क्षणिक आवेश में किए गए अपराध का आरोपित सजा में छूट का है हकदार

क्षणिक आवेश में किए गए अपराध का आरोपित सजा में छूट का है हकदार

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के फैसले में बदलाव कर दिया है। याचिकाकर्ता के आजीवन कारावास की सजा को 10 साल की सजा में बदल दिया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने अपने आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां अचानक झगड़े के दौरान एक व्यक्ति क्षणिक आवेश में आकर कोई हथियार उठाता है और चोट पहुंचाता है जो घातक साबित होता है। इस तरह के अपराध में लाभ पाने का हकदार होगा। बशर्ते उसने क्रूरतापूर्वक कार्य न किया हो। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है।

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि मामले में महत्वपूर्ण तथ्यों को देखा जाना आवश्यक है। क्या यह अचानक हुई लड़ाई थी, कोई पूर्वचिन्तन नहीं था, घटना जोश में किया गया था, हमलावर ने कोई अनुचित लाभ नहीं उठाया या क्रूर तरीके से काम तो नहीं किया। झगड़े का कारण प्रासंगिक नहीं है और न ही यह प्रासंगिक है कि किसने उकसावे हमला शुरू किया। डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश कांकेर द्वारा आइपीसी की धारा 302 के तहत याचिकाकर्ता पर लगाई गई दोषसिद्धि और सजा को आइपीसी की धारा 304 भाग- एक के तहत दोषसिद्धि के रूप में संशोधित कर दिया है। उसे 10 साल के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। कांकेर निवासी शोभाराम मंडावी ने अपने अधिवक्ता के जरिए निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील पेश की थी।

उत्तमराम यादव ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उसने बताया कि मवेशी चराते वक्त याचिकाकर्ता उसके पिता जीवनलाल को गालियां दे रहा था। उस समय उनकी मां जैनबाई और उनकी पत्नी पंचबती ने बीच-बचाव करते हुए गाली गलौज न करने की बात कही। इसके बाद याचिकाकर्ता शोभाराम अपने घर चला गया और कुदाल लेकर वापस आया और उसकी मां जैनबाई पर हमला कर दिया। इससे उसकी गर्दन और पीठ पर गंभीर चोटें आई। वह जमीन पर गिर पड़ी और उसकी मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अधिक रक्तस्राव और सिर पर गंभीर चोट को कारण बताया।
पुलिस ने एफआइआर दर्ज कर आरोपित शोभाराम को जेल भेज दिया। विचारण न्यायालय ने प्रत्यक्षदर्शी पंचबाई की गवाही को आधार मानते हुए शोभराम को आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी। मालूम हो कि याचिकाकर्ता नौ साल तीन महीने और 13 दिन की सजा काट चुका है। छह महीने 17 दिन की सजा काटने के बाद उसकी रिहाई होगी।

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