हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अनाधिकृत – अवैधानिक अतिक्रमणकारी सरकार, वाजिब और वैध सम्पत्ति स्वामी को न जमीन दे रही है न मुआवजा दे रही हैं।

हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अनाधिकृत – अवैधानिक अतिक्रमणकारी सरकार, वाजिब और वैध सम्पत्ति स्वामी को न जमीन दे रही है न मुआवजा दे रही हैं।

सरकारी जमीन को कब्जा करने की कहानी तो बहुतेरे सुने होंगे लेकिन आज हम एक ऐसे जमीन की चर्चा कर रहे हैं, जिस निजी जमीन पर सरकार ने कब्जा कर सरकारी दफ्तर, अस्पताल, बाजार, सड़क मसलन एक शहर की जरूरत के सारे निर्माण सरकार ने कर लिया।

जिसकी जमीन थी वह अपनी जमीन पाने के लिए कोर्ट दर कोर्ट भटकता रहा, मुकदमा लड़ता रहा, मुकदमा इतना लम्बा हो गया, इतना लम्बा हो गया कि मुकदमा लड़ने वाला अल्लाह को प्यारा हो गया।

यह वाकिया है हिमाचल प्रदेश मण्डी जिला मुख्यालय की जहां सुलतान मोहम्मद वल्द मरहूम दीन मोहम्मद अपने परिवार के साथ रहते थे। सुलतान मोहम्मद की पुश्तैनी जमीन 91 एकड़ थी। हिन्दुस्तान – पाकिस्तान के विभाजन के समय लाखों लोग भारत से पाकिस्तान गये और लाखों लोग पाकिस्तान से भारत आये। बिना किसी पतासाजी या भौतिक सत्यापन किये बगैर सरकार सुलतान मोहम्मद को भारत से हिजरत करना मानते हुए सुलतान मोहम्मद की जमीन को हिजरती जायदाद – निष्क्रांत सम्पत्ति ( Evacuee property ) घोषित कर सरकारी मिल्कियत मानने लगी, जबकि सुलतान मोहम्मद लगातार कहते रहे हैं कि हम अपना मुल्क छोड़कर कहीं नही गये। यह मिल्कियत हमारी पुश्तैनी है।

सुलतान मोहम्मद अपनी पुश्तैनी जमीन 91 एकड़ हासिल करने के लिए 1957 में निष्क्रांत सम्पत्ति अपीलीय प्राधिकारी ( Evacuee property appellate authority ) के समक्ष अर्जी लगाकर मांग किया कि मेरी जमीन मुझे लौटा दी जाये। प्राधिकरण के लम्बे उदासीनता और शून्य कार्यवाही से सुलतान मोहम्मद बेहद व्यथित थे आखिरकार इस ग़म के कारण 1983 में उनका इन्तेकाल हो गया।

हिमाचल सरकार सुलतान मोहम्मद की जमीन के एक हिस्से का सरकारी तौर नीलामी आमंत्रित किया। इस नीलामी में सुलतान मोहम्मद के बेटे मीरबक्श मोहम्मद नीलामी के मौके पर पहुंचकर बाकायदा बोली लगाकर तकरीबन 12 एकड़ जमीन खरीद लिया, जमीन के रजिस्ट्री के समय मीरबक्श मोहम्मद देखते है कि अभिलेख में जमीन के स्वामी के तौर पर उसके पिता सुलतान मोहम्मद वल्द दीन मोहम्मद का नाम दर्ज है।

अपनी ही पुश्तैनी जमीन को खरीदने के अपयश भरे कार्रवाई से मीरबक्श मोहम्मद उद्वेलित हो उठते है। मीरबक्श मोहम्मद वर्ष 2002 में हिमाचल हाईकोर्ट में याचिका दायर करते है। उक्त याचिका पर लम्बे विचारण पश्चात एकल न्यायाधीश माननीय राजीव शर्मा ने 2009 में मीरबक्श मोहम्मद के हक में फैसला देते हैं। हिमाचल सरकार, एकल न्यायाधीश के फैसले को हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के समक्ष अपील करती है। डिवीजन बेंच हिमाचल हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश राजीव शर्मा के फैसले को पुष्ट करते हुए सुलतान मोहम्मद के बेटे मीरबक्श मोहम्मद के हक में फैसला देती है।

60 साल के मुकदमेबाजी के जद्दोजहद के बाद 2023 को सुप्रीम कोर्ट, हिमाचल सरकार को मीरबक्श मोहम्मद को जमीन की कीमत, ब्याज, मुआवजा सहित 1065 करोड़ रूपये भुगतान करने का हुक्म देती है।

गोली मारो सालो को, कहने वाले के पिता श्री प्रेमकुमार धूमल अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सुलतान मोहम्मद के पुश्तैनी जमीन को 1 रूपये की लीज पर स्वास्थ्य मंत्रालय केन्द्र सरकार को दे देते हैं। 6 मार्च 2014 को जब उसी जमीन पर बने अस्पताल का उद्घाटन करने केन्द्र सरकार के रोजगार एवं श्रममंत्री आस्कर फर्नांडिस मण्डी आते हैं अस्पताल का उद्घाटन करते हुए अपने भाषण में अनुराग ठाकुर के पिता प्रेमकुमार धूमल के प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं।

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