10-11फरवरी दो दिवसीय रायपुर में संत सेनधाम मेला और महासम्मेलन
परमपिता परमात्मा द्वारा रचे गये ब्रह्माण्ड में सेपृथ्वी पर जब जब भी अमानवीय व्यवस्था से पूरा जीव समुदाय, समस्या ग्रस्त हो जाता है तो उसके हल के लिए संतो एवं महापुरूषों को आगे आना होता है। इसी कड़ी में पूरे विश्व में मानवधर्म को स्थापित करने तथा मानवता का पाठ पढ़ाने रामानंदचार्य के 12 शिष्यों में से एक संत शिरोमणि श्री सेन जी महाराज संत कबीर जी, रैदास जी के समकालिक संत हुए।
आज से सात सौ वर्ष पहले रींवा रियासत के बुंदेलखंड में महाराज वीरसिंह के शासन काल में यह राज्य अत्यंत समृद्ध एवं वैभवशाली राज्यों में एक था। बांधवगढ़ नरेश श्री वीरसिंह धर्मशाली, न्यायी, विद्वानों का आदर करने वाला, संतप्रिय व धार्मिक स्वभाव के थे। इसी समय बांधवगढ़ में श्री चंद जी नाई के घर भक्त शिरोमणि नाई जाति के मुकूट श्री श्री सेन जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 7357 के बैसाख मास के कृष्ण पक्ष के 12 वें तिथि दिन (रविवार) को ब्रम्हयोग, तुला लग्न, पूर्वा, आद्रप्रदा नक्षत्र में हुआ. श्री सेन जी महाराज बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। वे सत्संग प्रिय थे एवं साधु महात्माओं का सेवा करना उसका परम धर्म था। इनका नाम माता पिता द्वारा नंदा रखा गया । प्यार से लोग इन्हें नंदा महाराज कहने लगे। कालांतर में पिता श्री चंद जी ने नंदा को जवान होते देख इनका विवाह शुभ लग्न में, श्री मनराखन जी को सुंदर कन्या सौ. कां. गजरा बाई से सम्पन्न करा दिया गया।
श्रीचंद जी का परिचय महाराज वीरसिंह जी के राजभवन से होने के कारण वचपन में महाराज सेन जी अपने पिता के साथ राज परिवार के परिवारिक एवं राजनीतकि व मांगलिक कार्यों से जुड़े रहे। राज परिवार की सेवा में रात दिन व्यस्त रहने के कारण भगवान की कृपा से आपने जीवन यापन में उन्हें किसी भी प्रकार की दूसरों के सामने हाथ पसारने का दिन देखने को नहीं मिला। उनका जीवन सीधा साधा व उच्च था। वे प्रति दिन ब्रम्हमूहुर्त में स्नान ध्यान कर भगवान की पूजा व साधु संतों के सेवा व भजन कीर्तन में लगे रहते थे।
एक दिन की घटना है कि इसी नगर में, बाहर से आये हुए साधु महात्माओं की सत्संग हुआ। नंदा जी घर से निकलकर रोज की भांति राजा के घर आने वाले थे कि भक्त मंडली उनके घर के पास आकर भजन कीर्तन करने लगे। सेन (नंदा) महाराज से रहा नहीं गया के राज दरबार जाना छोड़ साधु महात्माओं की सेवा में तल्लीन हो गये।
महाराज वीरसिंह जी ने सिपाही द्वार सेन (नंदा) के घर बुलाने को संदेश भिजवाया, परंतु सिपाही ने उनके अपार सेवा भाव और प्यार को देखकर वापस राजमहल चले गये। इधर राजमहल से नंदा सेन ज को बाहर आते सैनिक ने देखा। चूंकि नंदा सच्चे उपासक और ईश्वर भक्त थे। भगवान क्षीर सागर में ध्या मग्न शेष शैया पर विराजमान लेटे हुए थे। जगत जननी माँ लक्ष्मी जी चरण दबा रही थी। उन्होंने अपने भ सेन की स्थिति देख लो। राजा नाराज न हो अतः भगवान विष्णु ने उक्त भक्त (सेन जी) की लाज रख
