छत्तीसगढ़ के जनसंगठन और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अपने इतिहास और परम्परा के अनुसार शहीद वीरनारायण सिंह का शहादत दिवस 19 दिसम्बर को ही मनाती रही हैं।

छत्तीसगढ़ के जनसंगठन और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अपने इतिहास और परम्परा के अनुसार शहीद वीरनारायण सिंह का शहादत दिवस 19 दिसम्बर को ही मनाती रही हैं।

शेख अंसार की कलम से….

  • शहीद वीरनारायण सिंह का शहादत दिवस छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अपने निर्माण काल 19 दिसम्बर 1979 को पहली बार रायपुर में मनाया।
  • दूसरी मर्तबा शहीद वीरनारायण सिंह शहादत दिवस का कार्यक्रम 19 दिसम्बर 1980 को किसान आन्दोलन का केंद्र रहे बालोद में मनाया।
  • तीसरा शहीद वीरनारायणसिंह शहादत दिवस विकेन्द्रीय तरीके से बाराद्वार, हिर्री माइंस, नंदनी माइंस और दल्लीराजहरा में 19 दिसम्बर 1981 को शहीद वीरनारायणसिंह शहादत दिवस मनाया।
  • 19 दिसम्बर 1979 से 19 दिसम्बर 2024 तक छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा एवं अन्य जनसंगठनों द्वारा शहीद वीरनारायणसिंह का शहादत दिवस 19 दिसम्बर को ही मनाया जा रहा है।

मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह की अगुवाई में केवल एक बार 19 दिसम्बर 1982 को वीरनारायण सिंह का शहादत दिवस दल्लीराजहरा में मनाया

19 दिसम्बर 1982 के बाद शहीद वीरनारायणसिंह का सरकारी आयोजन 10 दिसम्बर को ही आयोजित होती है।

ब्रितानिया हुकूमत ने वर्तमान जयस्तंभ चौक रायपुर में 19 दिसम्बर 1857 को वीरनारायण सिंह को फांसी के फंदे पर लटकाया था। 19 दिसम्बर 1979 को पहली बार शहीद वीरनारायण सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर शंकरगुहा नियोगी की अगुवाई में शहीद वीरनारायण सिंह के विरासत की अगली पीढ़ी जुलूस की शक्ल में शहीद वीरनारायण सिंह का रास्ता अमल करो का नारा लगाते हुए गांधी मैदान की ओर कदमताल के साथ बढ़ रहे थे।

करीब 45 वर्ष पहले जयस्तंभ चौक रायपुर से 19 दिसम्बर 1979 को एक बेहद अनुशासित रैली की शुरुआत होती है। जुलूस में शामिल हो रहे लोगों की गिनती करते – करते एलआईबी के रंगरूट थक गये थे। जुलूस के साथ – साथ चल रही श्रमिक यूनियन की पेयजल टैंकर से लोग पानी पी लेते थे। मध्यप्रदेश पुलिस के पुलिस कर्मी भी इसी टैंकर से अपनी प्यास बुझा रहे थे। जुलूस आकर्षक का केन्द्र बना हुआ था। जितने लोग जुलूस में चल रहे थे, करीब – करीब उतने ही लोग इस अनोखे जुलूस को देखने सड़कों पर निकल पड़े थे। इससे पहले ऐसा जुलूस रायपुर के संभागीय हुक्मरानों ने भी नही देखा था। अविभाजित मध्यप्रदेश का अघोषित राजधानी के मानिंद रायपुर का रूतबा हुआ करता था। जुलूस में शिकरत कर रही महिलाएं लाल रंग की साड़ी हरे रंग का पोलखा पहिने हाथो में लालहरा झण्डा लहरा रहीं थीं और पुरुष हरे हाफपैंट और लाल रंग का शर्ट एकदम लहू की तरह लाल रंग का शर्ट धारण किये हुए थे। पैरों में संघर्ष से प्राप्त बीएसपी द्वारा प्रदत्त सेफ्टी जूते और सिर पर हैलमैट समुच्चय दृश्य आकर्षक नज़ारा पेश कर रही थे। जुलूस की अगुवाई शहीद – ए – आज़म भगतसिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित मन्मथनाथ, ठाकुरदास बंग, शंकरगुहा नियोगी, जनकलाल ठाकुर कर रहे थे। दल्लीराजहरा के 10 हजार खदान मजदूरों के साढ़े सात सौ चयनित वालिंटियर्स किसी प्रशिक्षित – सुसज्जित जनसेना के मानिंद कद़मताल करते आगे बढ़ रहे थे। लोकगायक जनकवि फागूराम यादव की वह सुमधुर पहाड़ी आवाज के साथ चल मजदूर, चल किसान, देश के हो महान के जनगीत के साथ कद़मताल मिलाते समूचा जुलूस थिरक – थिरक कर लेकिन मजबूती से आगे बढ़ रहे थे।

लाल हरा की यूनियनों ने 19 दिसम्बर 1979 के दिन गांधी मैदान की आमसभा में इतिहास में दबाये – छिपाये गये शहीद वीरनारायण सिंह के संघर्षपूर्ण गौरवगाथा को एक पुस्तिका का प्रकाशन कर उजागर किया और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ महिला मुक्ति मोर्चा के गठन की घोषणा किया !

जुलूस गांधी मैदान में पहुंच कर सभा में परिवर्तित हो गयी छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के नेतृत्व में लगभग आधा दर्जन यूनियनों ने अपने राजनीतिक मोर्चे के तौर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के गठन का घोषणा किया। जिसे छत्तीसगढ़ का मजदूर किसान दलित आदिवासी वंचित तबका अपना स्वाभाविक संगठन तो मानते ही हैं। भारत का चुनाव आयोग ने भी पंजीकृत राजनीतिक दल की श्रेणी में वर्गीकृत किया है।

शेष कल के अंक में … !

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