दिवाली पर जब पूरा देश रोशनी में नहाया हुआ था, तब 41 मजदूर एक अंधेरी सुरंग में कैद हो गए। ये मजदूर चार धाम के लिए नया रास्ता बना रहे थे। उत्तरकाशी की सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल का एक हिस्सा अचानक ढह गया और सभी मजदूर बाहरी दुनिया से कट गए।
रेस्क्यू एजेंसियों ने मजदूरों को बचाने की कवायद शुरू की। एक प्लान फेल हुआ, तो दूसरे पर काम शुरू हुआ। कभी सुरंग के मुहाने से तो कभी पहाड़ के ऊपर से खुदाई करके मजदूरों को निकालने की कोशिश की जाती रही।
12 नवंबर की सुबह 5.30 से 28 नवंबर की शाम 8.35 बजे तक यानी 17 दिन, करीब 399 घंटे बाद पहला मजदूर शाम 7.50 बजे बाहर निकाला गया। 45 मिनट बाद रात 8.35 बजे सभी को बाहर निकाल लिया गया। मजदूर खुद ही क्रॉल करके (घुटनों के बल) बाहर आए। सभी को एम्बुलेंस से अस्पताल भेजा गया।
रेस्क्यू टीम के सदस्य हरपाल सिंह ने बताया कि शाम 7 बजकर 5 मिनट पर पहला ब्रेक थ्रू मिला था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बाहर निकाले गए श्रमिकों से बात की। उनके साथ केंद्रीय मंत्री वीके सिंह भी थे।
सीएम धामी ने कहा- सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से कल एक-एक लाख रुपए की मदद दी जाएगी। उन्हें एक महीने का सवेतन अवकाश भी दिया जाएगा, जिससे वह अपने परिवार वालों से मिल सकें। पीएम मोदी ने भी फोन पर सभी मजदूरों से बात की।
सब मजदूर स्वस्थ्य
रेट स्नेपर्स वाली कंपनी नवयुग के मैन्युअल ड्रिलर नसीम ने कहा- सभी मजदूर स्वस्थ्य हैं। मैंने उनके साथ सेल्फी ली। उन्होंने बताया कि जब आखिरी पत्थर हटाया गया तो सभी मजदूरों ने जयकारे लगाए।
टनल से अस्पताल तक ग्रीन कॉरिडोर
रेस्क्यू के बाद मजदूरों को 30-35 KM दूर चिन्यालीसौड़ ले जाया गया। वहां 41 बेड का स्पेशल हॉस्पिटल बनाया गया है। टनल से चिन्यालीसोड तक की सड़क को ग्रीन कॉरिडोर घोषित किया गया था, जिससे रेस्क्यू के बाद मजदूरों को लेकर एम्बुलेंस जब अस्पताल जाए तो ट्रैफिक में न फंसे। यह करीब 30 से 35 किलोमीटर की दूरी है। इसको करीब 40 मिनट में तय किया गया।
21 घंटे में की 12 मीटर खुदाई
इससे पहले, सिल्क्यारा साइड से हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में लगे रैट माइनर्स, हादसे के 17वें दिन दोपहर 1.20 बजे खुदाई पूरी कर पाइप से बाहर आ गए। उन्होंने करीब 21 घंटे में 12 मीटर की मैन्युअल ड्रिलिंग की। 24 नवंबर को मजदूरों की लोकेशन से महज 12 मीटर पहले ऑगर मशीन टूट गई थी। जिससे रेस्क्यू रोकना पड़ा था।
इसके बाद सेना और रैट माइनर्स को बाकी के ड्रिलिंग के लिए बुलाया गया था। मंगलवार सुबह 11 बजे मजदूरों के परिजन के चेहरों पर तब खुशी दिखी, जब अफसरों ने उनसे कहा कि उनके कपड़े और बैग तैयार रखिए। जल्द ही अच्छी खबर आने वाली है।
उत्तरकाशी टनल में रैट माइनर्स ने कैसे काम किया
रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की। ये बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे। ट्राली से एक बार में तकरीबन 2.5 क्विंटल मलबा लेकर बाहर आते थे। पाइप के अंदर इन सबके पास बचाव के लिए ऑक्सीजन मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए विशेष चश्मा और हवा के लिए एक ब्लोअर भी मौजूद रहता था।