नंदा रूपी भगवान के मुख पर अलौकिक शांत भाव की किरण विद्यमान थी। उन्होंने महारा वीरसिंह की क्षौर कर्म किया, तेल मालिस व जमकर सेवा की। ऐसा आनंद सुख आज तक राजा को प्रा नहीं हुआ था। इसी दरम्यान भक्त मंडली के वापस जाने के पश्चात (नंदा) सेन महाराज राजमार्ग पर सेव करने के लिए तेज गति से राजमहल के लिये तत्काल रवाना हुए। क्योंकि नंदा जी को महल जाने बहुत विलंब 1 हो गया था।
यव दरवाजे पर पहुंचते ही राजमहल का सैनिक ने रोक कर पूछा कि आज तुरंत राजमहल के अंदर दूसरी “बार कैसे जा रहे हो? सहसा आपको कुछ हो तो नहीं गया है। सिपाहियों के मुंह से यह शब्द अचानक निकाल पड़े। सेन जी ने कहा कि मैं तो अभी पहली बार राजमहल आ रहा हूँ। सिपाहियों ने कहा कि भैया हम बुद्ध बनाने का प्रयास न करो। सेवा नंदा के राजा के पास पुनः जाने पर राजा वीरसिंह जी भी आश्चर्य चकित हो गये। उसे समझते देर नहीं लगा। राजा ने उन्हें अपने राज सिंहासन के पास आदर सहित बिठाया वे कहने लगे सेन जी आप सचमुच सच्चे ईश्वर भक्त है। आप महान व्यक्ति है। भगवान विष्णु के चमत्कारिक का को देखकर राजा समझ गये थे कि सेन के रूप में भगवान विष्णु का साक्षातदर्शन हुआ। महाराज वीरसिंह ने उसी दिन से सेन (नंदा) महाराज को सारे राजदरबारियों को बुलाकर उनका यथावत् राजपरिवार को परम्परा अनुसार राज दरबार में, राजगुरू की उपाधि से सम्मानित किया। सारे राजमहल में सेन (नंदा महाराज राजगुरू की जय जय कार होने लगी। राजा वीर सिंह जी ने कहा राज परिवार आपका जन्म जन्मान तक एवं आपके परिवार का ऋणी एवं आभार मानकर कृतज्ञ रहेगा।
★ भगवान ने आपकी प्रसन्नता के लिए, मंगल स्वरूप में दर्शन देकर हमारे सभी जन्मों के पाप कर्मों अंत किया है. उन्होंने तुरन्त सभासदो, मंत्रियों को बुलाकर सेन जी महाराज को राज सिंहान पर आरूढ़ का और महारानी सहित सेन महाराज के चरण रज का पान किया।
परमपिता परमात्मा द्वारा रचे गये ब्रह्माण्ड में सेपृथ्वी पर जब जब भी अमानवीय व्यवस्था से पूरा जीव समुदाय, समस्या ग्रस्त हो जाता है तो उसके हल के लिए संतो एवं महापुरूषों को आगे आना होता है। इसी कड़ी में पूरे विश्व में मानवधर्म को स्थापित करने तथा मानवता का पाठ पढ़ाने रामानंदचार्य के 12 शिष्यों में से एक संत शिरोमणि श्री सेन जी महाराज संत कबीर जी, रैदास जी के समकालिक संत हुए।
आज से सात सौ वर्ष पहले रींवा रियासत के बुंदेलखंड में महाराज वीरसिंह के शासन काल में यह राज्य अत्यंत समृद्ध एवं वैभवशाली राज्यों में एक था। बांधवगढ़ नरेश श्री वीरसिंह धर्मशाली, न्यायी, विद्वानों का आदर करने वाला, संतप्रिय व धार्मिक स्वभाव के थे। इसी समय बांधवगढ़ में श्री चंद जी नाई के घर भक्त शिरोमणि नाई जाति के मुकूट श्री श्री सेन जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 7357 के बैसाख मास के कृष्ण पक्ष के 12 वें तिथि दिन (रविवार) को ब्रम्हयोग, तुला लग्न, पूर्वा, आद्रप्रदा नक्षत्र में हुआ. श्री सेन जी महाराज बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। वे सत्संग प्रिय थे एवं साधु महात्माओं का सेवा करना उसका परम धर्म था। इनका नाम माता पिता द्वारा नंदा रखा गया । प्यार से लोग इन्हें नंदा महाराज कहने लगे। कालांतर में पिता श्री चंद जी ने नंदा को जवान होते देख इनका विवाह शुभ लग्न में, श्री मनराखन जी को सुंदर कन्या सौ. कां. गजरा बाई से सम्पन्न करा दिया गया।
