भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में अपनी पहली राजकीय यात्रा के दौरान आयोजित संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेते हुए भारत के मुसलमानों से जुड़े सवाल पर जवाब दिया है.
बाइडन प्रशासन के शीर्ष अधिकारी जॉन किर्बी ने भी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी के शामिल होने को काफ़ी बड़ी बात बताया था.
उन्होंने कहा था, “हम इस बात के शुक्रगुज़ार हैं कि पीएम मोदी अपने दौरे के आख़िरी पड़ाव में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होंगे. हम मानते हैं कि ये काफ़ी अहम है क्योंकि हम इस बात पर ख़ुश हैं कि वह भी इसे अहम मानते हैं.”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी से क्या पूछा गया?
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिका के प्रतिष्ठित अख़बार वॉल स्ट्रीट जनरल की पत्रकार सबरीना सिद्दीक़ी ने पीएम मोदी से सवाल पूछा.
सिद्दिक़ी ने पीएम मोदी से पूछा, “आप और आपकी सरकार आपके देश में मुसलमानों समेत दूसरे समुदायों के अधिकारों को बेहतर बनाने और अभिव्यक्ति की आज़ादी को सुनिश्चित करने के लिए कौन से क़दम उठाने के लिए तैयार हैं.”
इस पर पीएम मोदी ने कहा, “मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आप कह रहे हैं कि लोग कहते हैं…लोग कहते हैं नहीं, भारत एक लोकतंत्र है. और जैसा राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों के डीएनए में लोकतंत्र है.”
मोदी ने कहा, ”लोकतंत्र हमारी स्पिरिट है. लोकतंत्र हमारी रगों में है. लोकतंत्र को हम जीते हैं. और हमारे पूर्वजों ने उसे शब्दों में ढाला है, संविधान के रूप में. हमारी सरकार लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों को आधार बनाकर बने हुए संविधान के आधार पर चलती है. हमारा संविधान और हमारी सरकार…और हमने सिद्ध किया है कि लोकतंत्र कैन डिलिवर.”
”और जब मैं डिलिवर शब्द का प्रयोग करता हूं तो जाति, पंथ, धर्म या लैंगिक स्तर पर किसी भी भेदभाव की वहां जगह नहीं होती है. और जब लोकतंत्र की बात करते हैं तो अगर मानवीय मूल्य नहीं हैं, मानवता नहीं है, मानवाधिकार नहीं हैं, फिर तो वो डेमोक्रेसी है ही नहीं.
और इसलिए जब आप डेमोक्रेसी कहते हैं, जब उसे स्वीकार करते हैं, और जब हम डेमोक्रेसी को लेकर जीते हैं, तब भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं उठता. और इसलिए भारत सबका साथ, सबका विकास, और सबका विश्वास और सबका प्रयास के मूलभूत सिद्धांतों को लेकर हम चलते हैं.
भारत में सरकार की ओर से मिलने वाले लाभ सभी को उपलब्ध हैं, जो भी उनके हक़दार हैं, वो उन सभी को मिलते हैं. इसलिए भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में कोई भेदभाव नहीं है. न धर्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न उम्र के आधार पर, और न भूभाग के आधार पर.”