इतिहास ने हमें सीखाया है। हुकूमतें माफी सिर्फ सत्ता की निरंतरता के लिए मांगती है।

इतिहास ने हमें सीखाया है। हुकूमतें माफी सिर्फ सत्ता की निरंतरता के लिए मांगती है।

शेख अंसार की क़लम से…

मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेनसिंह ने नये वर्ष की पूर्वसंध्या पर कहा है, कि बीता हुआ पूरा साल बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा है। जिसका मुझे बेहद दुख है, 3 मई 2023 से लेकर आज तक जो कुछ हो रहा है, उसके लिए मैं राज्य के लोगों से माफी मांगता हूं।

1975 के आपातकाल के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने यवतमाल ( महाराष्ट्र ) के सार्वजनिक सभा में 24 जनवरी 1978 को और 1984 के सिख विरोधी दंगे के लिए डॉ मनमोहन सिंह ने लोकसभा में 12 अगस्त 2005 को माफी मांगा था।

आजादी के इन 77 सालों में हमनें सभी सरकारो की हुकूमत को देखा लिया है। अब जरूरत है ऐसी हुकूमत की जो इंकलाब से आयेगी इंसाफ के रास्ते पर चलकर इंसानियत के हक़ में काम करेगी।

भारत के राजनीतिक अतीत और इतिहास में जितनी भी चुनावबाज पार्टियां हुई हैं। कालान्तर और प्रकारान्तर से सभी हुकूमत में रही है। तथ्य मीठा नहीं कड़वा है, लेकिन सच्चाई मानो तो चाशनी जैसा मीठा है। क्या बहन मायावती के मुख्यमंत्री के बन जाने से आम दलित भाई – बहनों की जिन्दगियों में कोई बदलाव आया था। मुलायमसिंह यादव लालूप्रसाद यादव के लम्बे समय तक सत्तानशीं होने से क्या आम यादव समुदाय के जीवन में कोई बदलाव आया था। अखिलेश यादव या तेजस्वी यादव के सत्ता में आने से कोई बदलाव आयेगा ?

कांग्रेस, भाजपा कम्युनिस्ट पार्टी, लोकदल, जनतादल,जनता पार्टी, एनसीपी, टीएमसी, झामुमो, शिवसेनाओ के सत्ता में आने के बाद क्या आम गरीब आबादियों के जीवनशैली में कोई अन्तर आया है।‌ दलित राष्ट्रपति, आदिवासी राष्ट्रपति, मुस्लिम राष्ट्रपति पिछड़े वर्ग के प्रधानमंत्री बन जाने से आम पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवनस्तर में कोई सुधार आया ‌? तो इसका सही उत्तर और निष्कर्ष होगा‌ नही। मैं तो उन पार्टियों से कहना चाहूंगा कि जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए चुनाव आयोग से पंजीयन लेकर पार्टी नाम रखा है अमुक सेना ढिमकाना सेना को अब जनता एक स्वर में कह दे कि जाईए सरहद पर जाईए सेनाओ की जरूरत वहां है।

हुक्मरानों के माफी मांगने और माफी नही मांगने के दोहरे रणनीतिपूर्ण अन्दाज से हमें नसीहत लेनी होगी, सबक सीखना होगा।

गुजरात दंगा, गोधराकाण्ड, माॅब लीचिंग, बुलडोजर एक्शन, मंहगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिक सौहार्द के दुश्मनों ने एवं भाईचारा के कातिलों ने मस्जिद खोदने की जिम्मेदार सरकार ने अब तक माफी नही मांगा है। इसी से समझ आ रहा कि नाइंसाफी, दमन – सितम, भेदभावपूर्ण बुलडोजर कार्रवाई जैसे दौर चलता रहेगा।

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