लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र के वादे कितने असरदार?

लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र के वादे कितने असरदार?

कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में रोज़गार, सामाजिक न्याय के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों की बात की है. इस दौरान पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों वर्क, वेल्थ और वेलफ़ेयर का इस्तेमाल किया.

घोषणा पत्र में वोटिंग के तरीक़े (ईवीएम) में बेहतरी की बात की गई है.

पार्टी ने अपने मैनिफ़ेस्टो में वादा किया है कि वो बिना भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के हक़, धार्मिक स्वतंत्रता और उनसे जुड़े हक़ों और संघवाद की रक्षा करेगी और लोकतंत्र की परिभाषा को चुनाव और वोट से आगे ले जाने की कोशिश करेगी.

लेकिन घोषणा पत्र में उठाए गए कई मुद्दों पर सवाल भी उठ रहे हैं.

कई योजनाएं सीधे-सीधे मोदी सरकार की योजनाएं सरीखी लग रही हैं. लोग सवाल उठा रहे हैं कि ये मौजूदा सरकार की नकल जैसे लग रही हैं. जैसे कांग्रेस ने युवाओं के रोज़गार के संबंध में ट्रेनिंग के लिए लाख रुपये प्रति युवा देने का वादा किया है.

इसी तरह की राशि मोदी सरकार भी युवाओं को रोज़गार के लिए देती है.

कांग्रेस ने किसानों से वादा किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला क़ानून भी लाया जाएगा और कर्ज़ माफ़ी का भी प्रावधान होगा.

हालांकि कई राज्यों में इस तरह की योजनाओं का वादा करने के बावजूद कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में सवाल यही है कि कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में किए गए इन वादों का कितना असर होगा.

कौन-कौन से वादे किए हैं कांग्रेस ने

कांग्रेस ने जिन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में उठाया है, उनकी अहमियत समझाते हुए राजनीतिक विश्लेषक और अंग्रेज़ी अख़बार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा कहते हैं, ”लोकतंत्र का मतलब महज़ वोट डालना नहीं है, और इसके बहुत सारे हिस्से हैं जिन्हें संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा है.”

केरल और तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए विनोद शर्मा कहते हैं, ”दोनों प्रदेशों में राज्यपाल राज्य सरकार के बीच लगातार टकराव के हालात बने रहे हैं और दूसरी सरकारें भी जीएसटी के पैसे समय पर न मिलने जैसी शिकायतें करती हैं.”

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ही उत्तर प्रदेश में मदरसों पर आए हाई कोर्ट के एक ऑर्डर पर रोक लगा दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा क़ानून को ग़लत बताया था. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के इस फ़ैसले पर स्टे लगा दिया है.

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की बात

चुनाव आयोग और दूसरी संस्थाओं की स्वतंत्रता ‘बहाल’ करने की बात भी घोषणापत्र में कही गई है.

मोदी सरकार की नई व्यवस्था के मुताबिक़- चुनाव आयुक्तों की बहाली में प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष का नेता शामिल होता है.

आलोचकों का कहना है कि एक तरह से चुनाव समिति में दो व्यक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का सदस्य दोनों सरकार के आदमी हैं तो सरकार का पाला नियुक्ति में भारी हो जाता है.

कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आने पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, पीएम केयर फंड, सरकारी संपत्तियों की बिक्री को लेकर हुई डील्स और रक्षा सौदों की जांच कराने की बात कही है.

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को देश की सबसे ऊंची अदालत ने ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया है. इसके बाद जारी डेटा से ये सामने आया है कि बहुत सारी कंपनियों ने अपने कुल क़ीमत और आमदनी से अधिक चंदा भारतीय जनता पार्टी को दिया है.

अग्निपथ स्कीम को ख़त्म करने की बात

कांग्रेस ने युवाओं के रोज़गार के संबंध में ट्रेनिंग के लिए लाख रुपये प्रति युवा देने का वादा किया है. उसने यह भी कहा है कि अग्निपथ योजना को ख़त्म कर दिया जाएगा और उसकी जगह बहाली की पुरानी व्यवस्था क़ायम की जाएगी.

नरेंद्र मोदी सरकार की फौज में बहाली की अग्निपथ स्कीम बेहद विवादास्पद रही है. इसको लेकर फौज के पूर्व अफ़सर भी हैरत जताते रहे हैं.युवाओं में भी फौज में चंद सालों की भर्ती स्कीम को लेकर बेहद नाराज़गी दिखी थी हालांकि धीरे-धीरे ये शांत पड़ गई.

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक शर्मा का कहना है कि फौज में भर्ती को दूसरे क्षेत्रों में नौकरियों की तरह नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि ये देश की रक्षा का सवाल है.

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