कौवों का श्राद्ध से है गहरा संबंध, वो कौन सी गलतियां हैं, जिनके कारण आज हमें कौवे ढूढ़ने पड़ते हैं

कौवों का श्राद्ध से है गहरा संबंध, वो कौन सी गलतियां हैं, जिनके कारण आज हमें कौवे ढूढ़ने पड़ते हैं

पुरखों की पूजा अर्चना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने पितृपक्ष शुरू हो गया है. पितृपक्ष में तर्पण का विशेष महत्व है और पुरखों की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए लोग ब्राह्मण भोज और पशु पक्षियों को भी भोजन कराते हैं. पितृपक्ष में विशेष रूप से कौवों और कुत्तों को भोजन कराने की परंपरा रही है. ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष की विशेष तिथि पर तर्पण और पूजा अर्चना के बाद कौओं और कुत्तों को भोजन नहीं कराते हैं, तो पुरखों की आत्मा को शांति नहीं मिलती और पुरखे नाराज हो जाते हैं. ऐसे में पितृपक्ष में कई लोग भोग की थाली लिए कौवों की तलाश में भटकते नजर आते हैं कि कहीं कौवा नजर आ जाते, तो उन्हें भोजन करा देते. लेकिन अपनी ही गलतियों के कारण गौरेया की तरह कौए भी हम से दूर हो गए हैं और सिर्फ इन 15 दिनों में उनकी याद आती है. बाकी दिनों में वो सब काम करते हैं, जिनकी वजह से कौए और दूसरे पक्षी हमसे दूर हो रहे हैं

पितृपक्ष और ज्योतिष में कौवा का विशेष महत्व
चाहे पितृपक्ष के मौके पर पुरखों का आशीर्वाद प्राप्त करने या फिर ज्योतिषी के बताए उपायों के तहत गृह शांति के लिए कौवा को भोजन कराना हो, आजकल कौवा को तलाश करना किसी कठिन चुनौती से कम नहीं है. कभी छत पर तो कभी गांव के घरों की मुंडेर पर सुबह-सुबह आवाज देकर रिश्तेदारों की आगमन की सूचना देने वाले कौवे अब उस नीलकंठ की तरह हो गए हैं, जिनके दर्शन के लिए लोग भगवान से अर्जी लगाते हैं. पितृपक्ष के मौके पर कौवों का भोजन कराना तर्पण का एक हिस्सा है. इसलिए इन 15 दिनों में सैकडों लोग कौवा की तलाश में भटकते मिल जाएंगे. दरअसल जिस तरह से गौरेया हमारे आंगन से दूर चली गयी है, लगभग उसी तरह कौवों ने आबादी से एक तरह से मुंह मोड लिया है. इसकी बडी वजह हमारी वो गलतियां हैं. जिनमें हमनें अपनी सुख सुविधाएं तो देखी, लेकिन प्रकृति के अहम हिस्से पशु पक्षी को जरूरतों को नजर अंदाज कर दिया और आज उनकी तलाश में भटक रहे हैं

क्या कहता है विज्ञान

प्राणी विज्ञान बताते हैं कि, ”हमारे यहां जो आसपास का वातावरण पहले था कि घर के आसपास पेड़ पौधे और हरियाली रहती थी, तो सब तरह के पक्षी वहां घोंसले बनाकर रहते थे. हर तरह के पक्षी चाहे वो गौरेया हो या कौआ हमें आसानी से नजर आते थे, लेकिन मोबाइल टावर, ध्वनि और वायु प्रदूषण के कारण उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ा है और उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए हैं. अब हालात ये है कि जहां उन्हें प्राकृतिक आवास मिलता है, तो वो वहां बड़ी संख्या में डेरा जमाने लगे हैं.”

आवास नष्ट, कौवों ने छोड़ दिये इलाके

हमारे आसपास के जंगल देखें, तो हमारे विश्वविद्यालय की घाटियां है और तिली इलाके के तरफ जो जंगल हैं, वहां कौवे आसानी से मिलते हैं. जहां-जहां उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं, वो इलाके कौवों ने छोड दिए हैं. जहां आप इनको पाएंगे, आप वहां देखेंगे कि उनके प्राकृतिक आवास के प्राकृतिक भोजन और कीटों की संख्या काफी ज्यादा होती है. क्योंकि मृत कीटों को वो अपनी अगली पीढ़ी यानि अपने चूजों के भोजन के रूप में उपयोग करते हैं. उनके लिए प्रोटीन और मिनरल्स की आवश्यकता होती है, वो कीटों से ही पूरी होती है. आप देखेंगे कि जहां पर कीटों की संख्या भरपूर होगी या प्रकाश का ऐसा प्रबंध होगा कि वहां काफी संख्या में कीट इकट्ठे होंगे, तो कौवे वहां ज्यादा संख्या में पाएंगे.

Chhattisgarh Special