चुनाव परिणामों से ये स्पष्ट संकेत सामने आ चुके हैं कि भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अकेले दम पर सरकार बनाने जा रही है। इसी के साथ इन राज्यों में बनने वाले संभावित मुख्यमंत्रियों के नामों पर भी चर्चा शुरू हो गई है। इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में किसी आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बना सकती है। मध्यप्रदेश में किसी पिछड़े समुदाय के नेता को सरकार की कमान सौंपी जा सकती है। वहीं, राजस्थान में पिछड़े समुदाय के किसी जाट नेता पर दांव खेला जा सकता है। इसे 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की रणनीति को देखते हुए भाजपा का दांव करार दिया जा रहा है।
आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ और पिछड़ी आबादी के बहुमत (49%) वाले मध्यप्रदेश में भाजपा को बड़ी जीत मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष के जातिगत जनगणना और आरक्षण के दांव के बाद भी यह वर्ग भाजपा के साथ बना हुआ है। भाजपा आगे भी अपनी रणनीति बनाए रखने की कोशिश करेगी और यही कारण है कि इन वर्गों के प्रभावशाली चेहरों को नेतृत्व दिया जा सकता है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव स्तर के एक नेता ने अमर उजाला को बताया कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह की प्रचंड जीत मिलने की संभावना बन रही है, यह उसके राजनीतिक और सामाजिक कौशल का परिणाम है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने जिस तरह कल्याणकारी योजनाओं से युवाओं, महिलाओं, पिछड़ों और दलितों को साधने का काम किया था, उसी का परिणाम है कि विपक्ष का जातिगत जनगणना का दांव बुरी तरह ध्वस्त हो गया और भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ जीत की तरफ आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि आगे भी पार्टी की इस सोच को आगे बढ़ने का काम किया जाएगा। सरकार और पार्टी संगठन सहित सभी मंचों पर आदिवासियों, महिलाओं, पिछड़ों और युवाओं की भूमिका को मजबूत किया जाएगा।
नेता ने कहा कि इन राज्यों में मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह जीते हुए विधायक और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तय करेगा। लेकिन जिस तरह आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में भाजपा को जीत मिली है, मध्यप्रदेश में भी आदिवासी समुदाय ने भाजपा को अपना समर्थन दिया है, इस बात की प्रबल संभावना है कि (अंतिम परिणाम में जीत मिलने के बाद) छत्तीसगढ़ की कमान किसी आदिवासी समुदाय के नेता को सौंपी जा सकती है। इसी तरह मध्यप्रदेश में पिछड़े समुदाय के किसी व्यक्ति को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।
इस चुनाव में लाडली बहना योजना ने बहुत शानदार काम किया है, शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी एक बार फिर से बहुत मजबूत हो गई है। लेकिन जिस तरह चुनाव रणनीति में शिवराज सिंह को अलग रखकर चुनाव लड़ा गया है, इस बात की पूरी संभावना है कि पार्टी उन्हें नेतृत्व नहीं देगी। उनकी बजाय किसी अन्य युवा और अनुभवी पिछड़े समुदाय के नेता को यह जिम्मेदारी मिल सकती है।
जाट मतदाताओं को साधने के लिए राजस्थान में पिछड़े समुदाय के किसी जाट नेता को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की प्रभावी भूमिका और पार्टी से उनकी कुछ नाराजगी को देखते हुए उन्हें साधने के लिए इस समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। यदि पार्टी ने इस रणनीति पर चलने का मन बनाया, तो सतीश पूनिया उसकी पहली पसंद हो सकते हैं, जो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए समाज के सभी वर्गों को साधने का अपना कौशल दिखा चुके हैं।