चुनाव में मतदान के दौरान तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली स्याही की कहानी

चुनाव में मतदान के दौरान तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली स्याही की कहानी

चुनाव में मतदान के दौरान तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली स्याही की कहानी, जो लोकतंत्र की‌ प्राणलहू है, जो लोकतंत्र की धमनियों में लहू के मानिंद बहकर लोकतंत्र को जीवंत बनाती है !

देश में हुए अन्य चुनावों से सबक लेते हुए अबकी बार 2024 के लोकसभा चुनाव से यह व्यवस्था की जानी कि तर्जनी ऊंगली में लगने वाली स्याही मतदान के बाद निकलते समय लगायीं जाए।

2007 मे शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की एक फिल्म आई थी ओम शांति ओम उसमें एक डॉयलॉग था एक चुटकी सिन्दूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू …. !

संवाद लेखक मयूरपुरी को यह सलाह दी जा रही है, कि वे अपनी अगली फिल्म लोकतंत्र जिन्दाबाद बनाये और उसमें यह डॉयलॉग जरूर लिखे कि एक बूंद स्याही की कीमत तुम क्या जानो वोटर बाबू ! उंगली में लगी स्याही गवाह है, इस एक कतरे से सरकार जैसे विशाल समुन्दर बनती है।

पैसा, दारू, कम्बल – साड़ी न जाने कितने भांति – भांति के लालच – प्रलोभन के बाद भी चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव का खूब ढ़िंढ़ोरा पीट रही है। इस ढ़पोरशंखी पर आज हम चर्चा नहीं कर रहे हैं, चुनाव आयोग का यह कारनामा तो इतिहास में बार – बार अनेकों बार दर्ज हुआ है। आज हम चर्चा करेंगे तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली उस एक बूंद स्याही की इस ब्रम्हवाक्य के साथ कि जीते कोई हारेगी जनता।

तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली यह स्याही भारत में केवल एक कम्पनी बनाती है और वह कम्पनी सरकारी है। इस सरकारी कम्पनी का नाम है मैसूर पेन्ट्स एण्ड वारनिश लिमिटेड यह कोई आज की कम्पनी नही है, भारत के आज़ादी से भी पुरानी कम्पनी है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि लोकतंत्र की पवित्रता की गारंटी देने वाली इस कतरे भर स्याही को बनाने वाली कम्पनी की स्थापना एक राजा ने की थी। मैसूर प्रांत के महाराज नलवाड़ी कृष्णा राजा बड़याल ने साल 1937 में मैसूर पेन्ट्स की स्थापना की थी। लेकिन यह कम्पनी भारतीय लोकतंत्र में मील का पत्थर तब बनी जब चुनाव आयोग ने कैन्द्रीय कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के सहयोग से चुनावों में इस स्याही की आपूर्ति के लिए कम्पनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, शुरुआत मेंं केवल संसदीय और विधानसभा चुनाव के लिए इस स्याही का इस्तेमाल होता था। आज़ाद भारत के पहले चुनाव 1952 और दूसरे चुनाव 1957 मे इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। 1962 के आम चुनाव मे इसका इस्तेमाल करवाने का श्रेय तत्कालीन चुनाव आयुक्त श्री सुकुमार को जाता है। एक बोतल में 10 मिलीलीटर मतलब 10 बूंदे होती हैं। प्रति बोतल की कीमत 127 रूपये तर्जनी ऊंगली पर लगने वाली एक बूंद की कीमत लगभग 12 रूपये 70 पैसे बैठता हैं।

2019 के चुनाव के लिए चुनाव आयोग भारतवर्ष ने 90 करोड़ लोगों के लिए 26 लाख बोतलें 33 करोड़ रुपये मे खरीदी थी

एक बूंद स्याही की भौतिक कीमत की गणना सरलता से की जा सकती है। लेकिन लोकतंत्र के अनिवार्य अवयव इस स्याही का मूल्य अतुलनीय गणनाहीन बेशकीमती है।

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