इस चलचित्र को निर्माण करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि संत गुरूघासी दास जी जो मध्य भारत में छत्तीसगढ़ के लोगों को अपने हक अधिकार और स्वाभिमान के लिये जगाने के साथ साथ सतनामी समाज के अस्तित्व सम्मान, स्वाभिमान, धार्मिक जागृति और प्रगति को पूरे भारत वर्ष में प्रचारित करने के उद्देश्य से अपने जीवन को समर्पण करने के साथ साथ अन्तिम क्षणों तक मानवता, समता समरस्ता, मनखे मनखे एक बरोबर का अमर सन्देश दिया है। गुरूघासी दास जी ने सात दिव्य संदेश :-
1 सतनाम को मानो सत्य ही ईश्वर हहै ईश्वर ही सत्य है। सत म धरती सत म आकाश।
- सभी जीव समान। जीव हत्या पाप है। पशु बलि अंधविश्वास है।
- मांसहारी मत बनों नशा मत करो।
- मूर्ति पूजा मत करो।
- दोपहर में हल मत जोतो।
- पर नारी को माता जानो आचरण की शुद्धता पर जोर दो।
- चोरी करना पाप है। हिंसा करना पाप है। सादा जीवन उच्च विचार रखो।
42 अमृत वाणियाँ
1 सतह मानव के आभूषध आय।
12 मनखे मनखे एक समान ।
- पानी पीहू छान के, गुरू बनाहू जान के।
- निवाय सब बर करोबर होथे।
- धरमात्मा उही ए जौ धरम करथे। 6. चैरी संग घलो पिरित रखवे।
- समोर संत मन मोला ककरो ले बड़े झन कहिहाँ, नइते मोला हुदेसना म हुदेसना आय।
एवं अन्य
छत्तीसगढ़ के धार्मिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के महानतम विभूतियों में संत गुरू घासीदास का नाम प्रकाशमान देवी पुज के रूप में जन-जन के हृदय में विराजित है। संत गुरु घासीदास जी के जीवन चरित्र में मानव जीवन के सहज व्यवहार के साथ देवी लीला का अद्भूत उत्कर्ष सम्मिलित है। उनके जीवन काल में छत्तीसगढ़ की सामाजिक परिस्थिति अत्यन्त दर्शनीय थी। निरकुश पारंपरिक कर्मकांड से ओतप्रोत समाज में जाति विषमता के कारण निर्बल, दीन-दुःखी तथा महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। ऐसे समय में छत्तीसगढ़ में कृषक समाज में गुरू घासीदास जी का अवतरण 18/12/1756 को पिता महगू दास माता अमरवतीन के कोख से हुआ था। गुरु घासीदास का बाल्यकाल अत्यन्त विपन्नता में व्यतीत हुआ। समाज में उत्पीड़न, अन्याय और अंधश्रद्धा के प्रति जनजागरण के लिए गुरु घासीदास आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिये जगन्नाथपुरी की यात्रा के लिए निकले थे परन्तु बीच रास्ते से लौटकर वे उन्होंने छाता पहाड़ में तप साधना करते रहे और उन्हें इसी स्थल में आत्म बोध प्राप्त हुआ। इसके पश्चात अपने जीवन को मानव सेवा के लिये समर्पित करते हुए उपदेश और लीलाओं से समाज में नवीन चेतना भर दी। गुरू घासीदास के उपदेशों में निराकार सतनाम की स्थापना करते हुए करूणा, सेवा, जीवदया और समानता का समाज में चरितार्थ किया।
उन्होनें उच्च-बीच के भेदभाव, अस्पृश्यता, जातीय विषमता एवं अनतिकता पर सरल उपदेशों से प्रहार करते हुये जनभावना में नैतिकता स्थापित करने में सफल हुये । मांसाहार, नारी उत्पीडन तथा पशुओं पर हिंसा तथा अन्य अनैतिक व्यवहारों से समाज को मुक्त किया।
गुरु घासीदास के उपदेश अत्यन्त सरल तथा सुबोध है। उनके पदों में निर्गुण ब्रह्म सतनाम की महिमा है। उन्होंने परनिंदा, द्वेष, अपमान का त्याग करते हुए अपने अनुयायियों को सन्मार्ग पर प्रेरित किया। गुरू घासीदास ने अपने यात्रा और पड़ावों के माध्यम से छत्तीसगढ़ में मानवता की स्थापना करते हुए एक नई दिशा दी।
संत गुरू घासीदास के उपदेशों का गायन सतनाम उपासकों में मानवता का संदेशज्ञ के साथ आध्यात्मिक चेतना का संवाहक है। उनकी अमरवाणी अभी भी मानवीय गुणों और नैतिकता का संवाहक है। गुरू घासीदास के उपदेशों का पालन करते हुए आज उनके अनुयायी, अपना उत्साह और भक्ति के साथ अपने लक्ष्य पर अग्रसर हो रहें है। गिरोधपुरी में जन्में विभूति गुरु घासीदास का चितंन समग्र मानव जाति के नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक प्रेरक संदेश है। गुरु घासीदास जी के चरित्र और सात रावटियों, सतनाम अन्दोलन उपदेशों के साक्षी के रूप में गांव-गांव में जैतखाम की पवित्रता बनाये रखते है।