Avatar The Way Of Water Review: अद्भुत, अलौकिक, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, पढ़िए ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ का रिव्यू

Avatar The Way Of Water Review: अद्भुत, अलौकिक, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, पढ़िए ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ का रिव्यू


किसी हिट फिल्म का सीक्वल बनाना आसान नहीं होता। और, सीक्वल अगर ऐसी फिल्म का हो जिसने सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई का रिकॉर्ड बनाया हो तो फिर तो समझा जा सकता है कि चुनौती कितनी बड़ी है। चुनौतियां को पार करने में ही इंसान की असल काबिलियत का प्रमाण मिलता है और 68 साल के हो चुके निर्माता, निर्देशक जेम्स कैमरून की नई फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ देखने के बाद समझ आता है कि इंसान जो सोच सकता है, वह हासिल भी कर सकता है। ये फिल्म न सिर्फ इंसानी कल्पनाओं की उड़ान है बल्कि विश्व सिनेमा का एक नया अध्याय, एक नया मोड़ और एक ऐसा नया उदाहरण भी है जिसमें सिनेमा का भविष्य छिपा हुआ है। फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ देखना एक अनुभूति है, खासतौर पर अगर आप इसे आईमैक्स सिनेमाघर में देख रहे हैं। दर्शक को अपने साथ समंदर की लहरों, इसकी गहराइयों और इसके जीव जंतुओं की दुनिया में बहा ले जाने में निर्देशक जेम्स कैमरून पूरी तरह सफल रहे हैं। फिल्म इतनी अद्भुत, अलौकिक, अकल्पनीय और अविश्वसनीय है कि बाकी किसी चीज पर दर्शक का ध्यान ही नहीं जाता।

फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ देखते समय यूं लगता है कि हम हिंदी सिनेमा के उस डीएनए का हॉलीवुड अवतार देख रहे हैं जिसमें पारिवारिक मूल्यों, मानवीय संबंधों और सामाजिक अवधारणाओं को शुरू से पुष्ट किया जाता रहा है। कहानी उसी पैंडोरा की है जहां धरती के इंसानों को पहले एक बेशकीमती खनिज की तलाश थी, लेकिन अब कहानी 10 साल आगे आ चुकी है। धरती इंसानों के रहने लायक नहीं बची है और तलाश है एक ऐसे ग्रह की जहां इंसानों की बस्तियां बसाई जा सकें। पूरी तरह से नावी बन चुके जेक सली और उसकी नावी प्रेमिका नेतिरी का परिवार बढ़ रहा है। दो बेटे हैं। एक बेटी है। और, एक गोद ली हुई बेटी भी। साथ में एक इंसानी किशोर भी है जिसे इंसानों से ज्यादा नावी समुदाय के बीच रहना भाता है। कर्नल माइल्स भले पिछली फिल्म में मर गया हो लेकिन उसकी यादों और उसके डीएनए से उसका अवतार बनाया जा चुका है। उसकी टुकड़ी भी नए अवतार में हैं। इनका मकसद है जेक सली को तलाशना और उसे खत्म करना।

विकास के सिद्धांतों का नया अवतार
फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ सिर्फ एक कहानी नहीं है। इसमें इतनी क्षेपक कथाएं हैं कि इनमें से हर एक का अलग विस्तार किया जा सकता है। भारतीय संस्कृति में शुरू से पढाया जाता है कि खुद से पहले परिवार, परिवार से पहले समुदाय और समुदाय से पहले देश होना ही चाहिए। जेक सली यही करता है। अपने अहं को त्याग कर वह परिवार बचाने की कोशिश करता है। समुदाय संकट में आता है तो वह अपने परिवार की खुशियां कुर्बान कर देता है। जंगलों से निकलकर वह एक ऐसे द्वीप पर आता है जहां के लोगों का पूरी जीवन पानी पर निर्भर है। सली परिवार इस नए वातावरण के लिए खुद को अनुकूलित करने का पूरा प्रयास करता है। डार्विन के विकास के नियमों के मुताबिक ये अनुकूलन ही उन्हें उत्तरजीविता के नियम तक ले आता है। और, एक संदेश है प्रकृति के साथ सामंजस्य का। अब तक खनिज पदार्थ खोजते रहे धरती के वैज्ञानिक यहां व्हेल मछली के मस्तिष्क से वह द्रव निकालते दिखते हैं जिससे उम्र को मात दी जा सकती है। लेकिन, ये बात पानी को अपना जीवन बना चुके समुदाय को समझ नहीं आती, उन्हें लगता है कि इस समुदाय की ही एक व्हेल हिंसक हो चुकी है।

