झीरम घाटी हत्याकांड की जांच अब राज्य पुलिस की स्पेशल टीम करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की याचिका को खारिज कर दिया है। कांग्रेस नेता जितेंद्र मुदलियार के आवेदन पर चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की तीन सदस्यीय बेंच ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया। एनआईए ने पुलिस की जांच रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। एनआईए की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि घटना में बड़ी साजिश के पहलू की जांच एनआईए द्वारा की जानी चाहिए, क्योंकि मामले की मुख्य एफआईआर की जांच केंद्रीय एजेंसी द्वारा की जा रही है। उन्होंने कहा कि जब छत्तीसगढ़ पुलिस ने एनआईए को रेकॉर्ड सौंपने से इनकार करने पर एजेंसी ने कोर्ट का रुख किया।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी और सुमीर सोढ़ी ने कहा कि राज्य ने शुरू में एनआईए से घटना में बड़ी साजिश के पहलू पर जांच करने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। नाडकर्णी ने कहा कि राज्य सरकार ने तब केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि मामले में साजिश की आशंका है। इसलिए जांच सीबीआई को सौंप दें, क्योंकि एनआईए ने जांच करने से इनकार कर दिया था। केंद्र ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने से इनकार कर दिया. तो फिर राज्य सरकार क्या कर सकती थी। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने पीठ ने कहा, क्षमा करें, हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे। कोर्ट ने कहा है कि नक्सली हमलों में बड़ी राजनीतिक साजिश के आरोपों का मामला चलता रहेगा।
झीरमघाटी में 25 मई 2013 को हुआ था हमला
कांग्रेस ने 25 मई 2013 को परिवर्तन यात्रा निकाली गई थी। सुकमा से जगदलपुर लौटते समय नक्सलियों ने झीरमघाटी में हमला किया। इस दौरान पीसीसी अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार सहित 33 लोग मारे गए थे। हमले के वक्त कोंटा विधायक कवासी लखमा वहां मौजूद थे। कथित रुप से उन्होंने नक्सलियों को रोकने की कोशिश की थी। बाद में वे मोटर साइकिल से जगदलपुर पहुंच गए थे। बता दें कि हमले में विद्याचरण शुक्ल गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिनकी बाद में उपचार के दौरान मृत्यु हो गई थी। वहीं प्रकरण की जांच करने के बाद एनआईए ने 88 नक्सलियों को आरोपी बनाया था।
2020 में एसआईटी का गठन
राज्य में काग्रेस की सरकार का गठन होने के बाद इसमे नया मोड आया। दिवंगत उदय मुदलियार के पुत्र जितेन्द्र मुदलियार ने 25 मई 2020 में दरभा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई। एनआईए की धीमी और दोषपूर्ण जांच करने का आरोप लगाया। इसके बाद 4 जुलाई को इसकी जांच के लिए एसआईटी गठित की गई। इसके बाद एनआईए ने 10 जून को बस्तर एसपी को पत्र लिखकर प्रकरण को सौंपने की मांग की। प्रकरण जब नहीं मिला तो एनआईए ने 10 अगस्त को जगदलपुर कोर्ट में 14 बिंदू में याचिका लगाई। इसमें बताया कि एनआईए एक्ट के अनुसार इसकी जांच जब तक उनके पास है कोई दूसरी एजेंसी जांच नहीं कर सकती है। इसके बाद एनआईए कोर्ट ने थाना दरभा प्रभारी को सितंबर 2020 को विवेचना स्थगित करने का आदेश दिया। राज्य पुलिस ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। 12 मार्च 2022 को हाईकोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए एसआईटी को जांच करने देने का आदेश दिया। हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
न्यायिक जांच आयोग का गठन
छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने घाटी में हुए घटना के बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा की एकल पीठ बनाई थी। उन्होने प्रकरण की जांच करने के बाद 6 अक्टूबर 2022 को अपनी रिपोर्ट राजभवन को सौंपी गई। यह रिपोर्ट दस खंडों में थी और इसमें 4184 पन्ने थे। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 11 नवंबर 2022 को नए आयोग का गठन कर दिया। इस नए आयोग में सेवानिवृत जस्टिस सुनील अग्निहोत्री को अध्यक्ष और जस्टिस मिन्हाजुद्दीन को सदस्य बनाया गया। इस आयोग गठन के खिलाफ तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक यह कहते हुए हाईकोर्ट चले गए कि, नियमों के तहत जांच रिपोर्ट 6 माह के भीतर सार्वजनिक किया जाना था लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया और नए जांच आयोग का गठन कर दिया है।
अब षड़यंत्र का होगा खुलासा- सीएम
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया में लिखा है, झीरम कांड पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फ़ैसला छत्तीसगढ़ के लिए न्याय का दरवाजा खोलने जैसा है। झीरम कांड दुनिया के लोकतंत्र का सबसे बड़ा राजनीतिक हत्याकांड था। इसमें हमने दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 32 लोगों को खोया था। कहने को एनआईए ने इसकी जांच की, एक आयोग ने भी जांच की, लेकिन इसके पीछे के वृहद राजनीतिक षडयंत्र की जांच किसी ने नहीं की। छत्तीसगढ़ पुलिस ने जांच शुरु की तो एनआईए ने इसे रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। आज रास्ता साफ़ हो गया है। अब छत्तीसगढ़ पुलिस इसकी जांच करेगी। किसने किसके साथ मिलकर क्या षडयंत्र रचा था। सब साफ़ हो जाएगा।
अब तो झीरम के सबूत जेब से निकाले : साव
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने कहा, मुख्यमंत्री कहते थे कि झीरम का सच उनकी जेब में है, लेकिन किसे बचाने के लिए जेब में छिपा रखे थे। अब उसकी जांच होगी। किसने किसके साथ मिलकर राजनीतिक षड़यंत्र किया है, अब वो स्पष्ट होगा। भाजपा ने निष्पक्ष जांच की कोशिश हर प्रकार से की। आयोग बना कर जांच किया। सीएम सबूत जेब में होने की बात करते रहे, लेकिन उसे न तो आयोग में प्रस्तुत किया और ना ही कोई जांच हुई। सीएम को अब तक झीरम का सबूत जेब से बाहर निकालना चाहिए।