श्रीचंद जी का परिचय महाराज वीरसिंह जी के राजभवन से होने के कारण वचपन में महाराज सेन जी अपने पिता के साथ राज परिवार के परिवारिक एवं राजनीतकि व मांगलिक कार्यों से जुड़े रहे। राज परिवार की सेवा में रात दिन व्यस्त रहने के कारण भगवान की कृपा से आपने जीवन यापन में उन्हें किसी भी प्रकार की दूसरों के सामने हाथ पसारने का दिन देखने को नहीं मिला। उनका जीवन सीधा साधा व उच्च था। वे प्रति दिन ब्रम्हमूहुर्त में स्नान ध्यान कर भगवान की पूजा व साधु संतों के सेवा व भजन कीर्तन में लगे रहते थे।
एक दिन की घटना है कि इसी नगर में, बाहर से आये हुए साधु महात्माओं की सत्संग हुआ। नंदा जी घर से निकलकर रोज की भांति राजा के घर आने वाले थे कि भक्त मंडली उनके घर के पास आकर भजन कीर्तन करने लगे। सेन (नंदा) महाराज से रहा नहीं गया के राज दरबार जाना छोड़ साधु महात्माओं की सेवा में तल्लीन हो गये।
महाराज वीरसिंह जी ने सिपाही द्वार सेन (नंदा) के घर बुलाने को संदेश भिजवाया, परंतु सिपाही ने उनके अपार सेवा भाव और प्यार को देखकर वापस राजमहल चले गये। इधर राजमहल से नंदा सेन ज को बाहर आते सैनिक ने देखा। चूंकि नंदा सच्चे उपासक और ईश्वर भक्त थे। भगवान क्षीर सागर में ध्या मग्न शेष शैया पर विराजमान लेटे हुए थे। जगत जननी माँ लक्ष्मी जी चरण दबा रही थी। उन्होंने अपने भ सेन की स्थिति देख लो। राजा नाराज न हो अतः भगवान विष्णु ने उक्त भक्त (सेन जी) की लाज रख
नंदा रूपी भगवान के मुख पर अलौकिक शांत भाव की किरण विद्यमान थी। उन्होंने महारा वीरसिंह की क्षौर कर्म किया, तेल मालिस व जमकर सेवा की। ऐसा आनंद सुख आज तक राजा को प्रा नहीं हुआ था। इसी दरम्यान भक्त मंडली के वापस जाने के पश्चात (नंदा) सेन महाराज राजमार्ग पर सेव करने के लिए तेज गति से राजमहल के लिये तत्काल रवाना हुए। क्योंकि नंदा जी को महल जाने बहुत विलंब 1 हो गया था।
यव दरवाजे पर पहुंचते ही राजमहल का सैनिक ने रोक कर पूछा कि आज तुरंत राजमहल के अंदर दूसरी “बार कैसे जा रहे हो? सहसा आपको कुछ हो तो नहीं गया है। सिपाहियों के मुंह से यह शब्द अचानक निकाल पड़े। सेन जी ने कहा कि मैं तो अभी पहली बार राजमहल आ रहा हूँ। सिपाहियों ने कहा कि भैया हम बुद्ध बनाने का प्रयास न करो। सेवा नंदा के राजा के पास पुनः जाने पर राजा वीरसिंह जी भी आश्चर्य चकित हो गये। उसे समझते देर नहीं लगा। राजा ने उन्हें अपने राज सिंहासन के पास आदर सहित बिठाया वे कहने लगे सेन जी आप सचमुच सच्चे ईश्वर भक्त है। आप महान व्यक्ति है। भगवान विष्णु के चमत्कारिक का को देखकर राजा समझ गये थे कि सेन के रूप में भगवान विष्णु का साक्षातदर्शन हुआ। महाराज वीरसिंह ने उसी दिन से सेन (नंदा) महाराज को सारे राजदरबारियों को बुलाकर उनका यथावत् राजपरिवार को परम्परा अनुसार राज दरबार में, राजगुरू की उपाधि से सम्मानित किया। सारे राजमहल में सेन (नंदा महाराज राजगुरू की जय जय कार होने लगी। राजा वीर सिंह जी ने कहा राज परिवार आपका जन्म जन्मान तक एवं आपके परिवार का ऋणी एवं आभार मानकर कृतज्ञ रहेगा।
★ भगवान ने आपकी प्रसन्नता के लिए, मंगल स्वरूप में दर्शन देकर हमारे सभी जन्मों के पाप कर्मों अंत किया है. उन्होंने तुरन्त सभासदो, मंत्रियों को बुलाकर सेन जी महाराज को राज सिंहान पर आरूढ़ का और महारानी सहित सेन महाराज के चरण रज का पान किया।