नाट्य शास्त्र के नौ रसों से आगे का अवतार
परत दर परत खुलती इस कहानी में श्रृंगार रस नए कबीले के मुखिया की बेटी लेकर आती है। स्पाइडर के सहारे इसमें हास्य उभरता है। कर्नल माइल्स का स्थायी भाव ही रौद्र है। नेतिरी के शोक और पायकन की कहानी से करुणा उपजती है। सली के दोनों बच्चों में उत्साह का भाव है तो वीर रस भी सामने आता है। वीभत्स और भयानक रस को लाने के लिए जेम्स कैमरून इंसानी फितरत का सबसे घृणित रूप भी सामने लाते हैं। नाट्य रसों के अतिरिक्त विस्तार यानी वात्सल्य और भक्ति रस का भी फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ में समुचित मिश्रण है लेकिन इन सारे स्थायी भावों और रसों पर सबसे भारी है फिल्म में शुरू से लेकर आखिर तक मौजूद रहने वाला स्थायी भाव आश्चर्य। जी हां, फिल्म में ये अद्भुत रस जगाने के लिए ही कैमरून ने अपने जीवन के पिछले 13 साल इस फिल्म को दे दिए हैं।

सिनेमा का तीन घंटे से भी लंबा अवतार
तीन घंटे से भी ज्यादा लंबी फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ की कहानी लिखने में में जेम्स कैमरून ने अपने सहयोगियों रिक जफा, अमांडा सिल्वर, जोश फ्रीडमैन और शेन सलेरनो के साथ जो मेहनत की है, उसने इस ‘अवतार’ सीरीज का एक नया अवतार दर्शकों के सामने पेश कर दिया है। पिछली फिल्म में जो कुछ बनावटी सा दिखता रहा है, वह अब प्राकृतिक सा लगने लगा है। पैंडोरा की दुनिया को समझने, बूझने और उसके साथ सामंजस्य स्थापित करने में दर्शकों को अब जरा सा भी वक्त नहीं लगता। हालांकि, कहानी को मुद्दे पर आने में थोड़ी देर लगती है और सली परिवार पर आए संकट के बाद पूरे परिवार के दूसरे समुदाय के बीच शरण लेने तक की कहानी दर्शकों के धैर्य का भी इम्तिहान लेती है लेकिन एक बार कहानी सम पर आती है तो फिर इसकी पटकथा आपको सीट से हिलने नहीं देती। फिल्म का एक भी दृश्य चूकने लायक नहीं है। अगर आपको दीर्घ अवधि की फिल्में देखने की आदत नहीं रही है तो ये फिल्म दिखाती है कि दर्शकों की आकर्षण अवधि बढ़ाने के लिए

13 साल की साधना का अवतार
‘अवतार’ सीरीज की कुल पांच फिल्में हैं। कहानी अभी सिर्फ दूसरी फिल्म तक पहुंची है। और, भारतीय दर्शकों को तो ये काफी कुछ अपनी सी भी लग सकती है। भारतीय मूल की आश्रिता कामथ का कला निर्देशन इसकी बड़ी वजह है। कैमरून ये फिल्म साल 2015 में रिलीज करने वाले थे लेकिन इस फिल्म का कैनवस इतना विशालकाय है कि इसे परदे पर पेश करने में उन्हें सात साल और लग गए। बीच में कोरोना ने भी दो तीन साल तक काम की गति धीमे रखी। करीब 2000 करोड़ रुपये की लागत से बनी फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ को देखने के बाद इसे बनाने में लगा समय सही लगने लगता है। ये फिल्म आपको भीतर तक सिहरने पर मजबूर करती है, दिल खोलकर खुशी मनाने का मौका देती है और ये भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या अपने निजी स्वार्थ के लिए असीमित प्राकृतिक दोहन ही धरती के विनाश की वजह तो नहीं बन जाएगी?

