जलवायु परिवर्तन: दरकते हिमालय के कारण खतरे की जद में उत्तराखंड-हिमाचल और लद्दाख, बढ़ सकती हैं प्राकृतिक घटनाएं

जलवायु परिवर्तन: दरकते हिमालय के कारण खतरे की जद में उत्तराखंड-हिमाचल और लद्दाख, बढ़ सकती हैं प्राकृतिक घटनाएं

हिमालय और खास तौर पर मध्य हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को दरकते पहाड़ों और हिमस्खलन से सबसे ज्यादा खतरा है। यह खतरा ना केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी बना रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार यह पूरा इलाका बेहद संवेदनशील श्रेणी में आता है। हिमालय भारत में पृथ्वी पर सबसे ऊंची पर्वत शृंखला है।

यह भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के टकराने के कारण बनी है। भारतीय प्लेट के उत्तर(चीन) की ओर बढ़ने से चट्टानों पर लगातार दबाव पड़ता है, जिससे वे भुरभुरी और कमजोर हो जाती हैं। इस वजह से भूस्खलन की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है और भूकंप का भी खतरा है। जलवायु परिवर्तन के कारण भूस्खलन और हिमस्खलन की घटनाएं न केवल बढ़ेंगी बल्कि बेमौसम कहर भी बरपाएंगी। हिमाचल, उत्तराखंड और लद्दाख भी इससे अछूते नहीं हैं। जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के अनुसार हिमाचल,उत्तराखंड और लद्दाख अब भूस्खलन की दृष्टि से बेहद खतरनाक श्रेणी में आ चुके हैं।

67% उत्तर-पश्चिम हिमालय में भूस्खलन के मामले
देश के कुल भूस्खलन के मामलों में उत्तर-पश्चिम हिमालय का योगदान 67 प्रतिशत के करीब है। हिमाचल और उत्तराखंड में हो रही भूस्खलन की घटनाओं के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय में अवैज्ञानिक निर्माण, घटते वन क्षेत्र और नदियों के पास पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली संरचनाएं भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं का कारण बन रही हैं। सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की व्यापक कटाई, सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए विस्फोट में वृद्धि भी भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के मुख्य कारण हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तलहटी में चट्टानों के कटाव और जल निकासी की उचित व्यवस्था की कमी के कारण हिमाचल व उत्तराखंड में ढलानें भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गई।

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