2018 में राज्य का और 2019 में केन्द्र का सम्पन्न हुआ था चुनाव, दोनों दलों को मिला था प्रचण्ड बहुमत !

2018 में राज्य का और 2019 में केन्द्र का सम्पन्न हुआ था चुनाव, दोनों दलों को मिला था प्रचण्ड बहुमत !

वर्ष 2020 बीत रहा था, नई सरकारों से उम्मीदों में, वर्षान्त बीतने की बेला में महामारी की आशंका देश को घेरने लगी। विश्वगुरु, जिसे पप्पू कहते थे, वास्तव में वह गांधी थे। वहीं गांधी जिसने भारतीय जनता के महफूज सेहत के लिए महामारी का पूर्वानुमान बताया भारत के सरकार को सरकार ने उनकी बातों को किया अनसूना नतीजतन शमशान, कब्रिस्तान में अमानवीय हलचल थी, गलियों में, गांवों में, शहरों में, समूचे देश की सड़कों में सन्नाटा पसर गया। चीख, रूदन, विलाप के सामने दवाई कम्पनी पूंजीपति का राज हो गया।

देश की सुरक्षा में तैनात हमारे जवानों की जाने जा रही हैं, पुष्पवर्षा महामानव पर हो रही हैं।

क्या हुआ ? सरकारों के घोषणा के बावजूद शराब तो अब भी बदस्तूर बिक ही रहा है। महंगें में सिलेंडर खरीदने को हम बाध्य है, करोड़ों को रोजगार देने का वादा बेवफा हो गया। सिर्फ हजारों को काम देकर करोड़ों का ढिंढोरा पीटा गया, मुनादी के विज्ञापन में हजारों करोड़ बहाये जा रहे हैं। सरकार द्वारा जारी अभिलेख के मुताबिक बमुश्किल हजार लोगों को ही काम मिला है इसके उलट करोड़ों कर्मशील, कर्मवीर, अग्निवीर कार्य से वंचित हो गये। बेरोजगारों की संख्या चरम पर है, काम की आस में उनकी सांसें अटकी हुई है।

हिजाब, लवजिहाद, हिन्दू – मुस्लिम, माॅबलींचिग, महिला अस्मिता की बानगी तो देखिए औरतों को सरेराह नंगा कर घुमाया जा रहा, पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है, राजनेता खामोशी अख्तियार कर लियें है। 70 सालों की दुहाई देकर – देकर आपके 10 साल का अलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था अब सदीं सी लगने लगी है।

बार – बार के गृहमंत्री अमीतशाह के आगमन से प्रधानमंत्री के दौरे से लगता है फिर चुनाव आ रहा है।

चुनाव के आहट की जानकारी दे रहे देश के ख्यातिनाम हस्ताक्षर डाॅ अशोक चक्रधर की यह कविता, कैसे हिंसक जानवर, वक्त पड़ने पर शांति का पैगाम तो दे रहा है, लेकिन उसका मूल स्वभाव हिंसक ही है। शांति का यह पैगाम तो अभिनय मात्र है, चुनाव के मद्देनज़र –

एक नन्हा मेमना उसकी मां बकरी
जो जा रहे थे जंगल में राह थी संकरी
अचानक सामने से आ गया शेर
लेकिन अब तो हो चुकी थी बहुत देर
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता
बकरी और मेमन की थी हालत खस्ता
उधर शेर के कदम धरती नांपे
इधर ये दोनों थर – दर कांपे
अब तो शेर आ गया था एकदम सामने
बकरी लगी जैसे – तैसे बच्चे को थामने
तो छिटक कर बोला बकरी का बच्चा
शेर अंकल,
क्या तुम हमें खा जाओगे एकदम कच्चा
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा मेमने के सर पर फिराया
बोला हे बकरी कुलगर्वा, आयुष्मान भव:
चिरायु भव:, दिर्घायु भव:
कर कलरव होत, सब साबूत रहे
सब अवयव
आशीष देता यह पशुपंगव शेर
अब नही होगा कोई अंधेर
उछलों कूदो, नांचो और जीओ हंसते हंसते
अच्छा बकरी मैईया नमस्ते
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान
बकरी हैरान, बोली बेटा ताज्जुब है
भला यह शेर,
किसी पे रहम खाने वाला है
लगता है जंगल में चुनाव आने वाला है

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