क़त्ल होता है भाषा कभी इस निसबत में,लोग उर्दू को भी मुसलमान समझ लेते हैं

क़त्ल होता है भाषा कभी इस निसबत में,लोग उर्दू को भी मुसलमान समझ लेते हैं

“शेख अंसार की क़लम से…”

उर्दू अदब की भाषा है, नफासत की भाषा है, भाईचारा और मोहब्बत की भाषा है। अमीर खुसरो को उर्दू साहित्य का जनक कहा जाता है। इतिहास ने मौलवी अब्दुल हक़ को उर्दू के वालिद होने का खिताब जारी किया हैं।

हम भारत के लोग उर्दू की औलाद की मानिंद हैं –

उर्दू ने दी नसीहत, हिंदी ने मुझको पाला है
हिंदी जो मेरी मां है, उर्दू मेरी है खाला
दोनों ने संवारा है, शख्सियत को मेरी
उर्दू ने दी नजाकत, हिंदी ने भी संभाला
आज़ादी की लड़ाई में दोनों थी बराबर
उर्दू थी खुद में आतिश, हिंदी स्वयं में उजाला
दोनों ही मेरी अपनी दोनों ही मेरी भाषा
उर्दू जो करें रौशन, हिंदी भी दे उजाला
दोनों मेरी जुबां है, दोनों मेरी जरूरत
उर्दू है मेरी रोटी, हिंदी मेरी निवाला

उर्दू पढ़ाकर क्या मौलवी और कठमुल्ला बनाओगे ?

यूपी विधानसभा में अवधि, ब्रज, और बुंदेलखंडी भाषा – बोली पर बोलते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने मूल एजेण्डे पर घूसते हुए यह बोलने लगे कि सरकार अंग्रेजी – हिन्दी में पढ़ाई – लिखाई के प्रोग्राम को और विकसीत करना चाहती है, तब कुछ लोग यह मांग करने लग जाते हैं, कि उर्दू में भी पढ़ाई का इंतजाम किया जाये, इतना कहते – कहते उनकी आवाज सख्त हो जाती है, फिर बोलते हैं उर्दू पढ़ाकर क्या मौलवी और कठमुल्ला बनाओगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लगभग 4 मिनट 28 सेकण्ड के सम्पूर्ण भाषण का रिकॉर्ड अब जनता के पास सोशल मीडिया के माध्यम से मौजूद हैं। इस साढ़े 4 मिनटों के भाषण में योगी जी उस गंगा – जमुनी तहजीब को बुरी तरह से आहत करते हैं। दिलचस्प मसला यह कि जब योगी जी उर्दू के खिलाफ बोल रहे थे, तब उर्दू के लफ़्ज़ों का सहारा लेकर ही सदन को अपनी बातों से सम्प्रेषित करते हुए सम्बोधित कर रहे थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी कठमुल्ला का मतलब क्या होता है ? उर्दू का तालीमयाफ्ता क्या कठमुल्ला होता है ?

हमारे देश के उर्दू के बेहतरीन और अज़ीम लेखक धनपतराय श्रीवास्तव उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद न सिर्फ उर्दू के तालीमयाफ्ता थे बल्कि ब्रिटिश हुकूमत को अपने लेखनी के ज़रिए बेचैन कर रखे थे। मुंशी प्रेमचंद ने एक किताब उर्दू में लिखा था सोज – ए – वतन इस किताब के प्रकाशन से ब्रिटिश हुकूमत बेचैन हो गयी थी। उनकी बेचैनी का आलम इस तथ्य से समझा जा सकता है, कि ब्रिटिश हुकूमत ने सोज – ए – वतन के पढ़ने और रखने पर पाबंदी लगा दिया था।

आप किस – किस को कठमुल्ला कहोगे, कहते – कहते हलक को काठ मार जायेगी !

कमोबेश पूरा हिंदुस्तान जाने – अनजाने में उर्दू बोलता ही है। उर्दू भारत के बोलचाल के ज़रिए रंग – रंग में समाया हुआ है। उर्दू के जानकार को आप कठमुल्ला कैसे कह सकते हैं। क्या मीर तकी मीर कठमुल्ला थे। मिर्जा गालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, मजरूह सुल्तानपुरी, संतोष आनंद, गोपालदास नीरज, इब्ने सफी, शंकर जयकिशन, जावेद अख्तर, आनंद बक्शी, समीर अंजान, शैलेन्द्र, शैलेन्द्र ने तो गीत ही लिख दिया है चलो अल्लाह हाफ़िज़… क्या यह सबके सब कठमुल्ला है जिन्होंने उर्दू की तालीम हासिल कर इतिहास में सुनहरे भारत की उर्दू में स्तुतिगान लिखा है।

उर्दू को हिकारत की नज़र से देखने वालों तुम्हें चुनौती है बगैर उर्दू के बोलकर देखो उर्दू समझ आ जायेगा।

Chhattisgarh Special