न खाऊंगा,न खाने दूंगा की तर्ज़ पर एक और डायलाग…

न खाऊंगा,न खाने दूंगा की तर्ज़ पर एक और डायलाग…

क़मर सिद्दीक़ी

न खाऊंगा,न खाने दूंगा की तर्ज़,और रायमिंग पर साहेब ने एक और डायलाग मारा था,न कोई घुसा है,और न घुसने देंगे।
पर इस जुमले का भी वही हश्र हुआ , जो पहले वाले का हुआ था।
अब नई ख़बर ये है कि,चाइना अक्साई चीन में सुरंगें बना रहा है,इसके अलावा उसने अपने नए नक्शे में अक्साई चीन सहित अरुणाचल प्रदेश को भी हड़प लिया। इधर भक्त “ज़मीन” को छोड़ “चांद” की बातों में अपनी सफलता खोज रहे हैं। उनकी बातें सुन कर तो ऐसा मुग़ालता होने लगता है जैसे चंद्रयान की सफल लैंडिंग साहेब के हाथों वाले रिमोट की कमांड के बदौलत संभव हो पाई।
श्रेय लेने में तो इनका कोई सानी नहीं। देश- विदेश,धरती-आकाश कहीं भी कुछ शुभ घट जाए तो उसमे इनकी प्रत्यक्ष, या परोक्ष भूमिका ज़रूर रहती है।

ये भी एक ख़बर है कि,भारत-पाक वनडे मैच की सारी टिकटें विंडो खुलने के 2 मिनट के भीतर बिक गईं। आईसीसी को भी पता है कि,लाभ कहां से लेना है,और कितना लेना है। यानी उसके लिए ये इवेंट सब से अधिक लाभकारी होता है। ये ऐसा ही है जैसे “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” वाले दल को दो समुदाय के बीच के इवेंट का इंतेज़ार रहता है। उनकी भरसक कोशिश होती है कि,कम से कम चुनाव के आस-पास एक-दो इवेंट तो इनके बीच होने ही चाहिए,जिससे कि,सियासी कमाई की जा सके।

सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा। चंद्रयान द्वारा चंद्रमा की पूरी जानकारी उपलब्ध भी नहीं कराई कि,एक तथा-कथित स्वामी ने वहां हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव रख दिया, वो भी साहेब की मार्फत! ये वही स्वामी जी हैं जिन्होंने लड्डू का भोग लगवा कर कोरोना को देश से बिदा करने का पुण्य कार्य अंजाम दिया था। विदेश में जीन्स और हाई हील्स के जूते पहन समुंद्रीय बीच में सैर सपाटा करने वाले इस स्वामी से सवाल किया जाना चाहिए कि,तुम्हारे प्रवचन से प्रभावित हो कर कितने लोगों ने सत मार्ग अपनाया? जवाब आएगा 0। क्योंकि इन्होंने आध्यात्म,और धर्म से अधिक सियासी प्रवचन पर काम किया है। इनकी दलील है कि,इससे पहले कि, चांद पर किसी और का कब्ज़ा हो,हमे उसके पहले ही राजधानी की घोषणा कर उसे क़ानूनी जामा पहना देना चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि,इनकी अपनी कोई औक़ात नहीं, पर इनके बयान से देश-विदेश में भारत की जग हंसाई ज़रूर होती है। लगता है स्वामी जी बारिश के मौसम में पड़ने वाली भीषण गर्मी को बर्दाश नहीं कर पाए।

घरेलू गैस सिलेंडर पर 200 रुपयों की कमी,लोगों को राहत पहुंचाने के लिए है,या फिर आइंदा आने वाले चुनावों में अपने लिए राहत की तलाश?,कहना मुश्किल है। पर सवाल तो बनता है कि, जब जनता महंगाई लो ले कर चीख़ती है तो, वो चीख़2 कर कहते हैं कि,पेट्रोलियम कंपनियां हमारे नियंत्रण से बाहर हैं,तो भाई ये बताओ कि, अब कैसे नियंत्रण कर लिया?,और अगर ये अपने जेब से दी जाने वाली सब्सिडी है,तो पहले क्यों नहीं दी? आप तो ये बताइए कि,ईवीएम के अलावा और क्या2 आपके नियंत्रण में है? जब मफलर मैन कोई चीज़ मुफ्त में दे तो भीख,और जब आप मुफ्त का अनाज बांटों तो मदद! गुजरात में कोई भी सेवा मुफ्त नहीं,पर उसका बजट घाटे में,और दिल्ली में बिजली,बस,पढ़ाई,
मेडिकल मुफ्त मगर सरकार फायदे में। इसको न्यायोचित ठहराने के लिए कौन सी कहानी आप सुनाने वाले हैं? सुना है फिर उज्ज्वला स्कीम आरम्भ करने की तैयारी है। यानी फिर मृगतृष्णा का नज़ारा सामने दिखाई देगा।

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