सात फेरों के पवित्र रिश्ते में आई दरार को दूर करने के लिए हाई कोर्ट ने मीडिएशन का सहारा लिया और इसका सकारात्मक परिणाम भी सामने आया। पति-पत्नी, जो तलाक के लिए कोर्ट तक जा पहुंचे थे, उन्होंने अंततः आपसी सहमति से साथ रहने का निर्णय लिया। इस समझौते में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उनके मासूम बेटे ने निभाई, जिसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए दोनों ने एक बार फिर घर बसाने का फैसला किया।
रायगढ़ निवासी पति और जांजगीर-चांपा की महिला की शादी के दो साल बाद दोनों के बीच विवाद बढ़ने लगा, जिसके कारण पति ने रायगढ़ के परिवार न्यायालय में तलाक के लिए आवेदन दिया। परिवार न्यायालय ने 23 सितंबर 2017 को तलाक की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पति ने इस फैसले को चुनौती देते हुए वर्ष 2017 में हाई कोर्ट में अपील दायर की।
सेंटर में रिश्ते को सुलझाने का प्रयास
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने मामले को हाई कोर्ट के मीडिएशन सेंटर भेजने का निर्देश दिया, जहां दंपति के बीच मध्यस्थता के माध्यम से संवाद स्थापित किया गया। मीडिएशन प्रक्रिया के दौरान दोनों के बीच बातचीत हुई और धीरे-धीरे समझौते की दिशा में प्रगति हुई।
बेटे के भविष्य की खातिर साथ रहने का निर्णय
मीडिएशन सेंटर के प्रयासों और बेटे के भविष्य के प्रति जिम्मेदारी को महसूस करते हुए पति-पत्नी ने आपसी सहमति से अपने रिश्ते को एक और मौका देने का निर्णय लिया। इस मामले ने हाई कोर्ट की मध्यस्थता प्रक्रिया के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाया है, जहां एक टूटते रिश्ते को बचाने में कामयाबी मिली है।
लगातार बातचीत से निकला रास्ता
मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थता विशेषज्ञ ने पहले दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं से चर्चा की। इसके बाद याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी से अलग-अलग बात कर विवाद को समझने की कोशिश की। फिर दोनों को एक साथ बुलाकर बातचीत की। इस बीच मध्यस्थता विशेषज्ञ ने कई दौर की बातचीत की। आखिरकार दोनों अपने मतभेद भुलाकर साथ रहने पर राजी हो गए। अपने विवादों का निपटारा करते हुए दोनों ने लिखित समझौते पर हस्ताक्षर भी किए।