राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का एकमात्र विकल्प कांग्रेस दिखता है क्योंकि इस पार्टी की देश के लगभग हर राज्य में मौजूदगी है.
कई मायनों में यही इस गठबंधन की कमज़ोरी का कारण भी है.
कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में सिर्फ़ 20 फ़ीसदी मत हासिल किए थे और अब भी वो सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही है.
वेर्नीयर कहते हैं, “कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से अधिक सीटों की मांग करती है और क्षेत्रीय दलों को ये कतई मंज़ूर नहीं है. ऐसी धारणा है कि कांग्रेस एक ख़तरनाक अलायंस पार्टनर है जो अपनी कमज़ोरियों के कारण आपको भी ले डूबेगा.”
लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि विपक्ष की मुसीबतों के लिए महज़ कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा.
वेर्नीयर कहते हैं, “विपक्षी गठबंधन का हर दूसरा सदस्य पूरे गठबंधन के हित से पहले अपना स्वार्थ देख रहा है. क्षेत्रीय दलों को सिर्फ़ अपने राज्य से मतलब है. अगर ये लोग संसदीय चुनाव में हार भी जाते हैं तो उनके पास राज्य तो होगा ही.”
कौन किस राज्य में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा संघर्ष इसी पर है.
जानकारों का कहना है कि विपक्षी गठबंधन बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दों की काट नहीं खोज पा रहा है.