कांग्रेस पार्टी में विधायकों की टिकट कटने का असर नज़र आने लगा है। सरगुजा संभाग में रामानुजगंज से कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह और सामरी से चिंतामणि महाराज की टिकट कटने के पीछे कारण चाहे जो भी बताए जा रहे हों, लेकिन इस बात से कोई इनकार करने की स्थिति में नहीं
उल्टे हाथ उन्हें लौटना पड़ा। 55 साल के चिंतामणि महाराज, कंवर समाज के प्रमुख समाजसेवी और धर्म गुरु गहिरा गुरु के बेटे हैं। गहिरा गुरु के हज़ारों अनुयायी इस इलाके में बसते हैं। चिंतामणि महाराज किसी को जीत भले न दिला पाएं लेकिन कम से कम 6 विधानसभा क्षेत्रों में वे चुनावी समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।
सिंहदेव पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने वाले बृहस्पति सिंह की टिकट कट सकती है, यह बात लगभग पहले से ही तय थी। चिंतामणि महाराज के ख़िलाफ़ टीएस समर्थक कांग्रेसियों में भारी नाराजगी थी। टीएस सिंहदेव ने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक भी कर दी थी ।
अब जबकि दोनों विधायकों की टिकट कट गई है, तब से बृहस्पति सिंह, लगातार टीएस सिंहदेव के ख़िलाफ़ आग उगल रहे हैं। उन पर तरह-तरह के आरोप भी मढ़ रहे हैं । बैंककर्मी के साथ मारपीट से लेकर, पत्रकारों को ‘इलाज’ करवाने की.
अब बात पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र मनेंद्रगढ़ की, जहां पिछली बार, चार हज़ार वोटों के अंतर से जीत कर आये कांग्रेस विधायक, डॉक्टर विनय जायसवाल की टिकट कट गई।
अब बात पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र मनेंद्रगढ़ की, जहां पिछली बार, चार हज़ार वोटों के अंतर से जीत कर आये कांग्रेस विधायक, डॉक्टर विनय जायसवाल की टिकट कट गई। विनय जायसवाल को लेकर कहा जा रहा है कि वे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। उन्होंने जनसंपर्क भी शुरू कर दिया। लेकिन उन्हें अब भी भरोसा है कि शायद कांग्रेस मनेंद्रगढ़ से प्रत्याशी बदल दे और उन्हें टिकट दे दी जाए।
जिस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से विनय जायसवाल के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा है, पिछले चुनाव में उस पार्टी को विनय जायसवाल के मुकाबले एक तिहाई वोट मिले थे। विनय जायसवाल की पत्नी महापौर हैं, जाहिर है, शहरी इलाके में उनका भी एक जनाधार है। लेकिन इन सबका कितना लाभ उन्हें मिल पाएगा, कह पाना मुश्किल है।
लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किल भरी बातों से अलग चंद्रपुर इलाके से एक अच्छी ख़बर आज आ सकती है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो कांग्रेस पार्टी से निष्कासित नोबेल वर्मा की फिर से कांग्रेस में वापसी हो सकती है। अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले नोबेल वर्मा को 2003 में जब छत्तीसगढ़ के पहले चुनाव में टिकट नहीं मिली तो उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे।
2013 में वे फिर कांग्रेस में शामिल हुए, टिकट भी मिली लेकिन चुनाव हार गये। 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ख़िलाफ़ उनकी पत्नी मैदान में उतरीं लेकिन चुनाव हार गईं। पार्टी ने भी नोबेल वर्मा और उनकी पत्नी को 6 साल के लिए निलंबित कर दिया। नोबेल वर्मा के पिता भवानी लाल वर्मा पांच बार के विधायक रह चुके हैं। नोबेल वर्मा और उनकी पत्नी के अपने वोट भी हैं। अगर नोबेल वर्मा कांग्रेस में वापसी करते हैं तो कांग्रेस के विधायक और प्रत्याशी रामकुमार यादव को बेशक़ चंद्रपुर में लाभ मिल सकता है।