवा उनके लिए कितनी जरूरी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो-चार दिन के दौरे पर भी उन्हें दवा साथ लेकर चलनी पड़ती है।
कसरत का चरम एक नशा होता है। यह ऐसी अवस्था होती है, जिसमें अकूत दर्द होता है और यही दर्द बॉडी बिल्डर की मानसिक और शारीरिक खुराक होती है। यह एक चेन रिएक्शन जैसा होता है। लोग जिम में जाते हैं फिट होने के लिए। कुछ दिन डंबल भांजने के बाद मांसपेशियों में आई कसावट उन्हें ‘थोड़ा साइज बढ़ाने’ की प्रेरणा देती है। फिर दूसरे के डोलों को देख जलन होती है। उसके बाद ‘उसके जितना साइज’ बढ़ाने की मुहिम शुरू होती है। हर एक पड़ाव तक पहुंचने के बाद दूसरा पड़ाव तय हो जाता है।
हर तारीफ के साथ जिम से लगाव और गहरा होता जाता है। पर एक हद तक साइज बढ़ने के बाद की यात्रा कठिन से कठिन होती चली जाती है। एक वक्त ऐसा भी आता है जब मसल कुंडली मार कर बैठ जाती है। एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी साइज आगे नहीं बढ़ता। फिर कुंठा और गुस्सा बढ़ता है और युवा फार्मूला 99 की शरण में पहुंच जाते हैं। वह जानता है कि इसके कितने भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं, पर वह कुछ समझना नहीं चाहता। उसे बस साइज की तलब लगी होती है।
सच मानें तो इसमें तारीफ के अलावा और कुछ खास हासिल नहीं होता। इस क्षेत्र का एक और दुखद पहलू यह है कि यहां प्रशिक्षित कोच की बहुत कमी है। बेतुकी कसरत और बेतुके खाने पर युवा बेतहाशा पसीना और पैसा बहा डालते हैं। बॉडी बनाने के पाउडर के नाम पर लोग युवाओं को बिस्कुट का चूरा और मीठा आटा थमा देते हैं। बड़ी कंपनियों के प्रोडक्ट में घटिया पाउडर मिला बेचते हैं। यह एक बहुत बड़ा बाजार है, जो बेरोकटोक चल रहा है, क्योंकि ज्यादातर युवा किसी कैमिस्ट की बजाए जिम के कोच या सप्लायर से माल लेते हैं। इसकी कोई रसीद कोई गारंटी नहीं होती।
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लेकिन यह सच है कि अगर आप प्रोफेशनल बॉडी बिल्डिंग में न घुसें तो जिम आपके तन और मन दोनों के लिए अच्छे दोस्त की तरह काम करता है। जिम जाने की कोई उम्र नहीं होती और आधुनिक विज्ञान कहता है कि इसका कोई वक्त भी नहीं होता। कोई जरूरी नहीं है कि आप सुबह-सुबह या शाम को ही जिम जाएं। अपनी सहूलियत के हिसाब से कोई भी सही समय चुन लें। हालांकि जिम शुरू करने से पहले किसी डॉक्टर से सलाह ले लेने में कोई बुराई नहीं है। अगर हड्डियों का कोई रोग है तो डॉक्टर से एक बार जरूर पूछ लें।
कैसे काम करता है फामरूला 99
खेल के इस मैदान में तीन चीजें सबसे ज्यादा चलती हैं। ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन (एचजीएच), इंसुलिन और स्टेरॉयड। इन्हें फामरूला 99 भी कहा जाता है। एचजीएच ऐसे बच्चों को दिया जाता है, जिनका हार्मोन की कमी से विकास नहीं हो पाता। अगर किसी वयस्क को एचजीएच दिया जाए तो उसकी मांसपेशियों का विकास दोबारा शुरू हो जाता है। यह स्टेरॉयड से काफी अलग है। स्टेरॉयड से मौजूदा कोशिकाओं का आकार बढ़ता है। यूं समझ लीजिए स्टेरॉयड साइज को बढ़ता है और एचजीएच नई कोशिकाओं का निर्माण करता है। अब इसमें बुरा यह है कि नई कोशिकाओं के साथ लीवर, किडनी, आंतें और दिल जैसे अंग भी बढ़ने शुरू हो जाते हैं, जो यकीनन खतरनाक हैं।
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अब बात करें इंसुलिन की। इंसुलिन एक सुपर स्टेरॉयड है, जो पोषक तत्वों और शर्करा को मांसपेशियों में भर देता है। अगर इसके साथ कड़ी कसरत की जाए तो बहुत तेजी से साइज बढ़ता है। सही ढंग से सेवन किया जाए तो यह किसी भी अन्य स्टेरॉयड के मुकाबले बहुत ‘अच्छे’ परिणाम देता है। लेकिन गलत समय, गलत ढंग या गलत मात्र में इसका सेवन करना मौत का कारण बन सकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से मधुमेह होना बिल्कुल तय है। इसके अलावा यह आपके शरीर के आंतरिक हिस्सों में चर्बी भी जमा कर देता है।
Intresting Facts : माल अन्दर, दम बाहर
एनाबोल – बॉडी की पंपिंग – लीवर पर हमला
मेनाबोल – नसें चमकाती है – खूनी दस्त
डेनाबोल – स्टेरॉइड – लीवर पर हमला
न्यूराबोल – ताकत – किडनी की शामत
क्लीन ब्यूट्रॉल – पानी का स्तर कम करने के लिए- रोगों की शुरुआत
हार्मोन पैच – साइज बढ़ाने के लिए – एलर्जी और हार्मोन असंतुलन
टेस्टेस्ट्रॉन – आक्रामकता – महिलाओं जैसी छाती, मुंहासे
डेका डूरोबलीन, सिस्टेस्ट्रॉन – ताकत और साइज-किडनी की शामत और ऐसे-ऐसे सैकड़ों उत्पाद स्टेरॉइड्स से सबसे ज्यादा नुकसान प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। पुरुष नपुंसक तक हो सकते हैं। इनका दूसरा हमला लीवर और किडनी पर होता है।
सप्लीमेंट्स
प्रोटीन पाउडर – शरीर की प्रोटीन जरूरतें पूरा करता है, सामान्यत: व्हे सप्लीमेंट को सबसे अच्छा माना
जाता है। गई
क्रेटीन – मसल्स का घनत्व बढ़ाता है।
ग्लूटामिन – कड़ी मशक्कत के दौरान शरीर में हुई रसायन की कमी को पूरा करता है, कहा जाता है कि यह मसल के साइज को गिरने से रोकता है।
काबरे – काम करने की ऊर्जा देता है।
अमीनो एसिड – एक्सरसाइज के तुरंत बाद लिया जाता है, प्रोटीन का ही काम करता है।
कैसा हो जिम
-सबसे जरूरी बात, वहां कोच कौन है, कैसा है
-अगर वेट लूज करना है तो जिम में ट्रेड मिल, साइकिल, बॉल, एब्स मशीनें देख लें, हैं या नहीं
-अगर वेट गेन करना है, मसल्स बनाने हैं तो अच्छी संख्या में डंबल्स, प्लेट्स, रॉड और मशीनें हों
-मशीनों के एंगल चेक कर लें, टेढ़ी-मेढ़ी मशीनें या आवाज करने वाली मशीनें ठीक नहीं होतीं
-अगर जिम के पास पार्क है तो बहुत अच्छी बात है
-बाकी आपकी जेब तय करेगी