इंसान और जानवर की दोस्ती का अवतार
फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मूल विषय नहीं है। इस बार जेम्स कैमरून ने मानवीय और सामुदायिक संवेदनाओं को फिल्म के केंद्र बिंदु में रखा है। एक अनुशासनप्रिय पिता से दुखी बेटे को सुकून की तलाश है। उसे उस विशालकाय व्हेल में ये शांति मिलती है जिसे उसके समुदाय ने ही तिरस्कृत कर रखा है। दो अवांछितों की ये मित्रता फिल्म की मजबूत कड़ी है। और, इस दोस्ती को दर्शाने में कैमरून ने सिनेमा की तमाम नई तकनीकें ईजाद कर डाली हैं। पानी के भीतर इंसानी भावों को कैमरे में कैद करना और फिर कंप्यूटर जनित किरदारों का चोला पहनाकर उन्हें बिल्कुल नए स्वरूप में परदे पर पेश कर देना दर्शकों को अचंभित करता है। फिल्म में दिखाए गए जलीय जंतु भी विस्मयकारी हैं। और, ये सारे भाव और रस परदे पर प्रकट करने में कैमरून को सबसे ज्यादा मदद मिलती है फिल्म के संगीत, इसकी सिनेमैटोग्राफी और इसके संपादन से।

साइमन फ्रैंगलेन के संगीत का अवतार
जेम्स कैमरून ने फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ का संपादन अपने सहयोगियों डेविड ब्रेनर, जॉन रेफोउआ और स्टीफन रिवकिन के साथ मिलकर खुद ही किया है। रसेल कारपेंटर ‘अवतार’ सीरीज की फिल्मों के नए सिनेमैटोग्राफर है। कैमरून के साथ वह इसके पहले ‘ट्रू लाइज’ और ‘टाइटैनिक’ में भी काम कर चुके हैं। किर्क क्रैक ने फिल्म के कलाकारों को पानी में मुक्त होकर गोता लगाने, पानी के ऊपर आने और पानी के भीतर सांसें थामकर रुके रहने की ट्रेनिंग दी है। कम लोगों को ही पता हो कि केट विंस्लेट ने फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ की शूटिंग के दौरान एक दृश्य में पूरे सात मिनट तक पानी के भीतर सांस रोके रखी हैं। सिनेमा के इतिहास में किसी दृश्य को पानी के भीतर फिल्माने का ये सबसे लंबा रिकॉर्ड है। फिल्म ‘अवतार’ के संगीतकार जेम्स होमर की साल 2015 में एक हवाई दुर्घटना में हुई मौत के बाद जेम्स ने उनके अनुयायी साइमन फ्रैंगलेन को फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ का संगीत रचने की जिम्मेदारी सौंपी। फ्रैंगलेन ने अपना पूरा संगीत पानी की लहरों और इसकी गहराई में मिलने वाली शांति के साथ साथ इसके रौद्र रूप को भी ध्यान में रखते हुए रचा है और दर्शकों को फिल्म की गति के साथ एकसार करने में ये संगीत बड़ी भूमिका निभाता है।

सिनेमा के भविष्य का अद्भुत अवतार
फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ सिनेमा की वह नई रोशनी है जिसके सहारे भारतीय सिनेमा को भी आगे बढ़ने के लिए एक नई राह मिल सकती है। गौर करने लायक यहां ये है कि जेम्स कैमरून की ‘अवतार’ सीरीज की पहली फिल्म ने दुनिया भर में रिकॉर्डतोड़ कमाई करने का जो मुकाम हासिल किया था, उसमें सिर्फ 25 फीसदी कमाई अमेरिकी दर्शकों की देन है। फिल्म की कमाई का बड़ा हिस्सा दूसरे देशों से आया है। यही सबक अब भारतीय सिनेमा को भी सीखना जरूरी है। पूरा विश्व जब एक गांव में तब्दील होता जा रहा है तो भारतीय निर्माताओं को भी अपनी कहानियां वैश्विक सोच और पसंद के हिसाब से बनानी होंगी। सिर्फ ‘बाहुबली’ और ‘आरआरआर’ के सहारे ही ये काम नहीं होगा। ये कहने का आशय क्या है, ये आपको फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ देखकर ही समझ आएगा, ये फिल्म सिनेमा के इतिहास का वह जादू है जिससे बचकर निकल पाना किसी भी दर्शक के लिए मुश्किल है। पूरे परिवार के साथ इसे देखिएगा जरूर।

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