बिखरे विपक्ष को कितना साध पाएंगे नीतीश कुमार

बिखरे विपक्ष को कितना साध पाएंगे नीतीश कुमार

भारत की राष्ट्रीय राजनीति में बिहार को ‘प्रयोगशाला’ के नाम से भी जाना जाता है.

साल 1917 का महात्मा गांधी ने चम्पारण सत्याग्रह की शुरुआत यहीं से की थी. इसी आंदोलन ने महात्मा गांधी को देश भर में नई पहचान दिलाई.

उसके बाद साल 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो या फिर जेपी के छात्र आंदोलन की कहानी हो या फिर मंडल आंदोलन – सभी प्रयोग आज इतिहास में दर्ज हैं, उनका एक सिरा बिहार से जुड़ा है.

साल 2015 में नीतीश कुमार ने ‘महागठबंधन’ बना का धुर विरोधियों को एक साथ लाने का प्रयोग भी यहीं किया था.

बिहार की इसी ऐतिहासिक ‘भूमिका’ की याद, सोमवार को पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिलाई.

विपक्ष को एक जुट करने के प्रयास में सोमवार को दोनों नेता कोलकाता में मिले.

इस मुलाक़ात के बाद ममता ने जय प्रकाश नारायण के आंदोनल की तरह बीजेपी को हटाने के लिए भी बिहार की धरती से इसकी शुरुआत करने का आग्रह किया है.

ममता बनर्जी ने कहा है, “हमें पहले यह संदेश देना है कि हम सब एक साथ हैं. हमारा कोई निजी स्वार्थ नहीं है. हम चाहते हैं कि बीजेपी ज़ीरो बन जाए. बीजेपी बिना कुछ किए बहुत बड़ा हीरो बन गई. केवल झूठी बात और फ़ेक वीडियो बनाकर.”

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