AI glasses: इस तरह के चश्मे का निर्माण यूं तो इजराइल व अमरीका में चार साल पहले हुआ था, पर भारत में उससे बेहतरीन टेक्नोलॉजी व काफी कम लागत के साथ दिल्ली के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश जोशी
इस तरह के चश्मे का निर्माण यूं तो इजराइल व अमरीका में चार साल पहले हुआ था, पर भारत में उससे बेहतरीन टेक्नोलॉजी व काफी कम लागत के साथ दिल्ली के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश जोशी
अभी तक दृष्टिहीनों को राह दिखाने छड़ी इस्तेमाल होती थी, अब उनके लिए स्मार्ट विजन ग्लॉस यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) चश्मा बन गया है, जो उसे हर तरह से पग-पग पर राह दिखाएगा। इस तरह के चश्मे का निर्माण यूं तो इजराइल व अमरीका में चार साल पहले हुआ था, पर भारत में उससे बेहतरीन टेक्नोलॉजी व काफी कम लागत के साथ दिल्ली के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश जोशी ने आविष्कार किया है। वर्ष 2020 में कोरोनाकाल के वक्त जब लॉकडाउन लग गया, तब दिल्ली स्थित एक प्राइवेट क्लीनिक के संचालक डॉ. राकेश ने कुछ अलग करने की ठानी। उन दिनों 6 महीने पूर्व इजराइल व अमरीका में संयुक्त रूप से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस चश्मे का निर्माण हुआ था। लेकिन उसकी कीमत उस वक्त करीब 8 लाख रुपए थी।
एआई चश्मे…
वहां की टेक्नोलॉजी न मिल पाने के बाद डॉ. जोशी ने इसी को आधार मान कर इसी वर्ष अपने तीन आईआईटीएन सहयोगियों के साथ मिल कर इसे बनाने की ठानी। तीन साल के अथक मेहनत के बाद आखिरकार इन्होंने इस काम में सफलता पाई। 6 महीने पहले की इसे सफलतापूर्वक लांच किया। यह चश्मा इजराइल व अमरीका की तुलना में न सिर्फ बेहद किफायती है, बल्कि उच्च गुणवत्तायुक्त भी है, जो देश के लगभग डेढ़ करोड़ ब्लाइंड को दिशा देने मील का पत्थर साबित हो सकता है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ से उन्हें विशेष लगाव है, यही वजह है कि बिलासपुर समेत छत्तीसगढ़ के दृष्टिहीनों को इस चश्मे को उपलब्ध कराने फाइनेंशल आधार अपनाया जाएगा। बेहद गरीबों को मुफ्त में चश्मा देंगे। बता दें कि छत्तीसगढ़ में लगभग 26 हजार दृष्टिहीन हैं। वहीं देश में लगभग डेढ करोड हैं।
डॉ. जोशी ने बताया कि इजराइल व अमरीका के चश्मे की कीमत वर्तमान में लगभग साढ़े 6 लाख रुपए है। जबकि उन्होंने इसकी कीमत 48 हजार ही रखी है। उनका कहना है कि उन्होंने इस चश्मे का निर्माण दृष्टिहीनों की सहायता के लिए समाज सेवा के रूप में शुरू किया है। यही वजह है कि कीमत काफी कम रखी है। डिमांड बढ़ने पर कीमत और घटा दी जाएगी। उनका कहना है कि वे कई बार छत्तीसगढ़ आ चुके हैं। उन्हें यहां के लोगों से बेहद लगाव है। लिहाजा बिलासपुर समेत यहां के दृष्टिहीनों को वे फाइनेंशियल आधार पर चश्मा देंगे। इसके लिए सिम्स के डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ. भानुप्रताप सिंह सहयोग कर सकते हैं।
ये हैं विशेषताएं
यह चश्मा मोबाइल के सहारे एक ऐप के जरिए करता है कामइजराइल व अमरीका में निर्मित चश्मे में महज 5 से 8 भाषाएं फीड की गई हैं। जबकि डॉ. जोशी ने अपने चश्मे में देश-विदेश की 72 भाषाओं को फीड किया है। यह चश्मा मोबाइल के सहारे एक ऐप के माध्यम से काम करता है।
बटन दबाते ही तीन मीटर आगे क्या है, पता लग जाएगा
डॉ. जोशी के अनुसार यह चश्मा 5 मोड पर काम करता है। इसमें पांच बटन लगाए गए हैं। पहला बटन दबाने पर चश्मा यह बताएगा कि सामने क्या है, कैसा नजारा है। दूसरा रीडिंग मोड है। बटन दबाने पर दृष्टिहीन को चश्मा किताब, अखबार या किसी का लिखा हुआ पढ़ कर सुनाएगा। तीसरा वॉकिंग मोड है। यानी तीसरा बटन दबाने पर तीन मीटर की दूरी में क्या है जानकारी मिल जाएगी। चौथा मोड फेस आइडेंटीफिकेशन है। जिसके सहारे पता चल सकेगा कि सामने कौन व्यक्ति है। पांचवां हेल्प मोड है। जिसके सहारे यदि दृष्टिहीन कहीं भटक गया हो, तो उसके परिजनों तक उनका लोकेशन पहुंच जाएगा, उस क्षेत्र के फोटो के साथ।