मानसून से पहले जिले में 819 तालाबों को लीज पर दिया जाना था। अब तक 326 तालाबों पर सहमति बनी है। 593 तालाब ऐसे हैं जिसे लीज में लेकर बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है।
इस वजह से मछली पालन के लिए सहमति नहीं बन सकी। मछली पालन के लिए स्पान बीज अनुदान की योजना है। आपसी सहमति नहीं बनने के कारण गांव मछुआ संगठनों को योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। मछल पालन में आत्मनिर्भरता के अंतर्गत जिला मत्स्य विभाग की ओर से विभिन्न योजनाएं संचालित की जाए। जून-जुलाई माह को मछली उत्पादन की शुरूआत के लिए विशेष माना जाता है।
नियमानुसार मछली उत्पादन की दृष्टि से एक से 10 हेक्टेयर तक के तालाबाें को ग्राम पंचायत लीज पर दे सकते हैं। 10 से अधिक लेकिन 100 हेक्टेयर से कम को लीज पर देने का अधिकार जनपद को होता है। इसी तरह 100 हेक्टेयर से अधिक लेकिन 200 हेक्टेयर से कम रकबा वाले तालाबों को मछली पालन के लिए जिला पंचायत निर्णय लेता है।
उससे अधिक रकबा होने पर मछुआ महासंघ को दायित्व राज्य शासन की ओर से दिया जाता है। बहरहाल जिले के 412 ग्राम पंचायतों के आधिपत्य में आने वाले डेढ़ हजार से भी अधिक सरकारी तालाबों में 593 ऐसे तालाब हैं, जिन्हे अभी तक लीज पर नहीं दिया जा सका।
ग्राम पंचायतों के लिए राजस्व संग्रहण में तालाबों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। प्रति वर्ष तालाबों से दो से ढाई लाख मछली का उत्पादन होता है। पंचायतों 70 से 80 हजार का राजस्व मिलता है। बहरहाल 593 तालाबों को जिन मछुआ संगठन ने पूर्व में लीज पर लिया था उसके बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है।
विभागीय अधिकारी की माने तो लीज पर दिए जाने वाले तालाबों के लिए चार हजार रूपये मूल्य तक फिंगर आकार मछली बीज खरीदी पर 50 प्रतिशत अनुदान विभाग की ओर से दिया जाता है। लीज से वंचित होने कारण योजना का लाभ मछुआ संगठनों को नहीं मिल रहा।
5.50 करोड़ स्पान तैयार करने का लक्ष्य विभाग की ओर एतमानगर स्थित स्पान उत्पाद केंद में मछली बीज तैयार करने की पक्रिया शुरू कर दी है। इस वर्ष 5.50 करोड़ स्पान तैयार करने का लक्ष्य विभाग की ओर से निर्धारित किया गया है। मछुआ संगठनों को बीज खरीदी के लिए पहले दीगर जिले पर निर्भर रहना पड़ता था।
सरकारी स्पान केंद्र के अलावा एतमानगर में ही मछुआ महासंघ की ओर भी मछली बीज तैयार की जा रही है। जिसका लाभ स्थानीय लोगों को मिल रहा है।