मैं एक मतदाता हूं, मेरे मनकी बात अपने मनकी बात करने वाले मेरे प्रधानमंत्री से कह सकता हूं !

मैं एक मतदाता हूं, मेरे मनकी बात अपने मनकी बात करने वाले मेरे प्रधानमंत्री से कह सकता हूं !

“शेख अंसार की कलम से”

मैं शुद्ध अन्त:करण से कह रहा हूं – एनडीए 10 वर्षो तक हम पर हुकूमत करने के बाद फिर से हुकूमत करने की युद्धस्तर पर तैयारी कर रही है। हमारा मार्मिक अनुरोध है इसके लिए जनता से युद्ध न करें। हुकूमत करने की तैयारी और उनके इरादे से हमें कोई कोई लेना – देना नहीं है। यदि हमें लगेगा कि इन्हें ही हुकूमत करनी चाहिए तो हम वह मार्ग भी प्रशस्त कर सकते हैं। लेकिन अपने हुक्मरानों से यह तो पूछा जाना ही चाहिए कि पहले के अपने कार्यकाल की तरह ही हम पर राज करोगे ? या जनता की भावना – आकांक्षा उनकी जरूरतों – दिक्कतो उनकी मांगों पर सोचोगे ? संविधान में मिले अधिकार का अनुपालन करोगे या भेदभावपूर्ण रवैया अपनाओगे ? यह सवाल कांग्रेस या इंडिया गठबंधन से नही पूछ सकते ! राज करने की तैयारी के तौर पर 195 उम्मीदवारों की जो‌ पहली सूची जारी हुई है सवाल तो उस पर भी बनता है, पर वह मुख्य मुद्दा नही है उम्मीदवारों का निर्धारण करना पार्टी का परम अधिकार है, बेहतर होता है, पार्टी द्वारा चयनित उम्मीदवार के उम्मीदवारी पर जनता की सहमति की बानगी दिखती।

चार सौ पार का नारा आम मतदाताओं को दरकिनार कर राजनीति के नभ में खूब उछाला जा रहा है वह दंभपूर्ण मियां मिट्ठूपन की पराकाष्ठा है। मनकी की बात करने की आजादी तो आपके पास है, लेकिन अवाम के मन में चल रहे मनोभाव को गिनने की क्षमता आपके पास कहां से आ गयीं ? परिणाम पूर्व चार सौ पार कहने से कोई भी बड़ा हो सकता लेकिन जनता को छोटा कैसे कह सकते हो।

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कहते हैं न्यूज 18 एक ऑनलाइन सर्वे किया है, कौन बनेगा प्रधानमंत्री ? जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 21 प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया है। किसी को 67 प्रतिशत, किसी को 2 प्रतिशत एवं अन्य को 10 प्रतिशत ऐसे ऑकड़े का पोस्ट सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ है, जो संदेह से परे नही है। जब दूबारा इस पोस्ट को देखने का प्रयास किये तो वह पोस्ट विलोपित कर दिया गया है।

सूची जारी होने के पहले एवं सूची जारी होने के बाद पार्टी नेताओं ने अपने मत प्रकट किये है !

जयंत सिन्हा ने कहा है मुझे पार्टी के दायित्वों से मुक्त करें, ताकि मैं कोई अन्य कार्य कर सकूं।

सांसद गौतम गंभीर ने कहा है, कि मैं क्रिकेट पर ध्यान देना चाहता हूं अतः मुझे सक्रिय राजनीति से मुक्त करें।

पश्चिम बंगाल के आसनसोल से टिकट मिलने के बाद भोजपुरी सितारा पवनसिंह ने कहा है टिकट प्रदान करने के लिए शीर्ष नेतृत्व का आभार मानता हूं, लेकिन कतिपय कारणों से मैं चुनाव नही लड़ पाऊंगा।

टिकट कटने पर पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन राजनीति से तौबा करते हुए कहते हैं, मुझे मेरा ENT क्लीनिक याद कर रहा है, मुझे वहां सेवा देनी होगी।

यह सहज सुनियोजित नही बल्कि असहज बेचैनी भरा फैसला है !

गुना संसदीय क्षेत्र पूर्व कांग्रेसी को पहले भाजपा प्रवेश कराया फिर कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भारी मतों से हराया, अब उस भाजपाई सांसद केपी यादव का टिकट काटकर केपी यादव से हारे पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब भाजपा आलाकमान ने अपना उम्मीदवार बनाया है।

मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव जिसके दम और नाम पर जीती है, भाजपा ने उस शिवराजसिंह चौहान को हासिये पर धकेल दिया था उस उपेक्षित शिवराजसिंह चौहान को उनके पुराने संसदीय क्षेत्र विदिशा से भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है, मानो उनकी घर वापसी हो गई हो।

भाजपा के अग्रणी नेता आशीष दुबे असंतुष्ट होकर विधानसभा चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी अजय विश्नोई के खिलाफ काम कर उन्हें विधानसभा का चुनाव हराया। विधानसभा का चुनाव हारने के बाद अजय विश्नोई यह कहते हुए पार्टी से चले गये थे, कि पार्टी को अब मेरी जरूरत नही है, उस अजय विश्नोई को पार्टी सीधी लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी बनाया है।

उदित सूरज को तो सब सलाम करते हैं, लेकिन क्या घटाटोप अंधेरा के समय अपने खून – पसीने से पार्टी का दिया जलाने वाले सच्चिदानंद उपासने को रायपुर लोकसभा का उम्मीदवार बनाने से कौन आपत्ति करता। सरोज पाण्डेय को कोरबा लोकसभा के बदले दुर्ग लोकसभा से लड़ाने से कोरबा में आसानी से बाहरी – भीतरी के विवाद से बच सकते थे। मेरे एक मत की कीमत मैं जानता हूं, लेकिन मेरे चुनावी अभिमत की कीमत सब जानते हैं। संतोष पाण्डेय अच्छे उम्मीदवार हैं। लेकिन मधुसूदन यादव लोकप्रिय उम्मीदवार होते।

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