दुनिया भर में नशाखोरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वहीं, नशे की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सा सेवाएं भी काफी सीमित हैं। आंकड़ों पर नजर डाले तो दुनियाभर में 11 में से सिर्फ एक नशाखोर को ही समय पर उपचार मिल रहा है।
भारत में भी स्थिति गंभीर है। यहां साल 2017 में केवल 15,101 पीड़ितों को ही इलाज मिला जबकि नशाखोरों की संख्या लाखों में है। इसके अलावा नशे की दवाओं के कारोबार करने वाले करीब चार लाख लोग जेलों में है, जिनमें से अधिकतर मामले न्यायालय में लंबित हैं। रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक नशीली दवाओं के उपयोग में चिंताजनक वृद्धि के अलावा शक्तिशाली नए सिंथेटिक ओपिओइड का उदय भी हुआ है। सिंथेटिक ओपिओइड ऐसे पदार्थ हैं, जिन्हें प्रयोगशाला में संश्लेषित कर नशीले पदार्थों में मिलाया जाता है। यह इंसान के सीधे मस्तिष्क में प्राकृतिक ओपिओइड (जैसे, मॉर्फिन और कोडीन) के समान लक्ष्यों पर कार्य करते हैं, जिससे एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) प्रभाव उत्पन्न होते हैं। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2024 में यह भी पाया कि 2022 में नशीली दवाओं का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या 29.20 करोड़ तक पहुंच गई है, जो बीते दशक की तुलना में 20 फीसदी की वृद्धि है।
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 22.80 करोड़ लोग गांजा से बनी दवाएं ले रहे हैं। इसके बाद करीब छह करोड़ से ज्यादा लोग ओपिओइड, तीन करोड़ लोग एम्फैटेमिन, 2.30 करोड़ कोकीन और करीब दो करोड़ लोग एक्स्टसी दवाओं का नशा कर रहे हैं।
छह करोड़ लोगों को इलाज की जरूरत
22.80 करोड़ लोग दुनिया भर में गांजा से बनी दवाएं ले रहे हैं
रिपोर्ट में बताया कि दुनिया भर में करीब छह करोड़ लोगों को नशा की लत से बाहर निकालने की जरूरत है, लेकिन अस्पतालों में मौजूद सुविधाएं नाकाफी है। भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शोम्बी शार्प ने कहा, हमारे प्रयास न सिर्फ संतुलित होने चाहिए बल्कि स्वास्थ्य के अधिकारों के साथ मानवाधिकारों को बनाए रखना चाहिए। नशे की लत से जूझ रहे लोगों की मदद करनी चाहिए। इसके लिए सरकारों को नीतिगत फैसले लेना जरूरी है।